चुनावी चन्दा बांड की वकालत का मतलब…..

asiakhabar.com | April 2, 2024 | 4:55 pm IST
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-राकेश अचल-
आप भी परेशान हैं और एक लेखक के नाते मै भी परेशान हूँ, क्योंकि हर बात अब राजनीति से शुरू होकर राजनीति पर ही समाप्त हो रही है। , जबकि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी कहते हैं कि- हर बात में राजनीति नहीं देखना चाहिए। मै चाहता हूँ कि मुझे हर दिन मोदी जी का नाम न सुमरना पड़े, लेकिन दुर्भाग्य कि मोदी जी का नाम लिए बिना कोई बात न बनती है और न बिगड़ती है। मोदी यानि 56 इंच का सीना, मोदी जी यानि उलटा चोर कोतवाल को डाटे।
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक घोषित किये जा चुके चुनावी चन्दा बांड्स को लेकर प्रधानमंत्री मोदी जी गर्व के साथ ही नहीं बल्कि सीना ठोंक कर कह रहे हैं कि जो लोग आज इलेक्टोरल बांड्स को लेकर नाच रहे हैं, वे कल पछतायेंगे। मोदी जी ने बात जिस दमखम से कही है उससे लगता है कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नहीं मानते। उनकी नजर में इलेक्टोरल बांड्स आज भी गंगाजल की तरह पावन हैं। एक टीवी इंटरव्यून के दौरान जब उनसे यह पूछा गया कि- क्या चुनावी बॉण्ड डेटा से सत्तारूढ़ भाजपा को झटका लगा है? तो माननीय मोदी ने कहा, मुझे बताइए कि हमने ऐसा क्या कर दिया कि मैं इसे एक झटके के तौर पर देखूं ! मेरा दृढ़ विश्वास है कि जो इसे (बॉन्डक के विवरण) को लेकर हंगामा कर रहे हैं और इसपर गर्व कर रहे हैं उन्हें पछतावा होगा।
देश कि सबसे बड़ी अदालत के फैसले को देश का सबसे बड़ा और जिम्मेदार आदमी ही यदि खारिज करता दिखाई दे तो किसी दूसरे से कोई क्या उम्मीद कर सकता है? उन्होंने जोर देकर कहा कि -कहा कि कोई भी प्रणाली पूरी तरह से सही नहीं है और खामियों को दूर किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि इस विषय पर हंगामा करने वाले लोग पछताएंगे। जाहिर है कि मोदी जी हैं तो, न संविधान बड़ा है और न कोई अदालत। वे सबसे ऊपर थे, हैं और रहेंगे। और ये स्वाभाविक है। यदि उनकी सरकार तीसरी बार बनी तो तय मानिये कि मोदी जी इस असंवैधानिक घोषित किये जा चुके इलेक्टोरल बांड को ससम्मान संवैधानिक बना देंगे, क्योंकि ये बांड उनकी पार्टी के लिए कामधेनु साबित हुए हैं।
दरअसल मै मोदी जी का जितना बड़ा और मुखर आलोचक हूँ उतना ही प्रशंसक भी। वे जिस हिकमत अमली से गलत को सही और सही को गलत साबित करने में माहिर हैं, वैसा देश में आज कोई दूसरा नेता नहीं है। मोदी जी जैसा दमखम पूर्व के किसी प्रधानमंत्री में था ही नहीं। इंदिरा गाँधी में भी नहीं, जबकि वे तो तबकी भाजपा (जनसंघ) के लिए दुर्गा थीं। इंदिरा जी को भाजपा (जनसंघ) ने उदारतापूर्वक 1971 के भारत-पाक संग्राम के बाद बांग्लादेश बनवाने के लिए दुर्गा कहा गया था, कांग्रेससियों को चाहिए कि वो मोदी जी को देश को जबरन विश्वगुरु बनाने के लिए तांडव करने वाला शिव कहकर उऋण हो जाये। मोदी जी ने कांग्रेस द्वारा पिछले साढ़े छह दशक में जितना कुछ किया था, उसे एक दशक में ध्वस्त कर दिया।
