सेबी प्रमुख माधवी पुरी बुच की विदेशी फंड में हिस्सेदारी?

asiakhabar.com | August 11, 2024 | 4:00 pm IST
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-सनत जैन-
सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया (सेबी) की चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच पर हिडनबर्ग ने तथ्यों के साथ दस्तावेज सहित माधवी बुच और उनके पति धवल बुच के खिलाफ बड़े गंभीर आरोप लगाए हैं। मॉरीशस की ऑफशोर कंपनी ग्लोबल डायनॉमिक अपॉर्चुनिटी फंड में हिस्सेदारी के दस्तावेज, हिडनबर्ग ने उजागर किए हैं। गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी ऑफशोर कंपनियों के माध्यम से अडानी समूह की कंपनियों में शेयरों के दाम बढ़ाने तथा निवेश करने के आरोप लगाए हैं। हिडनबर्ग का आरोप है कि अडानी समूह पर सेबी द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई। सेबी ने उस समय भी कोई प्रतिक्रिया दी थी। जब इस मामले में तूल पकड़ा, तो सुप्रीम कोर्ट ने आरोपों की जांच का जिम्मा सेबी को सौंप दिया। सेबी अध्यक्ष के पद पर माधवी पुरी स्वयं आसीन थी। इस गड़बड़ झाले में उनके और उनके पति की सहभागिता थी। जिसके कारण उन्होंने जांच करना तो दूर, स्वयं अपने आप को बचाने के लिए जांच ही नहीं होने दी। 27 जून 2024 को सेबी ने हिंडन वर्ग को एक नोटिस जारी किया था। उसके बाद हिडनबर्ग ने माधवी पुरी और धवल बुच की सच्चाई वाली 10 अगस्त 2024 को नई रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में दस्तावेजों के साथ हिडनबर्ग ने खुलासा किया है। हिडनबर्ग के दस्तावेजों के अनुसार 22 मार्च 2017 को उनके पति धवल बुच ने मॉरीशस फंड प्रशासक ट्राईडेंट ट्रस्ट को ईमेल किया था। उसमें लिखा गया था, कि उनका और उनकी पत्नी माधवी पुरी का ग्लोबल डायनेमिक अपॉर्चुनिटी फंड में निवेश है। धवल ने आग्रह किया था, कि इस फंड का अकेले ऑपरेट करने का अधिकार उनको है। माधवी पुरी ने भी अपने ईमेल से अपने शेयर अपने पति को ट्रांसफर करने की सूचना कंपनी को दी थी। उसके बाद अप्रेल 2017 से डायरेक्टर के रूप में माधवी बुच सेबी में काम कर रही हैं। पूर्व सेबी प्रमुख अजय त्यागी के सेवानिवृत्ति के बाद 28 फरवरी 2022 से पूर्णकालिक सेबी अध्यक्ष के रूप में उनकी नियुक्ति 3 साल के लिए की गई है। 2017 के बाद से आफसोर कंपनियों द्वारा शेयर बाजार में बड़ी मात्रा में निवेश किया जा रहा है। शेयर बाजार में ऑफशोर कंपनियों के माध्यम से अडानी समूह के शेयरों में निवेश किया गया। कृत्रिम तेजी का जो खेल शेयर बाजार में खेला जा रहा था। उसे हिडनबर्ग की रिपोर्ट में उजागर किया है। हिडनबर्ग की उस रिपोर्ट के बाद अडानी समूह को 7.20 लाख करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा था। दुनिया के सबसे बड़े तीसरे नंबर के आदमी की सूची में वह पहुंच गए थे। लेकिन जैसे ही हिडनंबर्ग की रिपोर्ट आई। अडानी समूह को लाखों करोड़ का नुकसान हुआ। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट गया। सुप्रीम कोर्ट ने जांच का जिम्मा सेबी को सौंप दिया था। माधवीपुरी और उनके पति खुद इस मामले में संलिप्त थे। अतः उन्होंने हिंडन बर्ग की रिपोर्ट में जिन कंपनियों के नाम दिए गए थे, उन कंपनियों की जांच ही नहीं होने दी। अब हिडेनबर्ग ने जो रिपोर्ट जारी की है, उसमें उसने सेबी प्रमुख का कच्चा चिट्ठा उजागर कर दिया है। शेयर बाजार के सारे घपले घोटाले एक-एक करके सामने आने लगे हैं। अडानी समूह के साथ जुड़े रहने के कारण ही माधवी पुरी को सेबी का पूर्णकालिक डायरेक्टर बनाया गया। इस तरह के आरोप पहले भी लगते रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा जो नोटबंदी की गई थी। उसमें कालेधन को खत्म करने की बात कही गई थी। नोटबंदी के बाद रिजर्व बैंक द्वारा जारी नोट के 99 फीसदी से ज्यादा नोट बैंक में वापिस जमा हो गये। देश का पूरा काला धन बैंकों में वापस आकर सफेद हो गया। यही कालाधन बाद में शेयर बाजार में लगा। जिनके पास काला धन था, उन्हें नोटबंदी के बाद शेयर बाजार के माध्यम से भारी कमाई होने लगी। नोटबंदी के बाद शेयर बाजार ने बेलगाम घोड़े की तरह तेज रफ्तार पकड़ ली। विदेशों में जमा काला धन ऑफशोर