चंडीगढ़। फतेहगढ़ साहिब में आपसी भाईचारे की मिसाल देते हुए मुस्लिम संप्रदाय के लोगों ने ऐतिहासिक लाल मस्जिद का परिसर सिखों के लिए खोल दिया है। यहां तीन दिनों तक चलने वाले शहीदी जोर मेला के लिए लंगर का आयोजन करना था।
भारी संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं के लंगर की व्यवस्था की जानी थी। मुगलकालीन लाल मस्जिद परिसर के दरवाजे मुस्लिमों ने सिख समुदाय के लोगों के लिए खोल दिए, ताकि यहां रसोई बनाकर खाना तैयार किया जा सके और लोगों को लंगर छकवाया जा सके।
गुरु गोबिंद सिंह के युवा साहबजादों की शहादत को याद करने के लिए यह आयोजन किया जाता है। यह मस्जिद उत्तर मुगल काल की है। शेख अहमद फारुकी सिरहिंदी (1560-1623) के पोते सैफुद्दीन इसके उत्तराधिकारी थे, जिन्हें मुजादद अल्फ सानी भी कहा जाता है।
दो साल पहले इस मस्जिद का पुनर्निर्माण कराया गया था। इस मस्जिद के प्रमुख की ओर से इजाजत मिलने के बाद खमनो उप-संभाग के रानवान और बाथो के ग्रामीणों ने वहां लंगर लगाया।
रानवान गांव के रहने वाले चरणजीत सिंह चन्नी ने कहा कि मुस्लिम समुदाय ने लंगर तैयार करने के लिए अपनी जमीन का उपयोग करने की अनुमति दी है। हम पिछले तीन दिनों से भोजन तैयार कर रहे हैं और यहां आने वाले लोगों को सेवाएं दे रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि मस्जिद के तहखाने का इस्तेमाल भी हमारे खाद्य पदार्थों के भंडारण के लिए किया जा रहा है। दो गांवों के गुरुद्वारों ने मिलकर लंगर का आयोजन किया और ग्रामीणों ने समुदाय के लोग रसोई घर की सेवाओं में हाथ बंटा रहे हैं।
गौरतलब है कि शेख सरहिंदी ने पांचवें सिख गुरु गुरु अर्जुन देव जी के उत्पीड़न और उनकी शहादत में अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि, जब बंदा सिंह बहादुर ने सिरहिंद की कमान संभाली, तो उन्होंने मस्जिदों को ध्वस्त नहीं किया।
इसी प्रकार, जस्सा सिंह अहलूवालिया और अन्य सिख सरदारों ने अफगान हमलावर अहमद शाह अब्दाली के अधीनस्थों को हराकर अपना शासन स्थापित किया, लेकिन मस्जिदों या मुस्लिमों के अन्य प्रमुख स्थानों को नुकसान नहीं पहुंचा। पटियाला के पंजाब विश्वविद्यालय के प्रोफेसर परमवीर सिंह ने कहा कि सिखों की लड़ाई मुसलमानों या इस्लाम के खिलाफ नहीं थी, बल्कि मुगल शासकों के खिलाफ थी।