-संजय गोस्वामी-
जी हाँ महंगा पर सकता है ऐ सौदा क्योंकि श्री राज ठाकरे के एनडीए में शामिल होने से एनडीए को ख़ासकर हिन्दी बाहुल्य इलाके खासकर बिहार और उप्र में नुकसान हो सकता है इसका कारण है मनसे द्वारा महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय पर टिका टिपण्णी और बहुत से फेरिवालो से मुंबई में मारपीट का मामला इससे उस पार्टी ने एक ऐसी छाप छोड़ी है जिससे उसके अपने ही घर में सिर्फ 1विधानसभा में ही जीत मिली है जो वर्षों पहले मार पिट के शिकार हुए होंगे वह कभी वोट नहीं देंगे और उप्र, बिहार एनडीए का बेस है कोरोना में भी अवसर था लेकिन आरएसएस व माननीय मुख्यमंत्री योगीजी ने अच्छा काम किया और पुनः जीत गए अतः महाराष्ट्र में भी आपस में ही टकराव है ऐसे में हो सकता है कुछ जनाधार मिल जाए लेकिन उसका खामियाजा उत्तर भारत में खासकर ग्रामीण इलाके में गरीब लोग जो रोजी रोटी की तलाश में मुंबई आते हैं और किसी पार्टी के इसारे पर बेरहमी से पीटा जाता हो तो क्या वह वोट करेंगे? एक प्रश्नचिन्ह है। 2024 लोकसभा चुनावों से पहले महाराष्ट्र में बड़ी सियासी हलचल सामने आई है। बीजेपी के अगुवाई वाले महायुति में महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे की एंट्री तय मानी जा रही है। दावा किया जा रहा है कि जल्द ही महायुति के चौथे पार्टनर के तौर पर मनसे का नाम घोषित हो सकता है। महाराष्ट्र में राज ठाकरे को साथ लेने के पीछे कहा जा रहा है कि इससे बीजेपी उद्धव ठाकरे फैक्टर को काटकर महाविकास अघाड़ी को और कमजोर कर सकेगी, लेकिन इसी के साथ सवाल खड़ा हो रहा है कि पूर्व में उत्तर भारतीयों के नजर में खलनायक रहे राज ठाकरे को साथ लेकर बीजेपी यूपी-बिहार जैसे हिन्दी पट्टी वाले राज्य में सियासी नुकसान उठाना चाहेगी। राज ठाकरे पूर्व में हिन्दी भाषा को लेकर भी सवाल खड़े करते आए हैं। उन्होंने दिसम्बर, 2018 में कहा था कि हिन्दी राष्ट्रीय भाषा नहीं है फिर राजनीति में कुछ भी चलता है मनसे का एनडीए में शामिल होते ही उत्तर भारतीय में नाराजगी कई चैनलों में खुलकर आई और चूंकि 10साल में किसी भी पार्टी के लिए एंटी-इनकंबेंसी यानी सत्ता-विरोधी लहर कुछ ना कुछ तो होता है जिसे समझना बहुत मुश्किल है क्योंकि यह मार्जिन अभी उतना दिख नहीं रहा है लेकिन मनसे के आने से सत्ता-विरोधी लहर ख़ासकर उप्र, बिहार व मप्र में अगर 1परसेंट भी फिसला तो कम से कम 50सीट ऐसे हैँ जहाँ मामला बिगड़ सकता है जहाँ तक साउथ का प्रश्न है कर्नाटका से बीजेपी को अच्छा वोट मिलता है लेकिन अभी वहाँ कांग्रेस की सरकार है अतः वहाँ उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार हैँ जो राजनीती के उस इलाके के चाणक्य माने जाते हैं अतः वहाँ अभी से फील्डिंग लगा रखी है अतः वहाँ 10सीट ऐसे है जहाँ हार जीत का मामला 1से 2परसेंट है अतः वहाँ भी एन डी ए को नुकसान होता दिख रहा है जिसतरह चुनावी चंदे का मामला सामने आया है उससे यही लग रहा है कि सबसे ज्यादा चंदे वाली पार्टी बीजेपी सवालों से घिर सकती है और विपक्षी पार्टियों इसे भुनाने में क़ोई कसर नहीं छोड़ेगी उप्र में पेपर लीक मामलों से काफी लोगों में नाराजगी है अतः चुनाव में इसका असर भी देखने को मिल सकती हैं हालांकि मुख्यमंत्री योगीजी का काम बेहतरीन हुआ है अतः वहाँ पिछले चुनाव के मुकाबले 4-5 सीटों का नुकसान हो सकता है क्योंकि समाजबादी पार्टी व कांग्रेस के गठबंधन से अल्पसंख्यक का वोट स्प्लिट नहीं होगा जहाँ तक बिहार की बात है वहाँ मनसे का नाम तो नहीं जानते लेकिन श्री राज ठाकरे को बिलकुल पसंद नहीं करते और बहुत से गरीब लोग जो रोजी रोटी के लिए मुंबई जाते हैँ वह और उनका परिवार भी किसे वोट करेंगे ऐ आने वाला समय बताएगा बिहार में ऐसे भी बीजेपी आधे सीट पर चुनाव लड़ रही है और यदि जद (यू) अगर 14-15 सीट भी ले आती है और इंडिया गठबंधन में कुछ सीट की जरुरत पड़ी तो श्री नीतीश कुमार को पलटीमारते देर नहीं लगेगी अधिकतर सीटों पर हार जीत का मार्जिन कम होता है अगर हरेक राज्य में इसी तरह 4-5सीट भी कम हुए तो जीत हेतु कहीं ऐसा ना हो की 275 के करीब सीट भी ना जीत सके, क्योंकि एनडिए यही हाल 2004 के समय भी चुनाव प्रचार के समय लग रहा था कि 300 से 350सीट जीत जाएगी और भारत उदय का रथ निकला लेकिन 200का आकड़ा भी नहीं पार कर सकी और महज 182सीट ही प्राप्त हो सकी चूंकि गणित में संभावना का थ्योरी ऐ बताता है कि यदि क़ोई 2बार लगातार जीत दर्ज करता है तो तीसरे बार भी जीत की पुरी संभावना रहती है लेकिन चुनाव में हकीकत उल्टी रहती है क्योंकि सत्ताविरोधी लहर और जनता की इच्छा कुछ और होती है देखते है आगे होता है क्या?हालांकि श्री मोदीजी ने सराहनीय कार्य किया है लेकिन कुछ चीज जात, पात, धर्म आदि पर लोग गुमराह हो जाते हैं और फिर काम को कम और कुछ मुद्दों पर आपस में ही सहमति नहीं बन पाती सरकार ने हर फिल्ड में अच्छा काम है लेकिन लोकल समस्या अभी भी एक विकराल समस्या है जिस तरह अंतराष्ट्रीय रिश्ते मजबूत हुए और चंद्रयान -3की इतिहासिक वैज्ञानिक विकास भी सफलता की कड़ी है लेकिन जनता क्या इस कठिन परीक्षा को पूर्ण मार्क देती है तो ठीक है.हालांकि लोकतंत्र में देखते है आगे होता है क्या?