घोटालेबाजी का तंत्र

asiakhabar.com | February 16, 2018 | 1:34 pm IST
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देश के दूसरे सबसे बड़े बैंक पंजाब नेशनल बैंक में 11 हजार करोड़ रुपये की धोखाधड़ी पर सरकार ने सख्त कार्रवाई करने और पूरी रकम वसूलने का जो आश्वासन दिया उसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। उसे अपने इस आश्वासन पर हार हाल में खरे उतरना होगा। इस धोखाधड़ी को अंजाम देने वाले नीरव मोदी के खिलाफ न केवल कठोर कार्रवाई होनी चाहिए, बल्कि वह होती हुई दिखनी भी चाहिए। इस क्रम में इसकी भी जांच होनी चाहिए कि घोटाला उजागर होने के चंद दिन पहले ही वह देश से बाहर जाने में कैसे सफल रहा? कहीं किसी ने उसे आगाह तो नहीं किया? जो भी हो, यह बेहद खराब बात है कि पहले तमाम बैंकों को चूना लगाने वाले विजय माल्या देश से बाहर निकल गए और सरकार कुछ नहीं कर सकी और अब पंजाब नेशनल बैंक को लूटने वाला नीरव मोदी। नीरव मोदी की कारगुजारी सामने आने के बाद मोदी सरकार पर विपक्षी दलों के हमले स्वाभाविक हैं। नि:संदेह विपक्ष को तिल का ताड़ बनाने से बचना चाहिए, लेकिन सरकार को यह समझना होगा कि उसके सामने केवल विपक्ष को ही जवाब देने की चुनौती नहीं है। इसके साथ ही उसके समक्ष जनता को भी यह भरोसा दिलाने की चुनौती है कि फंसे कर्जों के कारण पहले से ही समस्याग्रस्त बैंकों के कामकाज को सचमुच दुरुस्त किया जाएगा। इस मामले में बैंकों को केवल कुछ और निर्देश जारी करने से काम चलने वाला नहीं है, क्योंकि अब इसमें कोई संशय नहीं कि बैंकिंग व्यवस्था को दुरुस्त करने संबंधी रिजर्व बैंक के नियमों और निर्देशों की अनदेखी हो रही है।

सच तो यह है कि अगर पंजाब नेशनल बैंक तय नियमों के हिसाब से काम कर रहा होता और उसका निगरानी तंत्र तनिक भी सजग होता तो नीरव मोदी बैंक को खोखला करने का काम कर ही नहीं सकता था। क्या यह अजीब नहीं कि नीरव मोदी के गोरखधंधे की शुरुआत 2011 में हुई, लेकिन उसे करीब सात साल बाद पकड़ा जा सका? आखिर बैंक ने समय रहते इसकी परवाह क्यों नहीं की कि नीरव मोदी सैकड़ों करोड़ों की रकम उधार लिए जा रहा है और उसे चुकाने का नाम नहीं ले रहा है? क्या यह एक किस्म की अंधेरगर्दी नहीं कि पंजाब नेशनल बैंक के चुनिंदा अधिकारी निधार्रित प्रक्रिया का उल्लंघन करके नीरव मोदी के मन की मुराद पूरी करते रहे और बैंकिंग तंत्र को इसकी भनक तक नहीं लगी? चूंकि फिलहाल इस सवाल का जवाब देने वाला कोई नहीं इसलिए यही लगता है कि बैंकिंग व्यवस्था ऐसे मनमाने तरीके से चल रही है जो घोटालेबाजों को ज्यादा रास आ रही है। हैरत नहीं कि सभी बैंकों की गहन छानबीन की जाए तो कई और नीरव मोदी निकल आएं। इसकी आशंका इसलिए भी है, क्योंकि यह स्पष्ट हो रहा है कि बैंकों के ऑडिट के नाम पर खानापूरी ही होती है। क्या रिजर्व बैंक अथवा वित्त मंत्रालय में कोई यह देखने वाला नहीं कि बैंक धोखाधड़ी रोकने के लिए समय-समय पर जारी निर्देशों और प्रक्रियाओं का पालन कर रहे हैं या नहीं? घोटाले पकडऩे से ज्यादा जरूरी यह है कि उन्हें होने ही न दिया जाए।


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