कौन कम है?

asiakhabar.com | January 18, 2018 | 3:56 pm IST
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स्तक मेला समाप्त हो गया जी। पुस्तकों के बारे में यह शिकायत तो खैर कदीमी है कि वे बहुत महंगी हैं। पर शायद एक किलो टमाटर या एक किलो प्याज के बदले कम-से-कम एक पुस्तक तो अभी भी मिल ही जाती होगी। पर इस बात का संतोष किसी को नहीं है। टमाटर या प्याज की महंगाई की शिकायत तो खैर अब उतनी ज्यादा नहीं रह गई है। दूसरी शिकायतों की तरह महंगाई की शिकायत भी अब दबी जुबान में ही होने लगी है। पर पुस्तकों के महंगे होने की शिकायत अभी भी है। हो सके तो कभी-कभी शिक्षा के महंगी होने की शिकायत भी कर लेनी चाहिए। खैर, पुस्तकें महंगी होने की शिकायत हो सकता है पुस्तक प्रेम से ही निकलती हो। आखिर कहते हैं न कि शिकायत अपनों से ही तो होती है। गैरों से क्या शिकायत? पर जी पुस्तक मेले में चाय और स्नैक्स तो पुस्तकों से भी महंगे निकले। इसे कृपया इस बात से कतई नहीं जोड़ा जाना चाहिए कि चाय बेचने वाला जब प्रधानमंत्री बन सकता है, तो चाय सस्ती कैसे हो सकती है। ऐवैं ही उसे कोई कैसे हासिल कर लेगा। पुस्तक मेले में चाय और स्नैक्स वैसे ही पुस्तकों से ज्यादा महंगे निकले जैसे नोटबंदी के वक्त लाइन में खड़े होने या खड़े-खड़े भगवान को प्यारे हो जाने से भी ज्यादा रोजगारों का चले जाना महंगा पड़ा। यह कुछ-कुछ वैसा ही मामला था, जैसे जैसे आधी रात को जीएसटी के घंटे से नींद खराब होने की शिकायत से ज्यादा महंगी वे समस्याएं पड़ीं जो बाद में दुकानदारों और व्यापारियों के सामने आई। हालांकि बताते हैं कि जीएसटी के सबसे बड़े जानकारों में से एक तो इस चक्कर में सांसद भी बन गए। ऐसे में बेचारे ग्राहकों की समस्याओं को कौन सुने? पुस्तक मेले में पुस्तकों से ज्यादा चाय और स्नैक्स के महंगे होने का मामला कुछ ऐसा ही था कि जैसे गुजरात में विकास से ज्यादा महंगी पाकिस्तान के हस्तक्षेप की शिकायत पड़ी। यह कुछ उसी तरह का मामला था कि यूं तो दुनिया में झगड़े और विवाद बहुत हैं, और खूब बड़े-बड़े भी हैं, पर जी, सुप्रीम कोर्ट के जजों का विवाद सबसे बड़ा निकला। जनता के झगड़ों और विवादों का निपटारा तो अदालत करती है, पर अदालत के जजों के विवाद का निपटारा कौन करे? तो साहब, बता सकते हैं कि कौन किससे कम है?


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