-डा. रवीन्द्र अरजरिया-
हमास और इजरायल के मध्य चल रही जंग में मानवता के नाम पर आतंक को संरक्षण देने के लिए कबायत शुरू हो गई है। विश्व में इस्लाम के नाम पर कट्टरता दिखाने वाले 57 मुस्लिम देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तबज्जोह न मिलने पर संसार के सबसे बडे संगठन की महासभा में गुहार लगाई। जार्डन के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा में 120 देशों ने अपना समर्थन दिया जब कि 14 देशों ने प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया। विरोध करने वालों में अमेरिका, इजरायल, आस्ट्रिया, क्रोशिया, चेचिया, फिजी, ग्वाटेमाला, हंगरी, मार्शल, आईलैण्ड, माइक्रोनेशिया, नोउरु, पापुआ न्यू गिनी, पराग्वे तथा टोंगा शामिल थे जबकि 45 देशों ने मतदान का बहिस्कार किया। जार्डन ने अपने प्रस्ताव में सीधे हमास का नाम न लेकर गाजा में आम नागरिकों की सुरक्षा और हो रहे इजराइली हमलों में मानवीय कानूनों को तत्काल लागू करने की बात कही ताकि अप्रत्यक्ष में हमास को सुरक्षा दी जा सके। इस प्रस्ताव में हमास के व्दारा इजरायल में निरीह लोगों का किया गया कत्लेआम और बंधकों को दी जाने वाली यातनाओं का जिक्र तक नहीं किया गया। वास्तव में महासभा में इस तरह से पास प्रस्तावों को सलाह के रूप में लिया जाता है जबकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पारित प्रस्ताव को मानने के लिए सभी सदस्य देश बाध्य होते हैं। इस प्रस्ताव को लेकर कट्टरपंथी देश काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं कि उसे दुनिया के 120 देशों का समर्थन मिल गया है वहीं इजरायल ने एक वीडियो जारी करके गाजा के अस्पतालों से संचालित होने वाले हमास के आपरेशन को बेनकाब कर दिया है। अस्पतालों के नीचे सुरंग होने के दावे किये जा रहे हैं। अमानवीय कृत्य करने वाले आतंकी संगठनों के पक्ष में ईरान जैसे देश खुलकर खडे हो जाते हैं। पूर्व निर्धारित योजना के तहत आतंकियों की कब्र खुदती देखकर निर्दोष नागरिकों की आड में षडयंत्रकारी देश चीख-पुकार मचाने लगते हैं। जबकि मुस्लिम देशों के अन्दर अल्पसंख्यकों, अन्य धर्मावलम्बियों और मानवीय मूल्यों की दुहाई देने वालों को कठोरता, निर्ममता और क्रूरता से रौंदा जा रहा है जिस पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है। आतंक की दम पर संसार में इस्लाम का एकछत्र राज्य कायम करने की कल्पना में जी रहे कट्टरपंथियों ने अपनी एकता की दम पर मानवता को कुचलने का मनसूबा पाल रखा है। दुनिया के प्रमुख 10 आतंकी संगठनों में इस्लामिक स्टेट, अलकायदा, तालिबान, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, बोको हराम, अल नुस्रा फ्रन्ट, हिजबुल्लाह, हमास, कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी तथा रिवोल्यूशनरी आम्र्ड फोर्सेस आफ कोलंबिया के नाम शामिल है जिसमें पहले 9 संगठन मुस्लिम कट्टरपंथियों के हैं जबकि अंतिम संगठन माक्र्सवादी-लेनिनवादी आतंकवादी संगठन है। डोमिनिक रैनी की इस्लामिक आतंकवादी हमलों पर आधारित एक रिपोर्ट के अनुसार सन् 1979 से लेकर मई 2021 के बीच संसार में कम से कम 48, 035 इस्लामी आतंकवादी हमले हुए हैं जिनमें कम से कम 2, 10, 138 लोगों की मौत हुई है। इन संगठनों के प्रायोजक बनकर अनेक इस्लामिक देश आतंक को निरंतर बढावा देने में लगे हैं। जीवन जीने का ढंग, आराधना की पध्दति और सामाजिक मूल्यों को आतंक के माध्यम से थोपने वालों ने हमेशा से ही क्रूरता का सहारा लिया है। अतीत