लद्दाख हमेशा से साहसी सैलानियों को आकर्षित करता आया है। शुरूआत में सुविधाओं के अभाव में अधिकतर सैलानी इस इलाके में आने से कतराते थे। हाल के सालों में सरकारों और निजी प्रयासों के स्थिति में सुधार आया है। फिल्म 3 इडियट्स में लद्दाख को राजकुमार हिरानी ने खूबसूरती से दिखाया। इसके कारण दूर-दराज के लोगों में भी इस स्थान को देखने की इच्छा जगी। हाल के सालों में लद्दाख पहुंचने के लिए परिवहन सेवाओं में सुधार आया है। लेकिन सुविधाओ में उछाल के बावजूद अभी भी लद्दाख जोखिम उठाने वाले सैलानियों को ज्यादा भाता है।
दिल्ली से महज 70 मिनट की उड़ान के बाद समुद्रतल से करीब 11,300 फुट की ऊंचाई पर स्थित लेह के नन्हे-सेकुशाक बाकुला रिनपोछे हवाई अड्डे पर उतरने के साथ ही एडवेंचर की शुरुआत हो जाती है। कहते हैं दुनिया की सबसे खूबसूरत हवाई यात्राओं में से एक है दिल्ली-लेह तक का सफर। लेह पहुंचने से करीब बीस मिनट पहले ही जंस्कार रेंज की बर्फानी ऊंचाइयां दिखायी देने लगती हैं जो आपको खिड़की से हटने ही नहीं देंगी। इसी रेंज में यहां की सबसे ऊंची नुन और कुन चोटियां भी स्थित हैं। एक बात जो हैरान करती है वो है यहां चारों ओर भारतीय सेना की मौजूदगी। लगता है जैसे चप्पे-चप्पे पर सैनिक चस्पां हैं। बावजूद इसके सेना यहां बहुत सहज दिखायी देती है। और तो और यहां उनकी वर्दी भी खाकी, भूरी पर्वतमालाओं के साथ तालमेल करती दिखती है! लेह के नन्हे मार्केट में भी सेना की जिप्सी कभी फर्राटे से दौड़ती है तो कभी किसी कोने पर विदेशी टूरिस्टों को राह दिखाता कोई सैनिक दिखायी दे जाता है।
पुरानी मस्जिद के सामने ही सिल्वर ज्यूलरी, वूलन, जैकेटों से सजी दुकानें हैं। बाजार का सबसे प्रमुख आकर्षण है इसकी फुटपाथ पर हर दिन सवेरे से शाम तक छोटा-मोटा हाट बाजार लगाने वाली स्थानीय लद्दाखी औरतें। आसपास के गांवों से खुबानी, गाजर, मूली, खीरा, सेब वगैरह लाकर बेचने वाली इन आदिवासी औरतों के चेहरों पर झुर्रियों ने जैसे एक पूरी किताब लिख डाली है। लंबी चोटियों में विचित्र ढंग से गुंथे उनके बाल, भारी-भरकम पारंपरिक आभूषणों और मोटे ऊनी वस्त्रों से ढका उनका बदन देखकर लगता है जैसे सदियों से वे इसी तरह यहां आकर अपनी टोकरियों में खुबानियों और सेबों का कारोबार करती आ रही हैं। बीच-बीच में कोई सैलानी रुककर खुबानी और सेब की खरीददारी में उलझता है तो कोई उनके अजीबो-गरीब रूप-रंग को कैमराबंद करने की इजाजत मांग रहा है। और वो मुस्कुराकर हरेक के कैमरे में सिमट रही हैं!!
पिछले कुछ सालों में स्थिति धीरे-धीरे बदली है, करीब पांच-सात साल पहले यहां एयर इंडिया के अलावा जैट एयरवेज (हफ्ते में दो या तीन बार) की ही उड़ानें आया करती थीं लेकिन अब करीब-करीब सभी प्रमुख निजी विमान सेवाओं के ‘पंछियों-को लेह के आकाश में टहलकदमी करते हुए देखा जा सकता है।
लेह से 42 किलोमीटर दूर है खारदूंग-ला टॉप यानी दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित सड़क। लेह से महज दो-ढाई घंटे के सफर के बाद, सर्पीली घूमती सड़कों को नापते हुए यहां पहुंचा जा सकता है। इस पूरे रास्ते में जगह-जगह साइकिल पर गुजरते कुछ जांबाज किस्म के सैलानी दिखना आम है। बीच-बीच में बाइकर्स की टोलियां गुजरती हैं जिनकी बाइक पर फहराते रंग-बिरंगे झंडे बताते हैं कि स्वीडन, इस्राइल और डेनमार्क या नॉर्वे जैसे सुदूर देशों से एडवेंचर की घुट्टी पीने वे यहां आए हैं। लेह और इसके आसपास की घाटियां हों या आसमान तक पहुंचती बुलंदियां, ये तेजी से विदेशी टूरिस्टों के बीच लोकप्रिय हो रही हैं। यह बड़ा दिलचस्प पहलू है कि लेह ने ऐसे टूरिस्ट सर्किट में अपनी जगह बना ली है जिसे विदेशी सैलानी पसंद करते हैं। इसी सड़क से गुजरकर एडवेंचर की तलाश में ये सैलानी नुब्रा वैली निकल जाते हैं।
खारदूंग-ला की लगभग 18,300 फुट की ऊंचाई जिस तेजी से हासिल होती है, खारदूंग-ला टॉप के बाद उतनी ही तेजी से सड़क नीचे उतरती है और त्सो-मोरिरि (झील) तक इन काफिलों से सड़कों पर रौनक बनी रहती है। बमुश्किल डेढ़-दो घंटे बीतते-बीतते आप फिर खुद को सपाट वादियों में पाते हैं। खलसर के नजदीक सड़क के दायीं तरफ से श्योक नदी इठलाती हुई साथ हो लेती है। आगे चलकर यह सियाचिन ग्लेश्यिर से आ रही नुब्रा से मिलती है और इस मिलन के बाद नदी को श्योक नाम मिलता है जो तुरतुक होते हुए पाकिस्तान और फिर अरब सागर से जा मिलती है। बीच-बीच में गांवों, खेतों का सिलसिला दिखायी दे जाता है, घरों और होटलों/रेसोर्टों को देखकर जरूर लगता है कि हम सभ्यता के बीच हैं, वरना तो दूर-दूर तक वीरानी और प्रकृति के नजारे ही दिखते हैं। जंगली गुलाब और सी-बकथॉर्न की झाडिय़ों से घरों की चाहरदीवारी की गई है। किसी घर के आंगन में दरख्त पर सेब लटकते दिखते हैं तो किसी पर खुबानी टंगी हैं। कहीं-कहीं कच्चे, हरे अखरोटों से लदे पेड़ भी तनकर खड़े हैं। लेह की वनस्पति-विहीनता और भूरेपन से उलट यहां हरियाली दिखायी देती है।
लेह से एक सड़क चांग-ला (करीब साढ़े सत्रह हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस दर्रे से होकर दुनिया का तीसरा सबसे ऊंचा सड़क-मार्ग गुजरता है) की ओर बढ़ जाती है और आगे चलकर पैंगांग-त्सो (भारत-तिब्बत सीमा पर स्थित इस झील की लंबाई करीब 140 किलोमीटर है, इसका एक-तिहाई भाग भारत में जबकि शेष दो-तिहाई तिब्बत की सीमा में है) तक चली जाती है।इस रूट पर भी बाइकर्स की टोलियां गुजरती हैं, कुछ उत्साही सैलानी होटल, रेसोर्ट में रुकने की बजाय टैन्टों में रुकना पसंद करते हैं। लद्दाख की हिमालयी धरती अपनी विषमता, विचित्रता और चैलेन्जिंग टेरेन की वजह से एडवेंचर के लिहाज से एकदम आदर्श है।
