पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेवारी को लेकर गंभीर है दिल्ली विश्वविद्यालय: कुलपति प्रो. योगेश सिंह

asiakhabar.com | February 19, 2025 | 5:00 pm IST

नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय ने गैर-सरकारी संगठन “ग्रीन यात्रा” के साथ मिलकर “शहरी सघन वृक्षारोपण” करके वायु प्रदूषण से निपटने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। पर्यावरणीय स्थिरता के प्रति कुलपति की प्रतिबद्धता से प्रेरित यह हरित पहल शहरी परिवेश में पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं की परिवर्तनकारी क्षमता को प्रदर्शित करती है। मंगलवार को डीयू कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने इस सघन पौधरोपण का उद्घाटन करते हुए स्वयं भी एक नींबू का पौधा लगाया। इस अवसर पर कुलपति ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में स्थानाभाव के कारण सघन वृक्षारोपण एक अच्छी पहल है।
कुलपति ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेवारी को लेकर गंभीर है। विश्वविद्यालय में निर्माण कार्यों के दौरान जहां भी वृक्ष बीच में आते हैं, उन्हें काटने की बजाए दूसरी जगह लगाने पर काम हो रहा है। उन्होंने कहा कि निर्माण कार्यों और विस्तार कार्यों के लिए कई बार वृक्षों को हटाना तो पड़ता है, इसलिए दिल्ली विश्वविद्यालय में उपयुक्त स्थानों की पहचान करके सघन वृक्षारोपण पर और भी काम होना चाहिए, ताकि हरियाली कायम रहे। कुलपति ने कहा कि यह उद्यम न केवल पर्यावरणीय स्थिरता के लिए हमारे विश्वविद्यालय के समर्पण को दर्शाता है, बल्कि अन्य शैक्षणिक संस्थानों के लिए अनुकरणीय मॉडल के रूप में भी कार्य करेगा। कुलपति ने कहा कि वायु प्रदूषण से निपटना और हमारे शहरों में पारिस्थितिकी संतुलन बहाल करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।
दिल्ली विश्वविद्यालय उद्यान समिति की अध्यक्ष प्रो. रूपम कपूर ने बताया कि डीयू आर्ट्स फ़ैकल्टि के पास 300 वर्ग मीटर के एक छोटे से भूखंड पर विकसित यह शहरी वृक्षारोपण जापानी वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी द्वारा अग्रणी प्रसिद्ध मियावाकी तकनीक के आधार पर बनाया गया है। यह तकनीक घने समूहों में देशी पेड़ों और झाड़ियों के रोपण पर जोर देती है, जो इसे सीमित भूमि संसाधनों वाले शहरी क्षेत्रों के लिए एक आदर्श समाधान बनाती है। मियावाकी पद्धति न केवल छोटे स्थानों में हरित आवरण को अधिकतम करती है बल्कि विकास को भी गति देती है, जैव विविधता को बढ़ाती है और वायु गुणवत्ता में सुधार करती है। यह पूरी प्रक्रिया पूरी तरह से जैविक है, जिसमें मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए चावल की भूसी, सरसों की खली, वर्मीकम्पोस्ट, गौमूत्र, गुड़ और चने के पाउडर का पारंपरिक उपयोग किया जाता है। इस हरे भरे क्षेत्र में अब 41 प्रजातियों के लगभग 750 पौधे लगाए गए हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के लिए यह एक प्रयोगात्मक पहल है। यदि यह सफल साबित होता है, तो हम परिसर के भीतर उपलब्ध अन्य छोटे भूखंडों में भी सघन वृक्षारोपण तकनीक का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं।
पौधरोपण का उद्घाटन करते हुए कुलपति ने स्वयं अपने हाथों से एक नींबू का पौधा लगाया, जो पर्यावरण संरक्षण के प्रति नई प्रतिबद्धता का प्रतीक है। इस अवसर पर साउथ कैंपस के निदेशक प्रो. श्री प्रकाश सिंह, रजिस्ट्रार डॉ. विकास गुप्ता, प्रॉक्टर प्रो. रजनी अब्बी और डीन स्टूडेंट वेलफेयर प्रो. रंजन त्रिपाठी द्वारा भी अन्य देशी प्रजातियों के पौधे लगाए गए।


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