
वक्फ संशोधन बिल लोकसभा में पेश कर दिया गया। उसका पारित होना लगभग तय है। विपक्ष में जो दल मान रहे थे कि तेलुगूदेशम पार्टी (टीडीपी), जनता दल-यू, एलजेपी (रामविलास) और रालोद सरीखे धर्मनिरपेक्ष दल भाजपा के वक्फवादी एजेंडे को रोक सकते हैं, वे अब निराश होंगे, क्योंकि इन दलों ने वक्फ बिल पर भाजपा को समर्थन देने की घोषणाएं की हैं। चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार, चिराग पासवान आदि ने जो संशोधन दिए थे, मोदी सरकार ने उन्हें बिल में समाहित कर लिया है। इस बिल के जरिए प्रधानमंत्री मोदी ने बहुमत का शक्ति-परीक्षण भी साबित कर दिया है। साथ में ‘धर्मनिरपेक्षता’ की परिभाषा भी बदल दी है। चूंकि भाजपा के इन सहयोगी दलों का अच्छा-खासा मुस्लिम जनाधार है, फिर भी उन्होंने वक्फ बिल पर मोदी सरकार को समर्थन दिया है। मुसलमानों का समर्थन लेना और उन्हें समर्थन देना ही ‘धर्मनिरपेक्षता’ नहीं है। अब भाजपा-समर्थक भी धर्मनिरपेक्ष हैं। वक्फ बिल के संदर्भ में यह गौरतलब तथ्य है कि 2013 में कांग्रेस और भाजपा ने संसद में कुछ संशोधन पारित कराए थे। किसी भी दल ने वक्फ कानून में उन संशोधनों का विरोध नहीं किया था। तब भाजपा की ओर से शाहनवाज हुसैन और मुख्तार अब्बास नकवी सरीखे सांसदों ने संशोधनों का सत्यापन भी किया था। 2019 तक वक्फ की तमाम संपत्तियों का जब डिजिटलीकरण किया गया, तब भी भाजपा का सहयोग रहा। 2013 में केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार थी और ऑनलाइन रिकॉर्ड बनाने के दौरान मोदी सरकार थी। वक्फ कानून 1954 में बना, लेकिन 1955 और 1995 में भी संशोधन पारित किए गए। हर बार केंद्र में कांग्रेस सरकार थी। अब मौजू सवाल यह है कि वक्फ कानून का पुराना वक्त खत्म क्यों माना जा रहा है और नए वक्त की जरूरत क्या और क्यों है?
करीब 9.4 लाख एकड़ जमीन और 8.72 लाख संपत्तियों के मालिक वक्फ बोर्ड की कानूनन जवाबदेही और पारदर्शिता अनिवार्य है। इतनी व्यापक मिल्कीयत बेहिसाबी नहीं रखी जा सकती। यही संवैधानिक स्थिति है। ओवैसी सरीखे मुस्लिम सांसद और असंख्य मौलाना, मुफ्ती प्रस्तावित बिल की जो व्याख्या करते आ रहे हैं, वह कमोबेश भारत में संभव नहीं है। किसी भी समुदाय के मौलिक अधिकारों पर कोई प्रहार नहीं किया जा सकता। यही भ्रम ‘नागरिकता संशोधन बिल’ के दौरान भी फैलाया गया था। क्या किसी एक भी भारतीय मुसलमान की नागरिकता छिनी या उन्हें हिरासत-केंद्र में कैद किया गया? ओवैसी की जमात इन सवालों पर खामोश रहती है। दरअसल वक्फ बोर्ड किसी भी संदर्भ में निरंकुश नहीं हो सकता। किसी भी संपत्ति पर वह उंगली रख दे, वह वक्फ बोर्ड की नहीं हो सकती। संशोधन बिल में ‘धर्मपरिवर्तन’ सरीखे प्रावधान भी जोड़े गए हैं। यदि किसी को मुसलमान बने अथवा इस्लाम धर्म कबूल किए 5 साल नहीं हुए हैं, तो वह अपनी संपत्ति ‘वक्फ’, यानी अल्लाह के नाम दान, नहीं कर सकेगा। इससे ‘धर्मपरिवर्तन’ की स्थिति भी साबित हो सकेगी। यह भी कानूनी मामला है। किसी शख्स के नाम पंजीकृत जमीन को ही वक्फ किया जा सकता है। सबसे अहम बदलाव यह होगा कि वक्फ बोर्ड की संपत्तियों और उनके खातों का ऑडिट भी होगा। यह केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकार-क्षेत्र में होगा। यह साफ करना जरूरी है कि वक्फ बोर्ड धार्मिक नहीं, प्रशासनिक निकाय है। संसद संशोधन कर सकती है।