निर्माण और ध्वंश दो समानांतर क्रियाएं हैं, कोई देश बनाता है तो कोई देश बिगाड़ता है। मोदी जी दोनों काम एक साथ कर रहे हैं। वे अपने सपनों का देश बना रहे हैं, जिसमें उनके अलावा कोई दूसरा सुप्रीम नहीं है। फिल्म निर्माता मनोज कुमार यदि आज अपनी कोई नई फिल्म बनाते तो उसमें गीत के बोल होते – मै उस देश का वासी हूँ, जिस देश में मोदी होते हैं इस देश को एक मोदी बना रहा है तो दस मोदी बिगाड़ रहे हैं। आज किसी भी राजनीतिक दल में, किसी सामाजिक कार्यकर्ता में इतनी क्षमता नहीं है कि वो इलेक्टोरल बांड के मामले में मोदी जी पैरवी को सुप्रीम कोर्ट कि अवमानना बताने का दुस्साहस कर सके। खुद सुप्रीम कोर्ट भी शायद मोदी जी के वक्तव्य को चुपचाप सुनकर अपमान का घूँट पीकर रह जाएगा।
इलेक्टोरल बांड के समर्थन में सीना ठोंककर खड़े होना कोई आसान बात नहीं है। ये वो शौर्य है जिसके लिए मोदी जी को परमवीर चक्र दिया जा सकता है। प्रधानमंत्री श्री मोदी जी ने ने कहा कि उनकी सरकार की चुनावी बॉण्ड योजना के कारण ही चंदे के स्रोतों और इसके लाभार्थियों का पता लगाया जा सका। उन्होंने कहा कि अगर आज जानकारी उपलब्ध हुई है तो उसकी वजह बॉन्ड हैं। मोदी ने सवाल किया कि क्या कोई एजेंसी 2014 में उनके केंद्र की सत्ता में आने से पहले के चुनावों के लिए धन के स्रोत और उनके लाभार्थियों के बारे में बता सकती है? उन्होंने कहा, कोई भी प्रणाली बिल्कुल सही नहीं होती। कुछ खामियां हो सकती हैं, जिन्हें दूर किया जा सकता है।
कोई मोदी जी से सवाल नहीं कर सकता, क्योंकि इस देश में सवाल करना यानि देशद्रोह करना है। अन्यथा उनसे पूछा जा सकता था कि जिस तरह से इलेक्टोरल बांड खरीदने और दान करने के लिए गोपनीयता बरतने की व्यवस्था कि गयी उससे पहले किसी और बांड्स के लिए की गयी थी क्या? इलेक्टोरल बांड के जरिये जो खुलासा हुआ है वो क्या सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप न करता तो क्या सम्भव था? शायद नहीं था। लेकिन हमारा असमंजस ये है कि हम सुप्रीम कोर्ट कि जय बोलें या मोदी जी की जय बोलें। सुप्रीम कोर्ट से ज्यादा डर नहीं लगता लेकिन मोदी जी से लगता है, क्योंकि वे अदावत करने में माहिर है। वे ख़ास आदमी से ही नहीं आम आदमी से भी अपना हिसाब बराबर कार सकते हैं।
आपको याद दिला दूँ कि विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हुए खुलासे का हवाला देते हुए सरकार के प्रति हमलवार रुख अपना रखा है। न्यायालय ने गुमनाम तरीके से चंदा देने को असंवैधानिक घोषित करते हुए चुनावी बॉण्ड से संबंधित सभी जानकारी सार्वजनिक करने का निर्देश दिया था। आपराधिक जांच का सामना कर रहीं कई कंपनियों ने बड़ी मात्रा में बॉन्डि खरीदे थे। मोदी जी अब इसी मुद्दे को लेकर जनता की अदालत में खड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना चुका है। बारी जनता की है। देखना है कि जनता की अदालत में इलेक्टोरल बांड्स का मामला और खुद मोदी जी हारते हैं या जीतते हैं?


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