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डॉ. सुनील चौरसिया ‘सावन’
जिस घर में सुख, शांति और सुकून है वह घर मंदिर है। जब अपनत्व और ममत्व के भाव से एक लोटा अमृत प्राप्त होता है तब उससे सिर्फ प्यास नहीं बुझती है अपितु तन-मन की थकान भी दूर हो जाती है और जिंदगी की खेती लहलहा उठाती है। जीवन में बड़ा होना बड़ी बात नहीं है। बड़ा होकर बच्चा बने रहना बहुत बड़ी बात है। जिस घर में एक दूसरे के लिए प्यार की बहार है वह घर सदाबहार है। जो घर दुनियादारी से जितना दूर है, वह घर खुशी का पुर है। जिस घर में माता-पिता का आदर है, भाई-बहन में स्नेह है, पति-पत्नी में प्रेम है और परस्पर परवाह का प्रवाह है वह घर आनन्द- कानन है। जिस घर में सहयोग का सद्भाव है। वह घर खुशी का गांव है। जिस घर में माता-पिता के आज्ञा का पालन होता है और सब उनके चरण स्पर्श करते हैं वह घर दिन दोगुनी रात चौगुनी गति से प्रगति करता है। जब मेरे मन, वचन और कर्म से मेरे माता-पिता, बेटी, पत्नी, भाई-बहन, विद्यार्थी एवं शिक्षकगण अर्थात् स्वजन खुश होते हैं तब मेरा मासूम सा मन खुशी के मारे फूले नहीं समाता है। जिन्दगी धन्य हो जाती है। जिस निकेतन में स्त्री का सम्मान होता है वह हमेशा खुशहाल रहता है। जिस गृहस्थी में पति-पत्नी की जिंदगी प्यार के बंधन में एक दूसरे पर निर्भर होती है उसमें प्रेममय संगीत गूंजता है। जिस माता-पिता ने हमारी बाल्यावस्था तथा युवावस्था को दुलारा और संवारा उनकी वृद्धावस्था को सम्मान सहित सहारा देना हमारा मूल धर्म है।
जब हम तीनों भाई सुबह-शाम एक साथ टहलते हैं तब वह मार्ग समाज के लिए अनुकरणीय सद्मार्ग बन जाता है। जिस घर में भाई के लिए भाई भलाई करता है वह घर तीर्थ-स्थल है। बड़ी सौभाग्य से परिवार में प्यार के पुष्प खिलते हैं। जहां सहयोग, सम्मान और सद्भाव का संगम है उस कुटुम्ब में कुम्भ है।