हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब व राजस्थान में बड़े पैमाने पर किसानों द्वारा पराली जलाने के कारण दिल्ली समेत एनसीआर कहे जाने वाले क्षेत्र के नागरिक भीषण वायु प्रदूषण की चपेट में आ गये हैं। हर साल सर्दियों के प्रारम्भ में आने वाले इस संकट से लोगों को मुक्ति कैसे मिले, इसके उपाय न तो पर्यावरण वैज्ञानिकों के पास हैं और न ही सरकारों के पास कि वे आखिर क्या करें।
सम्बन्धित राज्य सरकारों की दिक्कत इसलिये बढ़ गई है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट इसे लेकर बहुत सख्त हो गया है। मंगलवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान उसने दिल्ली के समीपवर्ती राज्य सरकारों से कह दिया है कि इससे उसे कोई मतलब नहीं है कि वे पराली जलाने से रोकने के लिये क्या करती हैं और क्या नहीं- कोर्ट चाहती है कि यह तत्काल रुके। उसने साफ कह दिया है कि वह लाखों नागरिकों को जहरीली हवा में सांस लेकर मरते हुए नहीं देख सकती। इसलिये इस समस्या के लिये सर्वाधिक जिम्मेदार माने जाने वाले पंजाब की सरकार की इस दलील से भी संतुष्ट नहीं है कि पिछले वर्ष के मुकाबले पराली जलाने की घटना में 40 प्रतिशत की कमी आई है।
अब देखना यह है कि इस पर कुछ राजनैतिक खींच-तान, वाद-विवाद और कानूनी ज़िरह के बाद यह मामला अगले साल तक के लिये फिर ठंडे बस्ते में जाता है या केन्द्र व राज्य सरकारें मिलकर कोई स्थायी समाधान निकालती हैं ताकि इस क्षेत्र के नागरिक हर वर्ष तकरीबन महीने भर के लिये गैस चेंबर बन जाने वाले दिल्ली-एनसीआर में ही रहने के लिये अभिशप्त न रहें।
उल्लेखनीय है कि आसपास के हजारों किसानों द्वारा पुरानी फसल के अवशेषों को जलाने के कारण जिस बड़े पैमाने में धुआं उठता है वह स्वाभाविक रूप से ठंडे तापमान में बहुत ऊंचे आसमान में न जाकर नीचे बैठने लगता है। इसके कारण इस पूरे क्षेत्र में फैलने वाली हवा इतनी ज़हरीली हो जाती है कि लोगों का सांस लेना तक दूभर हो जाता है। कतिपय भौगोलिक व वैज्ञानिक कारणों से इसका घनत्व दिल्ली व एनसीआर में होता है। घनी बसाहट व वाहनों के निकलते धुएं का साथ पाकर दिल्ली सर्वाधिक प्रभावित होती है। किसी वार्षिक अनुष्ठान की तरह इस भयानक प्रदूषण पर कानूनी व सियासी विवाद शुरू हो गया है। पर्यावरणविद एमसी मेहता की 1985 में दायर एक याचिका की सुनवाई के सिलसिले में जस्टिस संजय किशन कौल व जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच में यह मामला विचाराधीन है।
पिछले लगभग एक हफ्ते से दिल्ली का हर साल की तरह यही आलम होने से सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही सख्त रवैया अपनाया जिसका अंदाजा उनके इन शब्दों से लगाया जा सकता है जिसमें उसने कहा कि ‘यदि हमने अपना बुलडोजर चलाना शुरू किया तो रुकेंगे नहीं। ‘ चूंकि पराली की समस्या के लिये पंजाब को सर्वाधिक जिम्मेदार माना जाता रहा है, कोर्ट ने इस राज्य को लेकर बहुत कड़े तेवर अपनाते हुए कहा कि वह राजनीति बंदकर आवश्यक कार्रवाई करे। साथ ही, सभी सम्बन्धित सरकारों को एक-दूसरे पर दोषारोपण करने से बचने और अपने-अपने राज्यों में पराली जलाने पर तत्काल रोक लगाने के निर्देश दिये।
पीठ का कहना था कि पंजाब सरकार चाहे जुर्माना लगाये या प्रोत्साहन दे, उसे पराली जलाने पर रोक लगानी होगी। जब पंजाब के महाधिवक्ता ने कहा कि जुर्माना लगाना कठिन है, तो बेंच ने तंज कसते हुए कहा कि ‘जुर्माना लगाना कठिन हो सकता है परन्तु दिल्लीवासियों की सेहत बिगाड़ने में कोई दिक्कत नहीं होती। ‘ शीर्ष कोर्ट को जब बताया गया कि किसानों को धान का उत्पादन न लेने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है, तो इस पर कोर्ट ने सहमति जताई कि वैकल्पिक फसलें लेना अच्छा उपाय हो सकता है। धान की फसल की बजाय अन्य फसल लेने की बात इसलिये उठती है क्योंकि धान कटाई के बाद ही इसके अवशेषों (पराली) को जलाया जाता है ताकि रबी की फसलें ली जा सकें।
वैसे इस समस्या के राजनैतिक रंग लेने का एक बड़ा कारण यह है कि इसमें हरियाणा व उप्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं तो राजस्थान में कांग्रेस की। इस बार बुरे फंसे हुए हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जो पहले पंजाब को दोषी ठहराया करते थे परन्तु पिछले वर्ष वहां उनकी (आम आदमी पार्टी की) सरकार बन जाने से वे न तो अपनी सरकार की आलोचना कर पा रहे हैं, न ही बचाव। इसे उनकी आलोचना का सुअवसर जानकर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला कहते हैं कि ‘सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश केजरीवाल के मुंह पर तमाचा है। ‘ हालांकि आप ने कहा है कि शीर्ष कोर्ट जो भी निर्देश व सुझाव देगा, दिल्ली सरकार उनका पालन करेगी।
सुनवाई के दौरान धान की जगह वैकल्पिक फसलें लेने की जो बात कही गई है, वह एक आकर्षक सुझाव तो हो सकता है लेकिन इसकी प्रक्रिया बहुत लम्बी है जिसमें कई वर्ष लग जायेंगे। कहने मात्र से किसान धान की फसलें लेना नहीं छोड़ देंगे जब तक कि उनके पास धान की बिक्री से होने वाले आर्थिक लाभ के बराबर की कमाई सुनिश्चित न हो। पंजाब में धान लेने वाले किसानों की संख्या बहुत बड़ी है इसलिये यह सुझाव भी तत्काल में अमल में लाया जाना मुश्किल है। देखना यह है कि ये सरकारें अगली सुनवाई में क्या हल लेकर आती हैं, जो शुक्रवार, 10 नवम्बर को होगी; या फिर अगले करीब एक पखवाड़े तक दिल्ली-एनसीआर के निवासियों को गैस चेंबर में ही रहना होगा। उसके बाद तो वैसे ही पराली जलनी बंद हो जाती है।