-तनवीर जाफ़री
07 अक्टूबर को दक्षिणी इज़राइल पर हमास के दुर्भाग्यपूर्ण हमले के बाद इज़राईली सेना द्वारा बदले की कार्रवाई विगत 15 दिनों से लगातार जारी है। ख़बरों के अनुसार 7 अक्टूबर को हमास द्वारा किये गये हमले में लगभग 1,400 इज़राइली और और कई विदेशी नागरिक मारे गए थे। जबकि इज़राईल सेना द्वारा बदले की कार्रवाई करते हुये अब तक ग़ज़ा को लगगभग पूरी तरह तहस नहस किया जा चुका है। हमास के इस्राईल पर किया गया हमला पूर्णतयः निंदनीय था। परन्तु इस्राईली सेना के जवाबी हमलों में ग़ज़ा में अब तक लगभग 25 हज़ार से ज़्यादा इमारतें तबाह हो चुकी हैं। लगभग एक दर्जन अस्पतालों और 50 से अधिक स्कूलों पर इस्राईली टैंकों व वायु सेना द्वारा बमबारी कर उन्हें ध्वस्त किया जा चुका है। ग़ज़ा में अब तक मरने वालों की संख्या लगभग 7 हज़ार से अधिक हो चुकी है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ग़ज़ा में अब तक मारे गए लोगों में से लगभग 70 प्रतिशत बच्चे और महिलाएं शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार ग़ज़ा में पांच लाख से ज़्यादा लोग घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं। ग़ज़ा में केवल एक अस्पताल पर हुये हमले में ही पांच सौ से ज़्यादा लोग मारे गए थे। जिसके बाद पूरी दुनिया में इस्राईल के विरुद्ध ग़ुस्सा फैल गया था। इस युद्धअपराधी हमले की चौतरफ़ा आलोचना व निंदा की गयी थी।
इस मानवता विरोधी युद्ध के दौरान दुनिया के अनेक देशों में फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में तथा ‘ज़ायनिस्टों ‘की क्रूरता के विरोध में प्रदर्शन किये गये हैं। यहाँ तक कि इस्राईल, अमेरिका व ब्रिटेन सहित कई देशों में तो स्वयं इस्राईली मानवतावादियों द्वारा ‘ज़ायनिस्टों’ द्वारा किये जा रहे युद्ध अपराधों के विरुद्ध प्रदर्शन किये गये हैं। इसके अतिरिक्त हज़ारों लोग अमेरिका और यूरोप में भी कई प्रमुख शहरों में फ़िलिस्तीन के समर्थन में सड़कों पर उतर आए हैं। यहूदी संगठनों के सदस्यों सहित हज़ारों फ़िलिस्तीनी समर्थक प्रदर्शनकारी पिछले दिनों वॉशिंगटन के कैपिटल हिल में सड़कों पर उतर आए। उन्होंने इस्राइल-हमास के बीच चल रही जंग तत्काल बंद करने की मांग की। दुनियाभर के और भी कई देशों में इस्राइल के विरोध और फ़िलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं। कनाडा के टोरंटो सहित कई शहरों में भी फ़िलिस्तीन के समर्थन में नारेबाज़ी की गई और इस जंग को तुरंत रोकने की मांग की गयी। इस दौरान फ़िलिस्तीन और ग़ज़ा की आजादी के नारे लगाए गए और ग़ज़ा पर इस्राइली सेना के हमले की निंदा की गयी। ये प्रदर्शनकारी ग़ज़ा में हिंसा समाप्त करने की मांग तो कर ही रहे हैं साथ ही फ़िलिस्तीनी लोगों के अधिकारों के साथ भी खड़े हुये हैं। इसी तरह न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च में फ़िलिस्तीन सॉलिडेरिटी नेटवर्क एओटेरोआ द्वारा आयोजित फ़िलिस्तीन समर्थक रैली में प्रदर्शनकारियों ने इस्राइल से युद्ध रोकने और उसके क़ब्ज़े वाली फ़िलिस्तीनी भूमि को छोड़ने का आह्वान किया गया। ब्रिटेन में लंदन सहित अन्य स्थानों पर भी फ़िलिस्तीन के समर्थन में नारेबाज़ी की गई और युद्ध के विरुद्ध बड़ी संख्या में लोगों ने पैदल मार्च किया। इसी तरह फ़्रांस की राजधानी पेरिस में भी फ़िलिस्तीन के समर्थन में नारेबाज़ी की गई। इस दौरान लोगों ने फ़िलिस्तीन के झंडे लहराए और इस्राइल के विरोध में नारेबाज़ी की। प्रदर्शनकारियों ने इस्राइल और हमास के युद्ध को बंद करने की मांग की। इसी तरह इंडोनेशिया, मोरक्को, लेबनान व अन्य कई देशों में भी बड़ी संख्या में इस्राईल विरोधी, युद्ध विरोधी व फ़िलिस्तीनी अधिकारों के पक्ष में जुलूस, मार्च व प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है।