कुरेदने पर स्पष्ट होता है कि भारत पर हुए आक्रान्ताओं के हमलों के पीछे फटेहाल देशों से आने वाले व्यापारियों का सबसे बडा हाथ रहा है। रियासतकाल में व्यापार के नाम पर अनजानी वस्तुओं के आदान-प्रदान की कुटिल चालें समय के साथ सीधे, सरल और मानवतावादी राज्यों में फैलती रहीं। इन्हीं आगन्तुक व्यापारियों ने वापिस जाकर अपने कबीले के क्रूर साथियों को सम्पन्न रियासतों की पूरी जानकारी देकर आक्रमण के लिए प्रेरित किया था। आंकडे बताते हैं कि जिन राज्यों में सनातन से इतर व्यापारियों ने आमद दर्ज की, वहीं पर कुछ समय बाद आक्रान्ताओं, लुटेरों और उन्मादियों ने हमले कर दिये। अहिंसा का पाठ पढाने वाले जिन सनातनियों ने कभी धोखे से चींटी भी मार दी तो उसका प्राश्चित भी किया हो, उनके सामने क्रूरता, कठोरता और हत्या करने वालों का आतंक कहर बनकर फूटता रहा। आक्रान्ताओं की फौज को लूट, बलात्कार और मनमानियां करने की खुली छूट थी। युध्द के सिध्दान्त, मर्यादायें और अनुशासन मानने वाले सनातनियों की दुर्दशा उनके अपने आदर्शों के कारण ही होती रही। उदारवादिता के संस्कारों को कटीले झाडों ने हमेशा ही लहूलुहान किया गया। भितरघातियों व्दारा विलासता की चाह में अपनों को मौत के घाट उतारा जाता रहा। वर्तमान में हमास ने भी मानवतावादी सिध्दान्तों की आड लेकर गाजा के अस्पतालों को अपना अड्डा बना लिया है। उनके नीचे बनाई गई सुरंगों को नस्तनाबूत करने के लिए अस्पतालों पर बमबारी करना होगी। ऐसा करते ही दुनिया मानवता की दुहाई देते हुए युध्द विराम के लिए हो हल्ला मचाने लगेगी। मानवता विरोधियों के व्दारा किये जाने वाले सामूहिक नरसंहार से पीडित देश स्वयं उससे निपटता है और जब आतंकियों के मार्मिक ठिकानों पर प्रहार होते हैं तो इस्लामिक देश निरीह नागरिकों की जान की दुहाई देने लगते हैं। जब आतंकी निर्दोष लोगों का खून बहाते हैं तब इस्लामिक देशों से निंदा का एक भी शब्द नहीं निकलता। विस्तावादी नीतियों पर चलने वाला आतंक का प्रयोजिक देश चीन जब हमास का पक्ष लेता है तो कोई नई बात नहीं होती परन्तु यूक्रेन पर निरंतर हमले करने वाला रूस जब हमास का सुरक्षा कवच बनकर खडा होता है तब आश्चर्य होता है। मानवता की आड में क्रूरता को संरक्षण देने वाली चालों को करना होगा असफल अन्यथा कट्टरता की कालिख में स्वाधीनता का लोप होते देर नहीं लगेगी। गाजा के अस्पतालों से संचालित होने वाले आतंकी अड्डे आज बेनकाब हुए हैं जबकि भारत में भी आतंकवादियों के अधिकांश जडें मदरसों, यतीमखानों, मस्जिदों, सरायों, दवाखानों में ही जमीं हैं जहां से धर्म की दुहाई पर कट्टरता, आक्रामकता और आतंक की फसलें पैदा हो रहीं है। इन स्थानों पर छापामारी करते ही इस्लाम खतरे में है, का नारा बुलंद होने लगता है। जबकि केरल के मलप्पुरम में फिलिस्तीन के समर्थन में जमात-ए-इस्लामी की यूथ विंग सालिडेरिटी युवा के आवाह्न पर निकाली गई रैली को हमास नेता खालिद मशेल से भी संबोधित कराया गया। खालिद ने अपने वर्चुअल उद्बोधन में कहा कि बुल्डोजर हिन्दुत्व और रंगभेदी यहूदीवाद को उखाड फैंको। भारत की धरती पर सांसें लेने वाले लोगों ने हमास का जो बीजारोपण किया है वह केरल की आईएसआईएस विंग के साथ कदमताल करती प्रतीत हो रही है। बाहर से अलग-अलग दिखने वाले यह आतंकी संगठन अन्दर से एक साथ जुगलबंदी करते हैं, अपने आकाओं के व्दारा किये गये षडयंत्र को अमली जामा पहनाते हैं और करते हैं अहिंसकों पर हिंसा का क्रूरतम प्रहार। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।