नई दिल्ली। 2019 लोकसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी ने अभी से ही अपनी कमर कस ली है, लेकिन अब वह अकेले ही चुनाव मैदान में उतरने का मन बना चुकी है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसका ऐलान खुद करते हुए साफ कर दिया है कि पार्टी इन चुनावों में किसी से कोई समझौता नहीं करेगी और अकेले ही मैदान में उतरेगी। सपा ने यह फैसला पार्टी को मिले फीडबैक के बाद लिया है।
अखिलेश यादव ने यह भी साफ कर दिया है कि फिलहाल वह आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए किसी गठनबंधन के बारे में विचार नहीं कर रहे हैं। उन्होंने सीटों के बंटवारे और गठबंधन को वक्त की बर्बादी तक कहा है।
गठबंधन को लेकर पार्टी में नाराजगी –
दरअसल, पार्टी के अंदर पूर्व में कांग्रेस के साथ किए गए गठबंधन को लेकर रोष है। यह बात लखनऊ में हुई जिला अध्यक्षों की बैठक में भी सामने आई थी। सभी ने इस बात पर जो दिया कि इस बार कांग्रेस के साथ किसी तरह का कोई भी गठबंधन न किया जाए। पार्टी के ज्यादातर नेताओं का मानना है कि लोकल बॉडी के इलेक्शन में भी इसके चलते कोई पॉजीटिव रिजल्ट देखने को नहीं मिला है।
सपा के लिए फायदेमंद साबित होगा ये फैसला –
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह भी मानते हैं कि सपा के लिए यह फैसला फायदेमंद साबित हो सकता है। दैनिक जागरण से बात करते हुए उन्होंने कहा कि सपा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन करके देख चुकी है। इसका उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ। इतना ही नहीं कांग्रेस इस दौरान न तो अपना जनाधार ही बढ़ाने में सफल हो सकी और न ही सपा को फायदा दिला सकी। लिहाजा सपा का फैसला अपनी जगह पर सही है। उनके मुताबिक यह इसलिए भी अहम है क्योंकि इसके जरिए सपा ने यह साफ कर दिया है कि राज्य और देश में भाजपा को हराने की जिम्मेदारी सिर्फ उसकी ही नहीं है, इसमें सभी की भागीदारी का होना बेहद जरूरी है।
लड़ाई में कहीं नहीं कांग्रेस –
सपा नेता नरेश अग्रवाल ने भी माना है कि लोकसभा चुनाव में बिना गठबंधन के उतरने का फैसला खुद अखिलेश यादव का है। उनके मुताबिक यूपी में भाजपा और सपा की सीधी लड़ाई है, इसमें कांग्रेस कहीं भी नहीं आती है। उनके मुताबिक हालिया चुनाव में यह बात भी सामने आई कि भाजपा को हराने की बजाय कांग्रेस सपा के खिलाफ ज्यादा नजर आई।
जमीनी तौर पर मजबूत बनाने में जुटी सपा –
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सपा अब अपनी पार्टी को जमीनी तौर पर मजबूत बनाने में जुटी है। अखिलेश यादव ने अपने कार्यकर्ताओं को यह संदेश भी दिया है कि वह संगठन को मजबूत बनाने के लिए काम करें। अखिलेश यादव का यह भी कहना है कि यूपी की भाजपा सरकार सपा द्वारा शुरू किए कामों को अपना बताने में जुटी है। आपको याद दिला दें कि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था। हालांकि इसका फायदा उसे कुछ नहीं मिला और भाजपा चुनाव में बाजी मार ले गई थी। इस चुनाव में भाजपा को 325, सपा को 47 और कांग्रेस को महज सात सीटें मिली थीं।
सपा की रणनीति का ये भी है एक हिस्सा –
समाजवादी पार्टी ने जहां प्रदेश सरकार को कई मुद्दों पर विफल बताते हुए प्रदेश की भाजपा सरकार के खिलाफ तहसीलों में माहौल बनाने की तैयारी की है, वहीं संगठनात्मक स्तर पर बूथों पर भी उसकी निगाह है। पार्टी ने बूथ स्तर पर भाजपा का मुकाबला उसी के हथियार से करने की रणनीति बनाई है। इसके तहत बूथों पर सक्रिय टीमों का डिजिटल डाटा तैयार किया गया है। इस टीम की पहली जिम्मेदारी मतदाता पुनरीक्षण में सपा समर्थक मतदाताओं का नाम सूची में दर्ज कराने की होगी।
तैयार करवाया है डिजिटल डाटा –
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक दिन पहले ही विधायकों और पूर्व विधायकों की बैठक में मतदाता पुनरीक्षण पर खास जोर देने का निर्देश दिया है। इसके पीछे नगरीय निकाय चुनावों से मिला फीडबैक भी एक मुख्य कारण है। खासतौर से नगर निगमों के चुनाव में पार्टी को बड़ी संख्या में यह शिकायतें मिली थीं कि उसके समर्थकों का मतदाता सूची में नाम ही नहीं था और वह चाहकर भी वोट नहीं डाल सके थे। खास तौर पर अयोध्या और इलाहाबाद से यह शिकायतें आई थीं। इसे देखते हुए ही पार्टी ने बूथों की मजबूती को डिजिटल डाटा तैयार कराया है।
सोशल नेटवर्किंग को दी है प्रमुखता –
हर बूथ के सक्रिय कार्यकर्ताओं का फोन नंबर से लेकर उनके ईमेल व्हाट्सएप आदि एकत्र कर उन्हें मुख्यालय से जोड़ा गया है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी के अनुसार, बूथों पर युवाओं को खास तौर से जोड़ा गया है और उनसे लगातार संपर्क भी रखा जा रहा है। इन युवाओं को ही बूथवार मतदाता सूचियों में नाम जोड़ने की जिम्मेदारी भी दी गई है। सपा ने इसके साथ ही सोशल नेटवर्किग को भी प्रमुखता दी है जो 2017 में भाजपा की जीत का मुख्य आधार था।