नई दिल्ली। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को जकार्ता में 10वीं आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक में शांति, समृद्धि और सुरक्षा के लिए आसियान और प्लस देशों के बीच सहयोग को और ज्यादा मजबूत करने पर जोर दिया। रक्षा मंत्री ने कहा कि हम आसियान क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा बढ़ाने के लिए एडीएमएम-प्लस के साथ व्यावहारिक, दूरदर्शी और परिणामोन्मुख सहयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में नौवहन, हवाई उड़ान और निर्बाध वैध वाणिज्य की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए संवाद और कूटनीति के जरिये ही आगे बढ़ने का रास्ता है। उन्होंने समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (यूएनसीएलओएस) 1982 सहित अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार अंतरराष्ट्रीय जल में नेविगेशन, ओवरफ्लाइट और निर्बाध वैध वाणिज्य की स्वतंत्रता के लिए भारत की प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने आतंकवाद को आसियान क्षेत्र सहित अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बताते हुए आतंकवाद-निरोध पर ईडब्ल्यूजी की सह-अध्यक्षता करने का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव का एडीएमएम-प्लस ने समर्थन किया, क्योंकि आतंकवाद इस क्षेत्र के देशों के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है।
रक्षा मंत्री ने क्षेत्रीय सुरक्षा पहलों का आह्वान किया, जो विभिन्न हितधारकों के बीच व्यापक सहमति को प्रतिबिंबित करने के लिए परामर्शात्मक और विकासोन्मुख हों। उन्होंने क्षेत्र में शांति के लिए महात्मा गांधी के उद्धरण ‘शांति का कोई रास्ता नहीं है, शांति ही एकमात्र रास्ता है’ का हवाला देते हुए कहा कि संघर्षों से मानव जीवन की हानि होती है और आजीविका नष्ट हो जाती है। क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर स्थिरता में बाधा आती है और खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
राजनाथ सिंह ने स्थायी शांति और वैश्विक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए बातचीत और कूटनीति की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने भारत के उस संदेश को दोहराया कि ‘यह युद्ध का युग नहीं है’ और भारत-आसियान गतिविधियों में आसियान सदस्य देशों की उत्साहपूर्ण भागीदारी की सराहना की। उन्होंने इस साल मई में आयोजित पहले आसियान-भारत समुद्री अभ्यास के साथ-साथ मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) गतिविधियों पर विशेषज्ञ कार्य समूह में आसियान सदस्य देशों की सक्रिय भागीदारी को भी सराहा, जिनमें भारत और इंडोनेशिया शामिल हैं।