-डा. रवीन्द्र अरजरिया-
इजराइल के व्दारा आतंकी संगठन हमास पर की जा रही कार्यवाही पर दुनिया के अधिकांश देशों ने समर्थन दिया है किन्तु कुछ कट्टरपंथी देश इस्लाम की आड में स्वयं के अह्म की पुष्टि के लिए झंडा ऊंचा कर रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन के सहयोगात्मक रवैये के साथ-साथ भारत सहित अनेक देश आतंकवाद के विरुध्द कमर कसके खडे हैं। गाजा के अस्पताल में रणनीति के तहत ही हमास के सहयोगियों ने विस्फोट किया था ताकि इजराइल पर आरोप लगाया जा सके परन्तु अनेक सबूतों के आधार पर आतंकवादियों के मंसूबे फेल हो गये। सबूतों को नजरंदाज करते हुए अभी भी अनेक कट्टरपंथी देश और संगठन इजराइल पर ही दोष मढ रहे हैं। अमेरिका ने अपने अत्याधुनिक सैन्य साज-ओ-सामान से सुसज्जित जहाज भेजा है। सैनिकों को भी अलर्ट मोड पर रखा है परन्तु इसके मायने यह कदापि नहीं है कि वह इजराइल के साथ मिलकर युध्द करेगा। अमेरिका की नीतिओं में दुनिया की बादशाहत पर काबिज होना ही हैं। एक पक्ष की पीठ पर हाथ रखकर दूसरे को धमकाने से उसका रुतवा चौधरी वाला बन जाता है। इतिहास गवाह है कि जब-जब संसार के दो देशों के बीच में तलवारे चलीं है तब-तब अमेरिका ने अपना कद बढाया है। वर्तमान में अफगानस्तान की स्थिति के लिए केवल और केवल अमेरिका ही जिम्मेवार है जिसने तालिवान जैसे आतंकवादी संगठन को सत्ता पर काबिज होने में अप्रत्यक्ष रूप से मदद की थी, अपने सैन्य उपकरण वहां जानबूझकर छोडे थे ताकि तालिवानी उनका उपयोग करके अपनी शक्ति बढा सकें। सन् 2021 की यह घटना कोई पहला वाकिया नहीं है जब अमेरिका ने धोखेबाजी का उदाहरण प्रस्तुत किया हो। वियतनाम को भी जीवन भर का दर्द देने वाला भी अमेरिका ही है। उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम के मध्य खूनी जंग कराने वाले अमेरिका ने सन् 1973 में अफगानस्तान की तरह ही हालात पैदा कर दिये थे। एक झटके में अपनी सेना वापिस बुला ली और वहां के नागरिकों को उनके हालातों पर छोड दिया था। काबुल की तरह ही साइगान के हालात हो गये थे। इसके पहले सन् 1961 में क्यबा पर तख्ता पलट के लिए अमेरिका ने सीआईए के जरिये पिग्स की खाडी के रास्ते हमले करवाये। फिदेल के विरोध में आतंकवादी खडे किये, उन्हें प्रशिक्षण से लेकर हथियार तक दिये तथा हौसला बढाने के लिए तत्कालीन अमेरिकन विमान बी-26बी से बमबारी भी की किन्तु क्यूबा ने जैसे ही अमेरिका के तीन विमान गिरा दिये तो वह भाग खडा हुआ। सोमालिया की राजधानी मोगादिशू में सन् 1993 में अमेरिका सेना ने यूएन के साथ मिलकर सोमालियाई विद्रोही सेना पर आक्रमण किया। बाद में अमेरिका सेना ने यहां से भी अपना सामान छोडकर रवानगी डाली थी। सन् 1988 में अफगानिस्तान पर सोवियत संघ व्दारा किये गये आक्रमण के विरोध में अमेरिका ने ही आतंकी संगठन अल कायदा को खडा किया था ताकि समय-समय पर उसका उपयोग करके दुनिया का सिरमौर बना जा सके। इसके लिए ओसामा बिन लादेन तथा अब्दुलाह आजम को चुना गया था। यह अलग बात है कि आर्थिक रूप से मजबूत होते ही इस संगठन ने अपने आतंकियों को दुनिया के कोने-कोने में फैलाकर अमेरिका को ही अपना शिकार बनाया था। विगत 11 सितम्बर 2001 को अमेरिका के न्यूयार्क स्थित वल्र्ड ट्रेड सेन्टर पर हमला होते ही अमेरिका तिलमिला उठा और कभी अपना खास सिपाहसालर रहे ओसामा बिन लादेन को 2 मई 2011 को पाकिस्तान के ऐब्टाबाद में एक सैन्य आपरेशन के मौत की नींद सुला दिया। हमें यह नहीं भूलाना चाहिए कि पाकिस्तान के साथ हुए भारत के युध्दों में अमेरिका ने दुश्मन की पीठ पर ही हाथ रखा था। वर्तमान में कनाडा के साथ भारत के तनावपूर्ण संबंधों के लिए अमेरिका के व्दारा पर्दा के पीछे से षडयंत्रकारी इनपुट देने ही उत्तरदायी है जिसके आधार पर उसने खालिस्तानी आतंकी निज्जर की हत्या का आरोप भारत पर लगाया गया। जब कि चीनी मानवाधिकार कार्यकर्ता जेनिफर जेंग ने दावा किया है कि कनाडा में खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में चीना कम्युनिस्ट पार्टी के एजेन्ट शामिल थे। जेंन के अनुसार इस हत्या के पीछे चीन का उद्देश्य भारत और पश्चिमी देशों के बीच कलह पैदा करके भारत को फंसाना था। चीन के कृत्य को भारत पर आरोपित कराने में कनाडा को फीडबैक देकर अमेरिका ने अपना दांव खेल लिया। चीन तो हमेशा से ही भारत का दुश्मन रहा है परन्तु अब अमेरिका का पर्दे के पीछे से षडयंत्र करना और सामने से भारत के साथ मिलकर रूस सहित अन्य मित्र देशों से दुश्मनी कराने की चालें रह-रहकर सामने आ रहीं हैं। विश्व का सिरमौर बनने के लिए अमेरिका चल रहा है चालें जिनसे पूरी दुनिया को सतर्क रहना होगा अन्यथा वह अपनी छुपी हुई मंशा पूरी करके उभरते देशों को नस्तनाबूत करने पीछे नहीं हटेगा। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।