हरी राम यादव
आज से ठीक 25 साल पहले के उन दिनों को याद कर देश उन वीरों के समक्ष नतमस्तक है जिन्होंने मां भारती की रक्षा में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था । आज के ही दिन हमारी सेना ने अपने अदम्य साहस और वीरता के बल पर पाकिस्तानी सेना को धूल चटायी थी । सन् 1999 में कारगिल की गगनचुंबी पहाड़ियों और माइनस जीरो डिग्री के नीचे तापमान में हमारे देश के रण बाकुरों ने जो युद्ध लड़ा, वह युद्ध आपरेशन विजय के नाम से जाना जाता है । वैसे यह युद्ध कारगिल युद्ध,के नाम से ज्यादा जाना जाता है। कारगिल जम्मू और कश्मीर का एक जिला है जो कि वर्तमान समय में लद्दाख का भाग है।
जम्मू कश्मीर राज्य की सीमा पर भारत और पाकिस्तान के बीच लगभग 814 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा का निर्धारण किया गया है। यह नियंत्रण रेखा जम्मू कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों राजौरी, पुंछ, उड़ी, कारगिल और लेह होते हुए सियाचिन तक जाती है। इस नियंत्रण रेखा से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग 1ए है जो कि श्रीनगर, कारगिल, द्रास और लेह को जोड़ता है । इस राजमार्ग के बंद होते ही लेह का संबंध देश से टूट जाता है। इन क्षेत्रों में 6000 फीट से 17000 फीट तक की ऊंचाई वाले पहाड़ है, जिन पर पूरे वर्ष 20 से 30 फीट तक मोटी बर्फ जमी रहती है । इस क्षेत्र में 15000 फीट तक गहरी खाईयां, दूर दूर तक फैली कटीली झाड़ियां तथा संकरे और दुर्गम मार्ग हैं। इन क्षेत्रों में पूरे वर्ष बर्फ जमीं रहती है , सितंबर अक्टूबर में तापमान शून्य से भी नीचे पहुंच जाता है।
पाकिस्तान की प्रवृत्ति हमेशा धोखे की रही है। वह जानता है कि घोषणा करके युद्ध लड़ना उसके बस की बात नहीं है। उसने 1947 तथा 1965 के दोनों युध्दों में भी शुरू में अपने नियमित सैनिकों को कबीलाई कहता रहा है। वह इस बार भी अपने नियमित सैनिकों को मुजाहिदीन कहता रहा। कारगिल का यह युध्द पिछले बीस सालों से चले आ रहे जिहादियों की नीति के पोषक पाकिस्तान तथा उसकी दबी इच्छाओं का अभियान था। यह अनेक मामलों में पहले की दोनों लड़ाइयों से भिन्न है। भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में 03 मई से 26 जुलाई तक कश्मीर के कारगिल जिले में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए भीषण युद्ध को कारगिल युद्ध के नाम से जाना जाता है। कारगिल युद्ध वही लड़ाई थी जिसमें पाकिस्तानी सेना ने द्रास, कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा करने की कोशिश की थी। भारतीय सेना ने इस लड़ा़ई में पाकिस्तानी सेना को बुरी तरह परास्त किया था।