परन्तु आश्चर्य की बात है कि इस युद्ध का सबसे अधिक उन्माद भारत में दिखाई दे रहा है। वह भी सोशल मीडिया व टीवी चैनल्स पर। भारत में इज़राइल-हमास युद्ध का उन्माद इस क़दर छाया हुआ है कि इसमें झूठ फ़रेब और अफ़वाहों का भी बोल-बाला है। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत फ़िलिस्तीनी अधिकारों के तो साथ है परन्तु हमास की हिंसक कार्रवाइयों के विरुद्ध है। परन्तु भारतीय दक्षिणपंथियों द्वारा इज़राईल के दक्षिण पंथी ज़ायनिस्टों का भरपूर समर्थन सीमा से भी आगे जाकर किया जा रहा है। निश्चित रूप से भारतीय मुसलमानों की हमदर्दी पीड़ित फ़िलिस्तीनियों के साथ है। मुसलमान ही नहीं बल्कि भारत भी आठ दशक से फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों के समर्थन में खड़ा रहा है, और आज भी है। परन्तु भारत में दक्षिणपंथियों द्वारा इस हद तक इस्राईली क्रूरता को अपना समर्थन देना कि अनेक लोग सोशल मीडिया पर इस्राईली सेना की ओर से युद्ध करने की पेशकश करने लगें, अपने प्रोफ़ाइल में इस्राईली झंडे लगाने लगें, हमास की क्रूरता भरे वीडिओ पोस्ट करें परन्तु इस्राईली ज़ायनिस्टों का अमानवीय पक्ष इन्हें नज़र न आये, न ही इन्हें इस्राईली वायु सेना की ग़ज़ा के अस्पतालों पर की गयी बमबारी दिखाई दे, न ही फ़िलिस्तीनियों का दाना -पानी बंद करना तक नज़र न अये। और उल्टे इस्राईल द्वारा किये जा रहे नरसंहार पर जश्न का माहौल बनाने लगें, यह स्थिति तो बेहद चिंताजनक है।
भारत में फैले इस उन्माद की चर्चा तो विदेशों में विभिन्न बड़े समाचार पत्रों तक में हो रही है। ख़ास तौर से भारतीय दक्षिणपंथियों के इस उन्मादी रुख़ पर दुनिया इसलिये भी आश्चर्यचकित है कि स्वयं भारत में मणिपुर कई महीनों से सुलग रहा है। मानवता का गला घोंटने वाले कई बड़े हादसे मणिपुर में भी हो चुके हैं। बस्तियां फूंकना, लोगों को ज़िंदा जलाना, हत्या, सामूहिक बलात्कार, महिलाओं को नग्न घुमाना, मंत्री, सांसद, विधायक, अधिकारियों व नेताओं के घरों को आग लगाना, क्या कुछ नहीं हुआ मणिपुर में। परन्तु उसकी चिंता इन इस्राईल समर्थकों को नहीं बल्कि यह इस्राईली युद्ध उन्माद के साथ खड़े हैं। ठीक उसी तरह जैसे इनके वैचारिक वंशज उस समय हिटलर के साथ खड़े थे जब वह इन्हीं यहूदियों का नरसंहार करने में लगा था? गोया धर्म का चोला ओढ़ने वालों को हिंसा व क्रूरता जैसे अधर्म से ही इतना लगाव क्यों? सवाल यह है कि कबीर, रहीम, रसखान, टीपू सुल्तान, अशफ़ाक़ुल्लाह, बेगम हज़रत महल, रज़िया सुल्तान, अब्दुल हमीद और एपीजे अब्दुल कलाम जैसे लोगों के देश में यह उन्मादी विचारधारा कहाँ से पनप गयी जिसे मुसलमानों का नरसंहार देखने में ही आनंद मिलता है? यही वर्ग राष्ट्रवाद और राष्ट्रभक्ति की बात भी बढ़ चढ़कर करता है। परन्तु शायद वह अपने इस युद्धोन्माद में यह भूल चुका है कि उसके उस इस मूर्खतापूर्ण युद्धोन्मादी स्टैंड से दुनिया में यह देश कितना बदनाम हो रहा है? हद तो यह है कि इसी युद्धोन्मादी विचारधारा का पोषक भारतीय मीडिया का एक वर्ग भी निष्पक्ष पत्रकारिता के लिये नहीं बल्कि अपने व्यवसायिक मक़सद के तहत इस्राईल पहुंचा हुआ है। उसे भी वहाँ हमास की ज़्यादतियों के निशान तो ज़रूर नज़र आ रहे हैं परन्तु इस्राईली ‘ज़ायनिस्टों’ द्वारा किये जा रहे युद्ध अपराधों को देखने दिखाने में इनकी कोई दिलचस्पी नहीं है। सवाल यह है कि क्या यह चाटुकार गोदी मीडिया के लगभग एक दशक के दुष्प्रचार की ही देन है कि आज भारत जैसे शांति प्रिय देश में इस्राईल-हमास युद्ध के दौरान इस क़दर युद्धोन्माद का वातावरण बना हुआ है?