जब हम इंटरव्यू के लिए जाते हैं, तो जितना हमारा वर्बल कम्युनिकेशन मायने रखता है, उतना ही नॉन-वर्बल कम्युनिकेशन भी महत्वपूर्ण होता है। आइए जानते हैं, इंटरव्यू पैनल के सामने हमारा नॉन-वर्बल कम्युनिकेशन कैसा हो…।
बॉडी लैंग्वेज
नॉन-वर्बल कम्युनिकेशन हमारे एक्सप्रेशंस के माध्यम से होता है। हमारी बॉडी लैंग्वेज, ड्रेस, बैग आदि हमारे और हमारी सोच के बारे में बहुत कुछ कह देते हैं। इंटरव्यू में सफलता के लिए इस तरह के कम्युनिकेशन की एबीसीडी को समझना बेहद जरूरी है।
आई कॉन्टैक्ट
इंटरव्यूअर्स से आई कॉन्टैक्ट टूटा नहीं कि इसे कॉन्फिडेंस में कमी मान लिया जाएगा। बेस्ट परफॉर्मेंस के लिए जो भी इंटरव्यूअर सवाल करे, उसकी ओर हल्की-सी गर्दन घुमाएं और जवाब दें। इस तरह आई कॉन्टैक्ट सभी से बना रहेगा।
यदि कोई मेंबर सवाल करने के साथ आंखों पर जोर देते हुए तिरछी निगाह से आपको और अपने साथियों को देखे, तो समझें कि उसके इसी सवाल पर अधिकतर मार्क्स डिपेंड करते हैं। किसी जवाब पर इंटरव्यूअर्स एक-दूसरे को देखें, उनके फेस रिलैक्स हों और वे उसी से जुड़ा दूसरा सवाल कर दें, तो जान लें कि आपका जवाब सही था।
फेशियल एक्सप्रेशंस
इंटरव्यूअर हमारी फेस रीडिंग करते हैं। हमसे कोई सवाल पूछा जाए और उसका जवाब हमें नहीं मालूम हो, लेकिन हम इधर-उधर की बातें करके पैनल मेंबर्स को कन्फ्यूज करने की कोशिश करते हैं, तो हमारा चेहरा हमारे वर्बल कम्युनिकेशन का साथ छोड़ देता है।
हमारी आंखें इधर-उधर होने लगती हैं। माथे पर बल पड़ जाते हैं और होंठ सूखने लगते हैं। न कहते हुए भी सब कुछ कम्युनिकेट हो जाता है कि हम उलझा रहे हैं। इंटरव्यू में पैनल को उलझाने से बेहतर है कि सॉरी कहकर अगले सवाल का सामना करने के लिए तैयार हो जाएं।
सिटिंग पोजीशन
इंटरव्यू में कैंडिडेट की सिटिंग पोजीशन भी उसके बारे में कम्युनिकेट करती है। पैनल के सामने चेयर पर बहुत आगे की ओर झुककर न बैठें। यह कम्युनिकेट करता है कि आप पूरी उम्मीद से कुछ मांगने आए हैं। बहुत-से एक्सपर्ट आराम से टेक लगाकर बैठने का मतलब फुल ऑफ कॉन्फिडेंस बट नॉट सिंसियर के तौर पर लेते हैं।
उनके मन में कैंडिडेट की ऐसी इमेज बन जाती है कि शायद वह ओवर कॉन्फिडेंस में चीजों को गंभीरता से नहीं लेता। अतः चेयर पर सीधे बैठें, बस हल्का-सा बैक-सपोर्ट लें। इससे यह संदेश जाएगा कि आपमें सिंसियरिटी और कॉन्फिडेंस दोनों ही मौजूद हैं।