महिला उत्थान और टूटते बिखरते परिवार

asiakhabar.com | April 25, 2025 | 4:07 pm IST
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-सत्यशील अग्रवाल-
प्राचीन काल से समूचे विश्व में ही पुरुष सत्तात्मक समाज का चलन रहा है। विश्व में जो देश विकसित होते गए वहां महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया जाने लगा, उनके साथ भेदभाव काफी हद तक समाप्त कर दिया गया, परन्तु भारतीय समाज में विदेशी गुलामी के कारण कुछ अधिक ही (हजारों वर्षों तक) महिला समाज का शोषण किया जाता रहा है। अर्थात महिला को समाज में दोयम दर्जा दिया जाता रहा है, और महिलाओं के साथ हर क्षेत्र में भेदभाव पूर्ण व्यव्हार किया जाता रहा है।
आजादी के पश्चात् देश के नवनिर्मित संविधान में महिलाओं को पूर्ण सम्मान और पुरुषों के समान अधिकार प्रदान किये गए, उन्हें शिक्षा का अधिकार ही नहीं बल्कि महिला शिक्षा को प्राथमिकता देने का प्रावधान किया गया। महिला समाज के लिए अभिशप्त अनेक कुरीतियों को हटाने के लिए कानून बनाने की व्यवस्था की गयी। तत्पश्चात सरकारी स्तर पर महिलाओं के उत्थान के लिए अनेक कानून बनाये, उन्हें दहेज उत्पीडऩ, दहेज प्रथा, विधवा विवाह, बाल विवाह जैसे अनेक प्रचलित कुप्रथाओं के उन्मूलन के लिए पर्याप्त कानून प्रदान किये गए। महिला सुरक्षा के लिए भी कानूनी संरक्षण दिया गया। महिला समाज में जागृति पैदा करने के लिए अनेक महिला संगठनों का गठन हुआ। परिणाम स्वरूप आज महिलाओं को शोषण से मुक्ति मिली उन्हें अपने उत्थान के अभूतपूर्व अवसर प्राप्त हुए। यद्यपि कई क्षेत्रों में अभी भी काफी कार्य होना बाकी है। विशेषकर देहाती क्षेत्रों में शिक्षा और महिलाओं के प्रति पुरुषों की सोच में विशेष बदलाव देखने को नहीं मिला।
विकास के दौर में जैसे जैसे इन्सान की महत्वाकांक्षाएं बढती गयी देहातों में परम्परागत कृषि उद्योग, या व्यापार से गुजारा मुश्किल होता गया। युवा अपने रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने लगे और देश में संयुक्त परिवार टूटने लगे और आज संयुक्त परिवार बहुत ही सीमित हो चुके हैं। आधुनिक विकास और बढती आबादी को इसका जिम्मेदार माना जा सकता है। दूसरी ओर महिलाएं भी सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होकर उभर रही हैं। आज महिलाएं जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कन्धा मिला चलने में सक्षम हो रही है। महिलाओं ने रिक्शा, टैक्सी और ट्रेन चलाने से लेकर वायु यान उड़ाने तक और शिक्षा से लेकर देश की सेना, पुलिस जैसे कष्टसाध्य कार्यों में भी अपनी योग्यता दिखाई है। देश के सर्वोच्च पदों अर्थात राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री या न्यायाधीश जैसे अति सम्मानित पदों को सुशोभित किया है। देश और समाज के लिए गर्व की बात है कि देश की आधी आबादी (महिला समाज) देश की उन्नति में बराबर का योगदान कर रही है। हजारों वर्षों से चला आ रहा नारी शोषण धीरे धीरे घट रहा है। यद्यपि अभी भी पुरुष मानसिकता में पर्याप्त बदलाव लाने की आवश्यकता है। उन्हें महिलाओं को सम्मान देना ही होगा, उनके प्रति अपनी दुराचार की प्रवृति से मुक्त होना होगा। उन्हें भोग विलास की वस्तु समझने की प्रवृति को त्यागना होगा, अन्यथा उनके लिए आगामी जीवन असहज होने वाला है। महिलाओं का उत्थान सभ्य मानव समाज के लिए अत्यंत आवश्यक है, परन्तु महिलाओं के उत्थान के परिणाम स्वरूप संयुक्त परिवार से बिखर कर बने एकाकी परिवार भी टूटने के कगार पर आने लगे हैं। महिलाओं में व्याप्त पुरुषों से संघर्ष की प्रवृति के कारण पति पत्नी में आपसी सामंजस्य का अभाव होने लगा है। पति और पत्नी दोनों अपने कार्यों में व्यस्त रहने के कारण बच्चों को माता पिता का स्नेह, उनका सानिध्य मिलना दुष्कर होता जा रहा है। अब बच्चों को भावनात्मक सहयोग उनके सहपाठियों से प्राप्त होता है। अत: अब वे अपने मित्रों के प्रति अधिक लगाव रखते हैं और माता पिता को सिर्फ आर्थिक संरक्षण का स्रोत मानते हैं। माता पिता आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के कारण उनमें आपस में प्रति दिन मनमुटाव भी सामने आता है, जिससे घर के बच्चे प्रभावित होते हैं। कभी कभी तो माता पिता की जंग तलाक तक पहुँच जाती है और बच्चों का भविष्य अधर में लटक जाता है। तलाक की स्थिति आने पर बच्चे को माता या पिता किसी एक का ही प्यार मिल पाता है। जिससे बच्चे के विकास पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। बच्चे में असुरक्षा का भाव पैदा हो जाता है और वह अपने लक्ष्य प्राप्त कर पाने में पीछे रह जाता है। इस प्रकार से एकाकी परिवार भी विघटन की ओर अग्रसर है। उक्त लेख से मेरा तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि महिलाओं को आर्थिक आत्मनिर्भरता के अवसरों को त्याग देना चाहिए या उन्हें विकसित होने का अवसर प्राप्त नहीं होना चाहिए। मेरे विचार से परिवार को, परिवार की गरिमा को एवं परिवार के बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए आपसी सामंजस्य के अधिकतम प्रयास करते रहना चाहिए। बच्चों के चरित्र निर्माण की जिम्मेदारी जो कभी घर के बुजुर्गों को हुआ करती थी, अब घर में माता पिता पर ही बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास की जिम्मेदारी है। अपने बच्चों को अच्छा नागरिक बनाना आपका कर्तव्य है। उनके लिए सिर्फ धन उपलब्ध करा देने से आपकी जिम्मेदारी पूर्ण नहीं होती। इस पावन कर्तव्य के समक्ष अपने कैरियर को दूसरे स्थान पर रखना होगा। अत: जब तक बच्चे समझदार न हो जाएँ माता या पिता में किसी एक को अपने कैरियर को अल्प विराम देना होगा ताकि बच्चे को विकास के लिए समुचित वातावरण मिल सके और वह समाज का अच्छा नागरिक बन सके।
यदि बच्चों का चारित्रिक विकास उचित दिशा में नहीं होता है, तो भावी नौजवान नशेबाज या अपराधिक प्रवृति के साथ देश की कानून व्यवस्था की चुनौती बन कर उभरेंगे और देश के विकास में बाधक बनेंगे, जिसके लिए आपको ही जिम्मेदार माना जायेगा और आपका अपना भविष्य भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पायेगा।


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