03 मई 1999 को एक चरवाहे ने बटालिक सेक्टर की पहाड़ियों में कुछ पाकिस्तानी लोगों को देखा । उसे पहाड़ियों के ऊपर कुछ गड़बड़ लगी। उसने वहां से वापस जाकर इसकी सूचना भारतीय सेना की 3 पंजाब रेजिमेंट को दी। इस सूचना की पुष्टि के लिए 3 पंजाब रेजिमेंट के कुछ जवान उस चरवाहे के साथ बतायी हुई जगह पर गये। उन्होंने टेलीस्कोप से काफी छानबीन की। भारतीय सैनिकों ने देखा कि पहाड़ियों पर कुछ लोग घूमते हुए दिखायी पड़ रहे हैं। सैनिकों ने वापस जाकर इस घटना की खबर अपने उच्च अधिकारियों को दी। इस खबर को सुनकर सेना हरकत में आ गयी। लगभग दो बजे एक हेलीकाप्टर से उन पहाड़ियों पर नजर दौड़ाई गयी, तब जाकर पता चला कि बहुत सारे पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल की पहाड़ि़यों पर कब्जा जमा लिया है।
घुसपैठियों के वेष में धोखेबाज पाकिस्तानी सैनिक कारगिल स्थित द्रास, मश्कोह, बटालिक आदि अनेक महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अपना ठिकाना बनाकर पूरी सामरिक तैयारी के साथ आक्रमण के उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे। इसी क्रम में 05 मई को स्थिति का जायजा लेने के लिए एक पेट्रोलिंग पार्टी भेजी गयी। जिसे पाकिस्तानी सैनिकों ने पकड़ लिया और उनमें से 05 सैनिकों की निर्मम हत्या कर दी । 3 पंजाब ने क्षेत्र में गश्त बढ़ा दी और 7 मई 1999 तक घुसपैठ की पुष्टि हो गयी। 3 इन्फेंट्री डिवीजन के मुख्यालय ने तत्काल कारवाई शुरू कर दी। 10 मई 1999 तक बटालिक सेक्टर में और दो बटालियनों को तैनात कर दिया गया। इस क्षेत्र में अभियान की कमान संभालने के लिए 70 इन्फेंट्री ब्रिगेड का मुख्यालय बटालिक में स्थापित कर दिया गया। 09 मई को पाकिस्तानी हमले में कारगिल में स्थित आयुध भंडार नष्ट हो गया। 10 मई को पता चला कि द्रास, मश्कोह और काकसर में भी पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठ की है। इसके बाद अन्य क्षेत्रों में भी सतर्कता बढ़ा दी गयी। इस बात की भी पुष्टि हो गयी कि दुश्मन तुरतुक सेक्टर में नियन्त्रण रेखा और उसके दूसरी ओर भी मोर्चा संभाल चुका है। 18-31 मई के बीच चोर बाटला सेक्टर में कुछ ओर सैनिक टुकड़ियां तैनात कर दी गयीं और इस क्षेत्र में दुश्मन के घुसपैठ के प्रयासों को पूरी तरह नाकाम कर दिया गया ।
कारगिल में जो कुछ देखने को मिल रहा था उससे पता चल गया कि वह अपने नियमित सेना का प्रयोग करके हमारी जमीन पर कब्जा करने की सोची समझी योजना का हिस्सा है । यह भी स्पष्ट था कि जिन चोटियों पर दुश्मन ने कब्जा कर लिया था उन्हें खाली कराने के लिए संसाधन और अच्छी तैयारी की आवश्यकता होगी। शुरूआाती दिनों में दुश्मन को भगाने के जो प्रयास किये गये, उनमें काफी संख्या में हमारे सैनिक हताहत हुए क्योंकि दुश्मन ऊंची पहाड़ियों पर बैठा हुआ था। जहां से हमारी हर गतिविधि दिखाई पड़ती थी। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए 26 मई को भारतीय वायुसेना को भी इस अभियान में शामिल कर लिया गया । भारतीय वायु सेना ने “सफेद सागर” नाम से अपना अभियान शुरू किया। शुरूआती दौर में हमारी वायुसेना को भी क्षति उठानी पड़ी लेकिन बाद में उसने अपनी रणनीति में सुधार किया। वायुसेना ने आगे के अभियान के लिए थलसेना को अत्यंत महत्वपूर्ण सहायता पहुंचाई। वायु सेना के माध्यम से दुश्मन की शक्ति और उसकी तैनाती के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएं प्राप्त हुईं।
