वयस्कों की शादी

asiakhabar.com | February 7, 2018 | 1:34 pm IST
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वोर्र्च्च न्यायालय की यह टिप्पणी निश्चय ही खाप समर्थकों एवं परंपरागत समाज की सोच रखने वालों को अच्छी नहीं लगेगी कि दो बालिगों के बीच विवाह में कोई तीसरा दखल नहीं दे सकता। दरअसल, अदालत एक एनजीओ की विवाह में खाप पंचायतों की भूमिका संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रही है। अदालत ने खाप पंचायतों को लेकर कई सख्त टिप्पणियां की हैं। अदालत की टिप्पणियों से उनको गहरा धक्का अवश्य लगा है। अदालत के बाद हम इस पर कोई राय दें यह उचित नहीं होगा। किंतु दो बालिगों की शादी में तीसरे की भूमिका न होने की टिप्पणी पर देश में बहस अवश्य छिड़ गई है। जहां तक कानून का संबंध है तो दो बालिग आपस में शादी करना तय करते हैं, तो उनको इसकी अनुमति है। अदालत कानून और संविधान के तहत ही किसी मामले पर विचार करती है, और उस नाते उसकी टिप्पणी अस्वाभाविक नहीं है। किंतु हमारे समाज पर स्थानीय संस्कृतियों और परंपराओं का प्रभाव आज भी कायम है। शादी-विवाह का मसला तो ऐसा है, जिसमें बहुसंख्य आबादी परंपराओं के अनुसार ही अपनी भूमिका का निर्वहन करती है। समाज की एकता की दृष्टि से अंतरजातीय एवं अंतरपंथीय विवाहों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। समाज स्वयं इस दिशा में आगे नहीं बढ़ रहा। दो जातियों या दो मजहबों के कोई युवक युवती प्रेम विवाह करना चाहते हैं, तो सहजता से स्वीकार नहीं करता, बल्कि ज्यादातर रोड़ा बनता है। इस स्थिति का अंत हर विवेकशील व्यक्ति चाहेगा। अदालत ने कहा है कि खाप पंचायतों जैसी संस्थाओं द्वारा विवाह में हस्तक्षेप से संबंधित मुद्दों से निबटने के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की उच्चस्तरीय समिति गठित करेगी। ऐसी समिति शायद अंतरजातीय या अंतरपंथीय विवाहों के कारण होने वाली हिंसा या प्रतिष्ठा हत्या पर कुछ रोक लगा पाए। किंतु यह पर्याप्त नहीं होगा। यह अदालत के फैसले या पुलिस के हस्तक्षेप से ज्यादा सामाजिक जागरण का मामला है। जागरण कैसे पैदा हो कि अंतरजातीय-अंतरपंथीय विवाह सहज स्वीकार्य हो सकें, इसके लिए काम करने की जरूरत है। इसलिए समाज में इस बात को स्वीकृत कराने के लिए अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है। देखना है कि अदालत अपने फैसले में इस पहलू पर कोई टिप्पणी करती है, या नहीं।


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