अनोखा आविष्काथर

asiakhabar.com | September 29, 2024 | 4:02 pm IST
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-शशांक मिश्र भारती-
ऊर्जा संसार का महत्वीपूर्ण संसाधन है। जिसके न होने पर संसार की गति यथास्था न रुक जायेगी।ऊर्जा के बिना संसार एक तरह से अन्धेह व्यहक्तिा सा हो जाता है। उसका कोई कार्य आगे नहीं बढ़ सकता। संसार में ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत सूर्य है। हम सब जितनी भी ऊर्जा प्राप्त् करते हैं। उसका कहीं न कहीं सम्बकन्धस सूर्य से अवश्य है। सूर्य का उगना संसार का चलना व जीवनमय रहना एक- दूसरे पर निर्भर है। जिस दिन सूर्य नहीं होगा। यह संसार यह जीवन भी नहीं होगा। सूर्य ही है जो संसार की आंखें खोलता और बन्दन करता है। वह करोड़ों मील दूर होने के बाद भी हम सबको प्रभावित करता है।
मुकुल एक प्रतिभावान छात्र है।षहर के द्रोपदी देवी इण्टदर कालेज मे पढ़ता है। इस विद्यालय में वह जब से आया है। उसने अपने आपको बहुत आगे बढ़ाया है। विद्यालय में अच्छेे कार्यों के लिए जब भी कोई चर्चा होती है।तब मुकुल का नाम न आये। ऐसा हो नहीं सकता। विशेषकर पिछले साल की विज्ञान प्रदर्शनी ने तो उसे पूरे नगर में चर्चित कर दिया। उसके द्वारा किये गये आविष्कार छोटे थे। अनुमान से लागत भी कम थी। पर उसके रेडियो से बनाये गये बायरलैस ने सबको चौंका दिया था। जब उसका वायरलैस गलती से पुलिस अधीक्षक कार्यालय से लगा और कप्ताचन साब ने आकर उससे लम्बीम पूछ -ताछ की। अन्तक में अपने क्षेत्र में निरन्तेर आगे बढ़ने का आशीर्वाद देकर वापस चले गये।
इस बार 27 फरवरी को पिछले सालों की भांति विज्ञान दिवस मनाया जा रहा है। चारों ओर तैयारियों का जोर है। हर कोई इस अवसर पर कुछ न कुछ नया कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाना चाहेगा। नये-नये आविष्का र करेगा। अपने प्रदर्शन से अपना व अपनी संस्था का नाम रोशन करेगा।
विद्यालय का सबसे मेधावी छात्र अपने मित्र गौरव के साथ इस बार भी कुछ नया व अनोखा करने की तैयारी में लगा है। उसका मानना है कि उसकी खोज न केवल नयी हो, अपितु विश्व की किसी समस्यास का समाधान करने लायक भी हो। वह मात्र प्रदर्शनी उसमें वाह-वाही तक सिमटकर न रह जाये। बाद में भी उसका उपयोग हो सके।
आखिर दिन बीतने के साथ ही वह अवसर भी आ गया जिसका कि सभी को इन्तअजार था। विद्यालय के फैले विशाल प्रांगण में बड़े -बड़े पंडाल लग गये। सारा कालेज परिवार तैयारियों में जुटे था। बच्चेल भी अपने-अपने नवीन आविष्कालरों को अन्तिपम रूप दे रहे थे। नगर भर के विद्यालयों की प्रतिष्ठाभ दांव पर थी। इस बार किस संस्था‍ और बच्चाि नाम कमायेगा। सबकी आंखें इसी प्रश्न को तलाश रही थीं।
निश्चित समय पर सभी ने अपना प्रदर्शन आरम्भ। किया। इस बार जिला विज्ञान प्रभारी मुख्यू विकास अधिकारी के साथ प्रदर्शनी का अवलोकन कर रहे थे।
मां शारदे के समक्ष दीप-प्रज्व्न लन से उद्‌घाटन के बाद प्रदर्शनी का अवलोकन प्रारम्भआ हुआ। विद्यालय के प्रधानाचार्य मुख्य -अतिथियों व अन्य संस्थाघओं से आये निर्णायकों के साथ निरीक्षण आरम्भा हुआ। निरीक्षण का आरम्भय शिखर के माडल से हुआ। उसने बैटरी से चलने बाला कूलर बनाया गया था। उसके बाद यह दल सूरज, नितेष, प्राची, प्रेरणा, जतिन के स्टाथलों के समीप पहुंचा। उनका प्रदर्शन देखा। अब बारी थी मुकुल की। इस बार उसने दो माडल तैयार किये थे। दोनों का सम्बपन्धख ऊर्जा से था। अपने समक्ष आते ही उसने बड़े आदर से अतिथियों को बतलाया।
आज जब ऊर्जा अत्य‍न्त‍ आवश्यक है। जीवन का वास्तहविक सेतु है। मेरा मानना है, कि मेरे यह आविष्कारर उसमें सहायक होंगे। मुकुल ने बताया,
महोदय मेरा यह पहला प्रयोग समुद्र से सम्ब न्धि त है। आप सब तो जानते हैं कि संसार का दो तिहाई जल है। समुद्र में ऊंची-ऊंची लहरें उठती हैं। इन लहरों के तीव्र जल को टरबाइनों पर डालकर विद्युत उत्पऊन्नऊ की जा सकती है। कुछ इस तरह से। प्रयोग दिखाते हुए मुकुल बोला,
ठीक है। इसपर विचार हों सकता है। अब दूसरे माडल के समबन्धी में बताओ, मुख्य अतिथियों ने पूछा-
श्रीमान मेरे दूसरे आविष्काअर का सम्बबन्धध पहाड़ों पर बहने और बिना उपयोग के बड़ी मात्रा में तीव्र गति से गिरने व बहने वाले जल से है। जिसका अधिकांश भाग व्य‍र्थ जाता है। बरसात में जल आपदा का कारण बनता है।
इस बहते हुए जल को छोटे-छोटे बांध बनाकर उपयोग में लाया जा सकता है। ऊर्जा बनायी जा सकती है। कुछ इस प्रकार से कम व्यछय और समय में। अपने माडल को समझाते हुए मुकुल बोला,
प्रदर्शनी के सभी माडलों का प्रदर्शन हो चुका था। मुख्य। अतिथिगण व निर्णायक गण लगे थे परिणाम तैयार करने में। इधर सभी की उत्सुचकता बढ़ती जा रही थी। सबके अपने- अपने अनुमान थे।
समय आने पर पुरस्कामरों की घोषणा हुई। मुख्य अतिथि ने पहले सबके माडलों पर संक्षेप अपने विचार रखे। उनकी उपयोगिता से लाभ उठाने को कहा,जब प्रथम पुरस्काहर की घोषणा हुई तो हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। इस बार भी प्रदर्शनी का सर्वश्रेष्ठह सम्माघन मुकुल को दिया गया। यही नहीं उसकी प्रशंसा करते हुए कहा- कि आज की प्रत्येपक क्षेत्र में बढ़ती ऊर्जा आवष्ययकताओं को देखते हुए मुकुल का आविष्का र महत्वषपूर्ण है। यह उसके संकट के समाधान का माध्ययम बन सकता है। विज्ञान जगत को इस ध्या्न देना चाहिए।
इसके बाद प्रदर्शनी का समापन हो गया। सभी अपने- अपने घर लौट गये। मुकुल के चेहरे पर इस बात का संतोष था, कि श्रम सार्थक हुआ।


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