कब जाना चाहिए: यहां टूरिस्ट सीजन मई से सितंबर तक रहता है, जून से सैलानियों की रेल-पेल तेज होती है, फिर जुलाई-अगस्त के महीने सबसे गरम होने के बावजूद, जबकि दिन का तापमान 36 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, सबसे ज्यादा टूरिस्ट भी आते हैं।
कैसे आएं: दिल्ली से सीधे हवाई लिंक, लगभग 50 मिनट में यात्रा पूरी होती है, या फिर मनाली-लेह और श्रीनगर-लेह सड़क मार्ग से भी आया-जाया जा सकता है। लेकिन ये दोनों रूट सर्दियों में बंद रहते हैं। श्रीनगर-लेह मार्ग इस साल अप्रैल में ही खुल गया है जबकि मनाली से लेह तक का दुर्गम मार्ग मई में खुलने की संभावना है।
मौसम/तापमान: सर्दियों में, नवंबर से मार्च के दौरान लेह में बर्फानी हवाएं चलती हैं, दिसंबर से फरवरी के दौरान बर्फबारी रहती है और तापमान शून्य से 23 डिग्री तक नीचे गिर जाता है। गर्मियों में यहां तापमान 36 डिग्री तक जा सकता है। और सुहाने मौसम में भी धूप में रहने पर आप टैन हो सकते हैं और छाया में शरीर के हिस्से के फ्रॉस्ट बाइट से प्रभावित होने की आशंका रहती है!
नहीं भूलें: सन ब्लॉक क्रीम, कम से कम 30 एसपीएफ वाली कारगर होगी, लिप ग्लॉस, टोपी, दस्ताने, स्कार्फ, स्टोल वगैरह जो सिर और चेहरा ढक सकें।
अन्य सावधानियां:-
-ऊंचाई/अत्यधिक ठण्डे इलाकों में खुद को खुश रखने से आप जल्द-से-जल्द हालात के मुताबिक ढलते हैं।
-योग, ध्यान, प्राणायाम या हल्के-फुल्के व्यायाम करते हैं, लेकिन खुद को थकाने से बचें।
-अगर बाहर हिमपात या अत्यधिक ठण्ड की वजह से आप कमरे/टैन्ट में सिमटकर रह गए हैं तो भी हाथ-पैर हिलाते रहें, चेहरे-गर्दन की मांसपेशियों को भी हिलाना जरूरी है।
-बाहर निकलने से पहले सिर, पैरों और हाथों को अच्छी तरह से ढक लें।
-आपके अंडर गारमेंट्स साफ-सुथरें हों, नाखून कटे हुए हों।
-रात में सोने जाने से पहले शरीर पर मायस्चराइजर लगाना न भूलें, पैरों की उंगलियों के बीच साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें, गीला न छोड़ें।
-बाहर जाने से पहले कम-से-कम 30 एसपीएफ का सन लोशन शरीर के उन सभी भागों पर लगाएं जो खुले हैं,
इसे कुछ देर त्वचा द्वारा सोखने दें, और उसके बाद ही धूप में निकलें।
-यहां सर्द हवाओं की वजह से अकसर होंठ फटने लगते हैं, लिहाजा अच्छी कंपनी का लिप ग्लॉस लगाना न भूलें।
-ताजा, गरम भोजन करें।
-वैसे लेह-लद्दाख क्षेत्र में जब तक भी रहें, खुद को ज्यादा थकाएं नहीं।
-जब भी बाहर निकलें, यूवी किरणों से पूरी सुरक्षा देने वाला सनग्लास अपनी आंखों पर जरूर चढ़ा लें।
-माउंटेन सिकनेस के लक्षणों से राहत दिलाने वाली दवाएं उपलब्ध हैं, लेकिन ये इलाज नहीं हैं। लिहाजा, अगर आपको हाइ एल्टीट्यूड सिकनेस बनी रहे तो जल्द-से-जल्द ऊंचाई से उतरने की कोशिश करें।