नई दिल्ली।दिल्ली विश्वविद्यालय के जनजातीय अध्ययन केंद्र द्वारा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के सहयोग से भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को “जनजातीय गौरव दिवस” के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान मुख्य अतिथि प्रो. बलराम पाणि (डीन ऑफ कॉलेजेज़) ने भगवान बिरसा मुंडा द्वारा छोटी उम्र में प्रदर्शित अनुशासन और यथार्थता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कुतुब मीनार में लौह स्तंभ और कोणार्क मंदिर के घटकों के निर्माण में शामिल आदिवासी समुदायों के पास मौजूद वैज्ञानिक ज्ञान पर प्रकाश डाला और स्वदेशी आदिवासी ज्ञान की प्रासंगिकता पर जोर दिया।
इस अवसर पर दक्षिणी परिसर के निदेशक प्रो. श्री प्रकाश सिंह ने अपने संबोधन में दिल्ली विश्वविद्यालय में जनजातीय अध्ययन केंद्र की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों के महत्वपूर्ण योगदान के बारे में शिक्षा जगत और आम जनता के भीतर जागरूकता की काफी कमी है। प्रो. श्री प्रकाश सिंह ने भारत की जनजातियों पर अनुसंधान और दस्तावेज़ीकरण को मजबूत करने के उद्देश्य से आगामी फेलोशिप और परियोजनाओं हेतु जनजातीय अध्ययन केंद्र के लिए 50 लाख रुपए की सीड ग्रांट की घोषणा भी की।
प्रसिद्ध लोक कलाकार एवं नाट्य निर्देशक अनिरुद्ध डी. वानकर ने “झाड़ीपट्टी रंगभूमि” पर एक ज्ञानवर्धक व्याख्यान दिया और बताया कि भगवान बिरसा मुंडा जैसे आदिवासी नायकों के जीवन की कहानियों और योगदान को व्यक्त करने के साधन के रूप में लोक कला कैसे कार्य करती है। जनजातीय अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. एसएम पटनायक ने डीयू में इस नव स्थापित केंद्र के दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए जनजातियों के अध्ययन के लिए भारत-केंद्रित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर दिया।
इस अवसर पर “राष्ट्र-निर्माण में भारत के जनजातीय नेताओं का योगदान” शीर्षक से एक प्रदर्शनी भी आयोजित की गई जिसमें जनजातीय लीडरशिप की सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण विरासत पर प्रकाश डाला गया। कार्यक्रम के दौरान जनजातियों की स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों पर केंद्रित नृवंशविज्ञान फिल्में भी प्रदर्शित की गईं, जो उनके सांस्कृतिक महत्व का व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती हैं। विभिन्न कोर्सों में पढ़ रहे आदिवासी समुदायों के विद्यार्थियों ने अपनी पारंपरिक पोशाक पहनकर इस कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भाग लिया।