माँ का सहारा

asiakhabar.com | February 16, 2018 | 1:43 pm IST
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सर मेरा पेन किसी ने चुरा लिया। अमित ने क्लास टीचर से शिकायत की। क्लास टीचर परेशान हो गए। कुछ दिनों से कक्षा में सामान गायब होने की शिकायतें आ रही थीं। कभी किसी का पेन गुम हो जाता या फिर ज्यामिट्री बॉक्स या फिर किताबें। इस समस्या से कैसे निबटा जाए यह उनकी समझ में न आता। सोचने विचारने के बाद क्लास टीचर ने छात्रों पर निगाह रखने का निश्चय किया। उन्हें यह भी शक था कि इन चोरियों में क्लास के ही किसी बच्चे का हाथ था अन्यथा किताबें चोरी होने का कोई औचित्य न था।शिकायतों पर गौर करने पर यह निष्कर्ष निकला कि अधिकतर चीजें खेल के पीरियड के दौरान ही गुम हुई थीं। क्लास टीचर ने फैसला किया कि वह स्वयं खेल के पीरियड में उपस्थित रह कर गौर करेगें कि कौन छात्र नियमित रूप से मैदान में रहता है।नियमित निगाह रखने पर क्लास टीचर को सुमेश पर शक हुआ। वह अधिकतर बहाना बनाकर पीरियड से थोडी देर को गायब हो जाता और कुछ देर बाद पुन उपस्थित हो जाता। जिस दिन सुमेश गायब होता उस दिन नई शिकायत अवश्य मिलती। मगर सबूत के अभाव में आरोप लगाना उचित नहीं था। ऐसे में क्लास टीचर ने उसे रंगे हाथों पकड़ने का फैसला किया।उस दिन भी क्लास टीचर दूर से ही खेल के मैदान पर अपनी नजर रखे हुए थे। जैसे ही उन्हें सुमेश मैदान से बाहर आता दिखा। उन्होंने दबे पाव सुमेश का पीछा किया। सुमेश इस बात से बेखबर था कि कोई उस ‘पर निगाह भी रखे हुए है। वह बेखटके क्लास में घुसा और नितिन के बैग में से नया पैन निकालने लगा। जैसे ही पैन निकाल कर वह पलटा तो सकपका गया सामने क्लास टीचर खडे थे। चोर सो हाथों पकडा जा चुका था। सुमेश का मुख स्याह पड़ गया। अब निश्चित था कि उसे सजा अवश्य मिलेगी।’मेरे साथ मेरे कमरे में आओ क्लास टीचर ने कहा।  सुमेश सिर झुकाए पीछे चल पडा। अपमान की पीडा उसके मुख पर स्पष्ट थी। सुमेश को अपनी मां की उस वक्त बहुत याद आई उसकी मां यह सुन कर ही कि ‘उसका बेटा चोर है’ सकते में आ जाएगी। अब वह क्या मुंह लेकर अपनी मां के पास जाएगा। परिणाम जानते हुए भी वह चोरी करता रहा, आज सुमेश को इस बात का अफसोस हो रहा था इन्हीं विचारों में डूबा हुआ सुमेश क्लास टीचर के कमरे में सिर नीचा किए खडा हुआ था।’बैठो।’क्लास टीचर ने कहा। सुमेश अभी भी निगाह नीची किए हुआ था।’तुम्हारे पिताजी क्या काम करते है।’क्लास टीचर ने प्रश्न किया।’ वो, इस दुनिया में नहीं है सुमेश ने आत्मग्लनि भरे स्वर में कहा। और तुम्हारी मां? ‘वो कपडे सिल कर गुजारा चलाती है।’ फिर तो तुम्हें बिल्कुल चोरी नहीं करनी चाहिए। तुम्हें तो अपनी मां का सहारा बनना चाहिए। तुमने कभी सोचा है कि तुम्हारे इस काम से तुम्हारे पिताजी की आत्मा को कितना कष्ट पहुंचता होगा और जब तुम्हारी मां को तुम्हारे इस काम के बारे में पता चलेगा तो उन पर क्या गुजरेगी।’सुमेश सिर झुकाए क्लास टीचर की बाते सुनता रहा। उनकी बात उसके दिल को लगगई। उसने अपने आपको बदलने का फैसला कर लिया‘मैं तुम्हें चेतावनी देता हूं यदि तुम्हारे यदि तुम्हारे बारे में मुझे अब कोई शिकायत मिली तो मैं तुम्हारी मां से मिलूंगा।’ क्लास टीचर ने कहासुमेश थके कदमों से क्लास रूम में लौट आया। रह-रह कर क्लास टीचर के शब्द उसके कानों में गूजते।’ हां, मैं बनूंगा मां का सहारा।’ सुमेश के अंदर नई आशा का संचार हुआ। उसकी आखों के आगे लैंप की रोशनी में सिलाई करती मां का चेहरा घूम गया। अब वह मां पर बोझ नहीं बनेगा, वह काम करके अपना खर्चा स्वयं उठाएगा। स्कूल से घर लौटते समय सुमेश की निगाह करीम चाचा पर पडी। करीम चाचा की पतगों की दुकान थी। वह स्वयं बनाते और फिर पतंगों को बेचते। उस वक्त भी करीम चाचा पतंग बना रहे थे।’ चाचा, आप मुझे पतंग बनाना सिखा देंगे।’ सुमेश ने याचना भरे स्वर में कहा।’क्यों नहीं बेटा, सीख जाओगे तो मुझे भी सहारा मिल जाएगा! करीम चाचा बोले। उस दिन से सुमेश ने पतंग बनानी शुरू कर दी। स्कूल के बाद का खाली समय वह पतंगे बनाने में व्यतीत करता। काम के साथ ही वह पढाई में भी खूब ध्यान देता। सुमेश ने अपनी मां को इस बारे में कुछ भी नहीं बताया था। वह मां को चौंका देना चाहता था। महीना पूरा होने पर करीम चाचा ने उसे तीन सौ रुपए दिए तो सुमेश को ऐसा महूसस हुआ कि सारा आसमान उसकी मुट्‌ठी में है। सुमेश ने अपनी पहली तनख्वाह के रुपए अपने क्लास टीचर के हाथ में रख दिए। मर इन रुपयों पर सबसे पहला हक आपका ही है। आपने ही मुझे सही राह दिखाई। सुमेश कृतज्ञता भरे स्वर में वालाक्लास टीचर की आखों में खुशी के आंसू भर आए। वह सुमेश में आए परिवर्तन को देखकर बहुत खुश थे, बोले- ‘नहीं बेटा, इन पर तो तुम्हारी मां का हक है। मुझे तो इस बात की खुशी है कि तुमने अपने आप को बदल लिया है और मेरी बात का मान रखा।’ सुमेश ने क्लास टीचर से विदा ली। घर जाते समय उसके कदम जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। वह सोच रहा था कि इन रुपयों को देखकर उसकी मां कितनी खुश होंगी। घर पर मां सिलाई करने में व्यस्तथीं। सुमेश दबे पाव घुसा और उसने मां की आखें पीछे से भींच ली। अरे, न जाने कब जाएगा इसका बचपना।’ मां ने लाड भरे स्वर में उसकी पीठ पर धौल जमाई ‘मां, अपनी आंखें बद करो।’ सुमेश बोला।’ मगर क्यों, मां ने पूछा।’ बस एक बात है, तुम आंखे तो बंद करो।’ अच्छा बाबा अच्छा। कहते हुए मां ने आंखे बद कर ली। अब अपना हाथ आगे बढाओ।’ सुमेश बोला।’ मगर क्यों।’ बस ऐसे ही। मां ने हाथ आगे बढा दिया। हाथों में किसी वस्तु का स्पर्शं पाकर आंखे खोललीं।’ यह क्या।’ मां ने प्रश्न किया।’ ‘मेरी पहली कमाई।’ सुमेश ने मां के पैर छू लिए। मां ने सुमेश को अपने अंक में भींच लिया। खुशी के मारे उनकी आँखों में आंसू आ गए।’ तुम रो रही हो मां।’ सुमेश की आंखों में भी आंसू थे।’मैं  तो इसलिए रो रही हूं कि मेरा इतना सा बेटा मेरा सहारा बन गया है।’ मां ने आंसू पोंछते हुए कहा।’ मैं तुम्हें कभी कोई दुख नहीं दूंगा।’ सुमेश बोला। मां खुश थीं कि उसका बेटा समझदार हो गया है। सुमेश ने मन ही मन क्लास टीचर को धन्यवाद दिया कि उनकी वजह से वह गलत राह पर जाने से बच गया।


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