कंपनियों के माध्यम से भारतीय शेयर बाजार में निवेश होने लगा। शेयर बाजार में मुनाफा वसूली के जरिए कालाधन कमाई का एक नया जरिया बन गया। सेबी प्रमुख की सरपरस्ती में विदेश से काला धन बड़ी मात्रा में आकर शेयर बाजार में लगता रहा। कृत्रिम तेजी और मंदी के खेल में अडानी समूह दुनिया के तीसरे नंबर के रईसों में शामिल हो गया था। शेयर बाजार के नियमों का उल्लंघन करके भारी कमाई अडानी समूह ने की है। इसका लाभ भी सेबी प्रमुख के पति धवल बुच को भी मिला है। हिडनबर्ग ने जो नई रिपोर्ट प्रस्तुत की है, उसमें इसका उल्लेख है। शायद यह मामला दबा रह जाता। सेबी प्रमुख माधवी बुच ने हिडनबर्ग को नोटिस जारी कर आग में घी डाल दिया। घायल शेर को नोटिस जारी करके एक बार फिर से जगा दिया। इस बार हिंडन बर्ग ने जो हमला किया है, वह रामबाण की तरह है, जो निशाने पर जाकर लगेगा। इसकी प्रतिक्रिया भारत सहित दुनिया के सभी देशों के शेयर बाजार में होना तय है। विनोद अडानी भारतीय नागरिक नहीं हैं। उन्होंने टैक्स हेवन देश की नागरिकता ले रखी है। टैक्स हेवन देश मॉरीशस, बरमूड़ा, सिंगापुर के रास्ते कालाधन भारत के शेयर बाजार में निवेश किया गया। इसमें अधिकांश निवेश अडानी समूह की कंपनियों में किया गया है। इस समूह के साथ माधवी पुरी और उनके पति धबल बुच की सीधी भागीदारी है। हिंडन वर्ग द्वारा जो नई रिपोर्ट पेश की है। उसमें जो दस्तावेज लगाए गए हैं। उससे यह प्रमाणित है। इस रिपोर्ट के सामने आते ही कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए कहा- अब पता चला है, संसद का सत्र 9 अगस्त को अचानक क्यों स्थगित कर दिया गया। उन्होंने लिखा है, प्रहरी की सुरक्षा अब कौन करेगा। शिवसेना की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी कहा है, हिडनबर्ग की रिपोर्ट से अब स्पष्ट हो गया है। सेबी ने अडानी की कंपनियों की जांच का विवरण सुप्रीम कोर्ट में क्यों नहीं दिया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की अनदेखी पर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जाँच कमेटी बनाई गई थी। उसने भी जांच के नाम पर लीपा पोती की है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अनदेखा किया है। पहिले जब हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आई थी। उसके बाद अडानी समूह द्वारा मीडिया को नोटिस जारी कर मानहानि की धमकी दी थी। सरकार ने इसे राष्ट्रीय हितों से जोड़कर अडानी समूह को बचाने का काम किया था। ईड़ी और सीबीआई ने जो आरोप हिंडनबर्ग ने लगाए थे, उसकी जांच शुरू नहीं की। दोनों एजेंसियों को इसकी जांच स्वयं करनी चाहिए थी। कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने सेबी की अध्यक्ष माधवी पुरी और उनके पति धवल बुच, के बरमूडा ओर मारिशस स्थित ऑफशोर फंड में किए गए निवेश, विनोद अडानी और उनके सहयोगी चाँग चुंग-लिंग और नासिर अली शाहबान के खिलाफ जांच की मांग की है। अदानी समूह द्वारा ओवर इनवाइसिंग और सेबी के नियमों का उल्लंघन करते हुए फंड्स में जो निवेश किया गया है। उसकी जांच करने की मांग सरकार से की है। जयराम रमेश ने इस महाघोटाले की व्यापक जांच के लिए सरकार से तुरंत जेपीसी गठित करने की मांग की है। एक के बाद एक जिस तरह से संवैधानिक संस्थाओं के ऊपर भ्रष्टाचार, पक्षपात और मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं। उससे लोगों का विश्वास जांच एजेंसियों और संवैधानिक संस्थाओं से घट रहा है। लाखों करोड़ों रुपए के घोटाले हो रहे हैं। ईड़ी और सीबीआई जैसी संस्थाएं चुप हैं। शेयर बाजार की नियामक संस्था सेबी स्वयं गलत कामों में लिप्त है। न्यायपालिका भी सरकार के विरोध में निर्णय करने से डरने लगी है। जिससे न्यायपालिका की विश्वसनीयता दिनों-दिन कम होती जा रही है। अब लोगों में संवैधानिक संस्थाओं और जांच एजेंसियों के ऊपर विश्वास खत्म होता जा रहा है। संवैधानिक संस्थाओं और जांच एजेंसियों में योग्य, निष्पक्ष और जिम्मेदार व्यक्तियों की नियुक्ति ही नहीं हो रही है। इस कारण सरकार की साख भी गिर रही है। यह स्थिति लोकतंत्र और कानून व्यवस्था के लिए चिंता का विषय बन गई है।


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