रैकी से पता चला कि बटालिक, कारगिल, द्रास और मश्कोह सेक्टरों में दुश्मन की एक एक एक ब्रिगेड तैनात थी। प्रत्येक ब्रिगेड में शुरू में पाकिस्तान की नार्दन लाइट इन्फेंट्री की 02 बटालियनें, स्पेशल सर्विसेज ग्रुप की 02 कम्पनियां और फ्रंटियर कोर के लगभग 600-700 सैनिक थे। इसके अतिरिक्त प्रत्येक ब्रिगेड में लगभग 02 तोपखाना की यूनिटें, इंजीनियर, सिग्नल और प्रशासनिक इकाईयां शामिल थीं । आरम्भ में दुश्मन से उन क्षेत्रों को खाली कराने की योजना थी, जहां से वे राष्ट्रीय राजमार्ग 1ए पर अपना अधिकार जमाए हुए थे और उसके बाद अन्य क्षेत्रों से दुश्मन को खदेड़ने की योजना थी। राजनीतिक और कूटनीतिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए नियन्त्रण रेखा के उस पार न जाने का निर्णय लिया गया । प्राथमिकता के आधार पर सबसे पहले द्रास सेक्टर, मश्कोह घाटी, बटालिक सेक्टर और फिर काकसर सेक्टर को सुरक्षित करने की योजना बनाई गयी।
8 माऊंटेन डिवीजन को कारगिल, द्रास और मश्कोह सेक्टरों से पाकिस्तानियों को भगाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी। उसके नियन्त्रण में तीन माऊंटेन ब्रिगेड थी। 3 इन्फेंट्री डिवीजन बटालिक और तुरतुक के क्षेत्रों के अभियान की जिम्मेदारी सम्भाले हुए थी। एक माऊंटेन ब्रिगेड को बटालिक सेक्टर के अभियान की कमान संभालने के लिए पहले ही रवाना कर दिया गया था। द्रास – मश्कोह सेक्टर में सबसे पहले तोलोलिंग पर कब्जा करने की योजना थी । द्रास में 18 ग्रिनेडियर्स तोलोलिंग पर कब्जा करने के लिए तीन प्रयास पहले ही कर चुकी थी। 02 जून को 18 ग्रिनेडियर्स ने तोलोलिंग पर कब्जा करने के लिए अपना चौथा प्रयास किया। भारी प्रतिरोध का सामना करते हुए वह 10 जून तक ऐसे स्थान पर पहुंच गयी जो पाकिस्तानी पोजीशन से लगभग 30 मीटर नीचे था।
2 राजपूताना राइफल्स ने 12 जून को तोलोलिंग पर कब्जा करने के लिए उस स्थान को एक मजबूत आधार के रूप में प्रयोग किया। 12 जून को रात 11 बजे उसने हमला शुरू किया और घमासान लड़ाई के बाद प्वाइंट 4590 पर कब्जा कर लिया। उसके बाद 18 ग्रिनेडियर्स ने 12 राजपूतना राइफल्स के साथ आगे बढकर प्वाइंट 4590 से 03 किमी आगे पोजीशन पर कब्जा कर लिया। बाद में प्वाइंट 5140 पर हमला करने के लिए इसी प्वाइंट 4590 का प्रयोग किया गया। प्वाइंट 5140 पर कब्जा करने के लिए 13 जम्मू कश्मीर राइफल्स ने दो बार प्रयास किये लेकिन उसे ज्यादा सफलता नही मिली थी। 19 जून को 18 गढवाल राइफल्स, 13 जम्मू कश्मीर राइफल्स और 1 नागा ने एक साथ मिलकर हमला किया । अंततोगत्वा 20 जून को रात 3:35 बजे तक पोजीशन पर कब्जा कर लिया गया। 29 जून को भारतीय सेना ने टाइगर हिल के पास की दो पोस्ट 5060 व 5100 पर फिर से तिरंगा लहराया। यह पोस्ट हमारी सेना के नजरिए से महत्वपूर्ण थी इसीलिए इसे जल्दी कब्जा किया गया।
