अशोक कुमार यादव मुंगेली
तोर बदन हवय बिकट अंधियार करिया रंग।
बिकराल रुप, बगरे चुन्दी ल देख जन हें दंग।।
बिजुरी जइसे चमकत हे दाई, घेंच के माला।
अंधियारी ल मेट के करथच तैंय ह उजाला।।
तीनों लोक के समान गोल हे तीनों आँखी ह।
साँस ले निकलत हे पिंयर धधकत आगी ह।।
भगत ल वर अउ अभय, दू ठन हाथ ले बाँटे।
लोहा के काँटा अउ खड़ग, दू हाथ म बिराजे।।
मंगल फर देय के खातिर माता शुभंकरी कहाए।
दरस देखाके सेउक मन ल पुन के भागी बनाए।।
असुरी ताकत ह तोर नाव ल सुन के पल्ला भागे।
मनखे के बाधा दूर होथे, भय ले सुसिन्त्र हो जाथे।।
साधक के पाबन मन सहस्रार चकरा म समाथे।
दाई के पूजा ले जम्मों सिद्धि के कपाट खुलथे।।