लखनऊ। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड व विभिन्न मुस्लिम संगठनों का कहना है केंद्र सरकार को तीन तलाक पर कानून का मसौदा तैयार करने से पहले मुस्लिम समाज की भी राय लेनी चाहिए थी। बोर्ड ने इस कानून को गैर जरूरी करार दिया है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य व ऐशबाग ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद ने कहा कि कानून का मसौदा तैयार करने से पहले उलमा से राय लेनी चाहिए थी। सरकार एक तरफ मुस्लिम महिलाओं के हक की बात करती है, वहीं दूसरी ओर गोरक्षा व लव जिहाद के नाम पर मुस्लिमों पर अत्याचार कर रही है। कोर्ट में सुनवाई से पहले देश की तीन करोड़ महिलाओं ने हस्ताक्षर करके शरीअत में दखल न देने की अपील की थी, सरकार ने उनकी अपील क्यों नहीं सुनी।
दूसरी ओर ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने कहा है कि एक बार में तीन तलाक पर जो भी कानून बने, कुरान की रोशनी में बनना चाहिए। मुस्लिम संगठनों से बातचीत करनी चाहिए। तीन तलाक पर जो भी मसौदा बने, वह पूरी तरह से इस्लामी होना चाहिए। उनका मानना है कि हिदू मैरिज एक्ट की तरह मुस्लिम मैरिज एक्ट बने।
तलाक देने वाले पति-पत्नी की काउंसिलिंग हो उसके बाद तलाक की प्रक्रिया होनी चाहिए। वहीं मुस्लिम महिला लीग की अध्यक्ष नाइश हसन ने कहा है कि यह महिलाओं की जीत है, लेकिन कानून बनाने से पहले मुस्लिम संगठनों से राय जरूर लेनी चाहिए। इस कानून में सभी की जिम्मेदारी व जवाबदेही तय होनी चाहिए। किसी भी बेगुनाह को सजा न मिले यह सुनिश्चित होना चाहिए।