02 जुलाई के दिन भारतीय सेना के जवानों ने कारगिल को तीन तरफ से घेर लिया। दोनों देशों की तरफ से खूब गोलीबारी हुई। अंततः टाइगर हिल पर हमारी सेना ने तिरंगा लहराया। हमारी सेना ने धीरे धीरे सभी पोस्टों पर कब्जा जमा लिया। 26 जुलाई को आधिकारिक तौर पर कारगिल युद्ध को समाप्त घोषित कर दिया गया । अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस युद्ध में हमारे देश के कुल 674 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए और 1363 घायल हुए जबकि पाकिस्तान के 1200 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे । इस युद्ध में अदम्य साहस और वीरता के लिए देश के बहादुर सैनिकों को 04 परमवीर चक्र ,10 महावीर चक्र और 70 वीर चक्र प्रदान किए गए हैं। इस युद्ध में उत्तर प्रदेश के 103 जवान वीरगति को प्राप्त हुए और उन्हें उनकी वीरता के लिए 02 परमवीर चक्र तथा 01 महावीर चक्र प्रदान किया गया । इस युद्ध में 17 यूनिटों को उनकी बहादुरी के लिए चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ यूनिट साइटेशन प्रदान किया गया ।
इस युद्ध में भारतीय तोपखाना की तोपों ने पाकिस्तानी सेना की कमर तोड़ दी थी । बोफोर्स , 130 एम एम , 105 एम एम की तोपों ने हमारी पैदल सेना को बहुत ही श्रेष्ठ और अचूक कवरिंग फायर प्रदान किया था । इनकी कवरिंग फायर के बिना पाकिस्तानी सेना को गगनचुम्बी चोटियों से खदेड़ना मुश्किल था । इस युद्ध में सेना वायु रक्षा कोर की यूनिटों ने पूरे युद्ध क्षेत्र को अभेद्य हवाई सुरक्षा प्रदान की थी । इन यूनिटों की निगहबानी के कारण पाकिस्तान हवाई हमलों की हिम्मत नहीं जुटा पाया क्योंकि वह 1971 के युद्ध में अपने युद्धक विमानों और वायु सेना के फाइटर पायलट का हश्र देख चुका था । 1971 के युद्ध में सेना वायु रक्षा कोर (तब तोपखाना) के तोपचियों ने पाकिस्तानी युद्धक विमानों के परखच्चे उडा दिए थे ।
कारगिल की दुर्गम चोटियों पर लड़ें गये इस युद्ध में हमने अपने बहुत से बहादुर जवानों को खोया है। विजय दिवस आते ही उन परिवारों के दुख पुनः हरे हो जाते हैं । हम सब का कर्तव्य है कि हम उन वीरगति प्राप्त सैनिकों के परिजनों की हर संभव मदद करें, उन्हें सम्मान दें ताकि वह परिवार स्वयं को अकेला महसूस न करें। सरकार और विभिन्न सरकारी कार्यालयों में उच्च पदों पर बैठे लोग उस समय वीरगति प्राप्त सैनिकों के परिजनों से किया गया वादा भूल चुके हैं। कारगिल ही क्या अब तक सेना द्वारा लड़ें गये अन्य युद्धों के वीरगति प्राप्त सैनिकों के परिजनों का कमोबेश यही हाल है। केवल दिवस मनाने, अमर रहें के नारे लगाने या वीरगति प्राप्त सैनिकों की प्रतिमाओं पर पुष्प चढ़ा देने से हमारे कर्तव्यों का निर्वहन नहीं हो जाता। हमारे देश के वीरों ने सैनिक बनने के समय देश से किया गया अपना वादा पूरा कर दिया है, अब बारी देश, समाज और जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों की है कि वह बिना किंतु परंतु किए हुए वीरगति प्राप्त सैनिकों के परिजनों की देखरेख करें और उन्हें सम्मान दें।