लंदन। आयरलैंड में गर्भपात संबंधी सख्त कानून पर आमलोगों की राय ली जाएगी। इसके लिए जनमत संग्रह कराया जाएगा। यह घोषणा भारतीय मूल के प्रधानमंत्री लियो वरादकर ने की है। वरादकर के अनुसार आयरलैंड के नागरिक तय करेंगे कि देश में गर्भपात पर से प्रतिबंध हटाया जाए या नहीं।
पीएम मंत्रिमंडल की विशेष बैठक के बाद बोल रहे थे। वरादकर ने 1983 में संविधान में हुए आठवें संशोधन पर चर्चा के लिए कैबिनेट की विशेष बैठक बुलाई थी। जनमत संग्रह में लोगों से पूछा जाएगा कि वे गर्भपात कानून में संशोधन बनाए रखना चाहते हैं, रद करना चाहते हैं या इसपर निर्णय लेने का अधिकार देश की संसद पर छोड़ना चाहते हैं। वरादकर गर्भपात कानून में सुधार के पक्षधर हैं।
वरादकर ने कहा, “मैं बदलाव की वकालत करूंगा। समय के साथ मेरे विचारों में भी परिवर्तन आया है। जीवन का अनुभव ऐसा ही होता है।” इससे पहले वह इस गर्भपात कानून में परिवर्तन के खिलाफ थे। वरादकर ने बताया कि सरकार इस विषय पर एक मसौदा तैयार कर रही है, जिससे महिलाओं को यह अधिकार मिलेगा कि वह बिना किसी कानूनी अड़चन के 12 हफ्ते तक के गर्भ को खत्म करा सकें।
बता दें कि 1983 में इस रोमन कैथोलिक देश ने संविधान में संशोधन कर गर्भपात कराने पर प्रतिबंध लगा दिया था। आयरलैंड का कानून गर्भपात के मामले में पूरे यूरोप में सबसे सख्त है। यहां गर्भपात तभी कराया जा सकता है, जब चिकित्सीय रूप से यह प्रमाणित हो कि बच्चे की मां की जान खतरे में हो। आयरलैंड से हर साल हजारों महिलाएं गर्भपात कराने पड़ोसी देश ब्रिटेन जाती हैं।
सविता की मौत के बाद सड़कों पर उतर आए थे लोग
वर्ष 2012 में 17 हफ्ते की गर्भवती भारतीय मूल की महिला सविता हलप्पनवार को गर्भपात कराने की इजाजत नहीं दी गई थी। वहीं सविता के सेप्टीकेमिया से पीड़ित होने के कारण उनका खून विषाक्त हुआ जा रहा था। अंततः इससे उनकी जान चली गई थी। इसके बाद आयरलैंड में हजारों लोग गर्भपात के नियमों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे।