तवांग (अरुणाचल प्रदेश), 12 अप्रैल। तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा का अरुणाचल प्रदेश का एक सप्ताह लंबा दौरा मंगलवार को खत्म हो गया। दलाई लामा के अरुणाचल दौरे पर चीन ने कड़ी आपत्ति जताई थी। दलाई लामा मंगलवार सुबह तवांग से एक हेलीकॉप्टर से असम के गुवाहाटी स्थित लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा पहुंचे। उन्हें विदा करने के लिए हजारों की संख्या में लोग सड़कों के दोनों किनारे पर खड़े थे। एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि मुख्यमंत्री पेमा खांडू तथा अन्य लोगों ने उन्हें विदाई दी। अधिकारी ने कहा, मुख्यमंत्री ने यात्रा के लिए दलाई लामा का शुक्रिया अदा किया और उनसे निकट भविष्य में एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश आने का निवेदन किया। दलाई लामा ने कहा कि पूर्वोत्तर राज्य का उनका दौरा यादगार दौरों में से एक है और इसे वह सदा याद रखेंगे। उन्होंने खासकर उन लोगों का शुक्रिया अदा किया, जो भारी संख्या में सुदूरवर्ती गांवों से उनका स्वागत करने तथा उनका उपदेश सुनने आए। तिब्बती आध्यात्मिक गुरु का तवांग या अरुणाचल का यह पहला दौरा नहीं है। वह सन् 1959 में चीन से तवांग के रास्ते ही भारत पहुंचे थे। इसके बाद उन्होंने सन् 1983, 1997, 2003 तथा 2009 में अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया। दलाई लामा अरुणाचल प्रदेश का एक सप्ताह लंबा धार्मिक दौरा तवांग से चार अप्रैल को ही शुरू करने वाले थे। लेकिन, खराब मौसम के कारण उन्हें सड़क मार्ग का सहारा लेना पड़ा, क्योंकि उनका हेलीकॉप्टर असम के डिब्रूगढ़ से उड़ान नहीं भर सका। असम के डिब्रूगढ़ से 550 किलोमीटर लंबी यात्रा तय करने और 13,700 फुट ऊंचा सेला दर्रा पार करने के बाद तिब्बती धर्म गुरु सात अप्रैल को तवांग पहुंचे। शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित दलाई लामा तवांग मठ में ठहरे, जो गोलुगपा स्कूल ऑफ महायान बुद्धिज्म से जुड़ा है और इसका संबंध ल्हासा के द्रेपुंग मठ से है, जो ब्रिटिश काल से ही बरकरार है। तवांग पर अपना दावा जताने के लिए बीजिंग इसी संबंध का हवाला देता है। चीन ने सन् 1950 में तिब्बत पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया था। सन् 1959 में तिब्बत से भागने के बाद दलाई लामा असम पहुंचने से पहले कुछ दिनों तक तवांग मठ में ठहरे थे। अरुणाचल प्रदेश के धार्मिक दौरे के दौरान, आध्यात्मिक गुरु ने छह अप्रैल को थुपसुंग धारजेलिंग मठ में उपदेश दिया। रविवार को उन्होंने तारा टेंपल डोल्मा ल्हागांग, गुरु पद्मसंभव स्टेच्यू सह टेंपल (लुंपो) में उपदेश दिया तथा भारत-भूटान सीमा के निकट बरी में बनने वाले ग्यालवा जाम्बा (कुबेर) की प्रतिमा की आधारशिला रखी। उन्होंने जम्बा (कुबेर) प्रतिमा का नाम जामत्सेलिंग रखा और उसके निर्माण के लिए अपनी तरफ से 50,000 रुपये की सहयोग राशि दी।