सड़क हादसों को रोकने के लिए नजरिए में मूलभूत परिवर्तन की आवश्यकता है। जहां ड्राइवरों की गलती हो, उन्हें बेशक सख्त सजा मिलनी चाहिए, लेकिन हादसे की परिस्थितियों को भी अवश्य में ध्यान में रखा जाना चाहिए।अगर केंद्र सरकार कानून बनाने के पहले सभी हित-धारकों से संवाद के रास्ते पर चलती, तो ट्रक, बस और टैंकर चालकों को हड़ताल पर नहीं जाना पड़ता। लेकिन हित-धारकों की बात तो अलग, सरकार ने देश की आपराधिक दंड संहिता और साक्ष्य कानून में व्यापक बदलाव बिना विपक्ष के साथ भी संवाद कायम किए कर दिया। अब चूंकि नई भारतीय न्याय संहिता के प्रावधानों के बारे में प्रभावित हो सकने वाले लोगों को जानकारी मिल रही है, तो उनका असंतोष सामने आ रहा है। इसकी पहली मिसाल ड्राइवरों की हड़ताल के रूप में देखने को मिली, जिसका सीधा असर आम परिवहन और जरूरी चीजों की सप्लाई पर पड़ा। जब हड़ताल से जन-जीवन बाधित हुआ, तब केंद्र की तरफ से ड्राइवरों के संगठनों से बातचीत की पहल की गई। फिलहाल, केंद्र के आश्वासन पर यकीन कर ड्राइवरों ने हड़ताल वापस ले ली है। लेकिन इस प्रकरण से वर्तमान सरकार की पहले निर्णय लेने और फिर सोचने के रवैये पर फिर से गंभीर सवाल जरूर खड़े हुए हैँ।ड्राइवरों की शिकायत है कि नए कानून में सड़क हादसों के मामलों में बेहद सख्त सजा का प्रावधान कर दिया गया है। नई संहिता के तहत अगर कोई वाहन चालक किसी सड़क हादसे के बाद बिना पुलिस या प्रशासन को सूचित किए बिना वहां से चला जाता है, तो उसे 10 साल तक की जेल या सात लाख रुपये तक के जुर्माने की सजा हो सकती है। ट्रांसपोर्ट संगठनों का सवाल है कि हादसा होने की स्थिति में अगर भीड़ चालक पर हमला कर दे, तो उस हाल में ड्राइवर खुद को बचाएगा या प्रशासन को सूचित करने की कोशिश में अपने को भीड़ के हवाले कर देगा? यह सच है कि भारत में ट्रक-बस-टैंकर चालकों का जीवन मुश्किलों से भरा होता है। हादसे हमेशा उनकी गलती से नहीं होते। भारत की सड़कें और लचर ट्रैफिक सिस्टम अक्सर हादसों का कारण बनते हैं। ऐसे में हादसे रोकने के लिए नजरिए में बदलाव की आवश्यकता है। जहां ड्राइवरों की गलती हो, उन्हें बेशक सख्त सजा मिलनी चाहिए, लेकिन हादसे की कुल परिस्थितियों को भी अवश्य में ध्यान में रखा जाना चाहिए।