दक्षिण एशियाई साहित्य के प्रोफेसर डॉ. कमल वर्मा का निधन

asiakhabar.com | March 8, 2024 | 5:49 pm IST
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वाशिंगटन। दक्षिण एशियाई साहित्य के विद्वान डॉ. कमल डी. वर्मा का यहां निधन हो गया। वह 91 वर्ष के थे। वह भारत में अमेरिका के राजदूत रह चुके रिचर्ड वर्मा के पिता थे।
प्रोफेसर कमल वर्मा ने पेंसिल्वेनिया के जॉन्सटाउन (यूपीजे) स्थित पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय में 42 साल तक अध्यापन किया। उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद भी ‘प्रोफेसर एमेरिटस’ और विश्वविद्यालय अध्यक्ष के सलाहकार के रूप में काम करना जारी रखा और दक्षिण एशिया से विविध संकाय सदस्यों की भर्ती करने पर जोर दिया।
वह ‘साउथ एशियन रिव्यू’ और ‘साउथ एशियन लिटरेरी एसोसिएशन’ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उनका रविवार को निधन हो गया।
यूपीजे के अध्यक्ष डॉ. जेम स्पेक्टर ने डॉ. कमल वर्मा को ”एक प्रतिभाशाली विद्वान, एक असाधारण शिक्षक एवं मार्गदर्शक, एक आदरणीय सहयोगी और एक प्रिय मित्र” बताया।
डॉ. वर्मा का जन्म 1932 में भारत के पंजाब में हुआ था। वह कॉलेज जाने वाले अपने परिवार के पहले सदस्य थे।
उन्होंने 1951 में डीएवी कॉलेज, जालंधर से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने 1953 में आगरा विश्वविद्यालय से शिक्षण में बीए और 1958 में पंजाब विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में स्नातकोतर की पढ़ाई की।
वह ‘यूनिवर्सिटी ऑफ नर्दर्न आयोवा’ से शिक्षा में विशेषज्ञ की डिग्री प्राप्त करने के लिए ‘फोर्ड फाउंडेशन फेलोशिप पर 1963 में अमेरिका चले गए। इसके बाद उन्होंने साहित्य में आगे की व्यावसायिक पढ़ाई की और कनाडा के एडमोंटन स्थित अल्बर्ट विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की।
डॉ. वर्मा की पत्नी सावित्री भी एक शिक्षिका और भारत में एक महिला कॉलेज की प्रमुख थीं। वे दोनों और उनकी पांच संतान 1971 में पेंसिल्वेनिया में बस गए थे।
डॉ. वर्मा के बेटे रिचर्ड ने पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में भारत में अमेरिकी राजदूत के रूप में सेवा दी और वह इस समय विदेश उप मंत्री हैं, जो विदेश मंत्रालय में अब तक के सर्वोच्च रैंक वाले भारतीय अमेरिकी हैं। रिचर्ड वर्मा भारत में अमेरिकी राजदूत के रूप में सेवा देने वाले पहले भारतीय-अमेरिकी हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले हफ्ते राजदूत वर्मा को भेजे एक पत्र में लिखा था कि प्रोफेसर कमल वर्मा ”प्रत्येक भारतीय प्रवासी द्वारा दिखाए गए धैर्य और दृढ़ संकल्प का असल प्रतीक थे। उन्होंने विदेश में अपने परिवार को बेहतर जीवन देने के लिए कड़ी मेहनत की और साथ ही अपनी भारतीय जड़ों के प्रति भी वह सच्चे बने रहे…उनकी मातृभूमि में उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।”


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