महात्मा गांधी से जुड़ा एक दिलचस्प वाकया है, जहां पर उन्होंने एक चुटकी नमक के साथ चाय का सेवन किया था। यह 1931 की बात है और तब नमक सत्याग्रह को एक वर्ष ही गुजरा था। महात्मा गांधी को चाय पर आमंत्रित करने वाले शख्स थे तत्कालीन ब्रिटिश वाइसराय लॉर्ड इरविन, जिन्होंने उन्हें लंदन में होने जा रही दूसरी गोलमेज परिषद की बैठक से पूर्व बातचीत के लिए बुलाया था। जब इरविन ने महात्मा गांधी को चाय की प्याली पकड़ाई, तो उन्होंने अपने शॉल में से नमक की एक पुड़िया निकाली और थोड़ा-सानमक चाय में डाल दिया। कांग्रेस पार्टी के लोगों को इंटरनेट पर वह ‘मीम (जिसमें ब्रिटिश प्रधानमंत्री को एक अन्य गुजराती (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) से तंज के रूप में ‘जाकर चाय बेचने के लिए कहते चित्रित किया गया) पोस्ट करने से पहले कम से कम गांधी जी से जुड़ा यह वाकया तो याद कर लेना चाहिए था।
महात्मा गांधी को चाय पीना पसंद नहीं था, क्योंकि वे इसे सेहत के लिए खराब मानते थे। लेकिन वे प्रतीकात्मकता का महत्व बखूबी समझते थे। लॉर्ड इरविन द्वारा ऑफर की गई चाय में एक चुटकी नमक डालते हुए उन्होंने एक तरह से नमक सत्याग्रह की वजह से ब्रिटिश राज को मिले घावों पर नमक भी मल दिया। उन्होंने लॉर्ड इरविन से कहा – ‘आपकी इस चाय ने मुझे बोस्टन टी पार्टी की याद दिला दी। गौरतलब है कि ‘बोस्टन टी पार्टी अमेरिकियों के स्वाधीनता संघर्ष से जुड़ी एक अहम घटना थी, जिसके तहत ब्रिटिशराज के अन्यायपूर्ण कानून का विरोध करते हुए प्रदर्शनकारियों ने बोस्टन हार्बर पर खड़े ब्रिटिश जहाजों पर कब्जा कर उनमें रखे चाय के बक्सों को उठाकर समुद्र में फेंक दिया था। इस तरह गांधी जी ने चाय और नमक जैसे दो प्रतीकों के इस्तेमाल के जरिए भारतीय स्वाधीनता के लक्ष्य की ओर इशारा किया था।
काश, कांग्रेस को आज प्रतीकों की ताकत का एहसास होता। उसे नहीं भूलना चाहिए था कि 2014 में भाजपा ने किस तरह कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर द्वारा की गई ‘चायवाला टिप्पणी को अपने पक्ष में भुनाते हुए आम चुनाव में अभूतपूर्व जीत हासिल की थी। तब कांग्रेस को मैकाले-पुत्रों द्वारा संचालित एक सामंतवादी पार्टी की तरह पेश किया गया और उसे उन चुनावों में हार का कड़वा घूंट पीने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह भी दिलचस्प है कि गुजरात चुनाव से पूर्व उसी कांग्रेस ने पुन: चाय की संज्ञा का इस्तेमाल कर एक घृणित मिश्रण पेश कर दिया और उम्मीद कर रही है कि मतदाता इसे गटक जाएं!
यह मीम ‘युवा देश द्वारा पोस्ट किया गया, जो कांग्रेस का ही एक ऑनलाइन प्रकाशन है। इसमें नरेंद्र मोदी को एक ऐसे गंवार शख्स की तरह दर्शाया गया, जिसे यह भी नहीं पता कि ‘मीम का सही उच्चारण क्या है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उन्हें सही उच्चारण बताते हैं और थेरेसा मे उनसे चाय बेचने के लिए कहती हैं। कुल मिलाकर इसका संदेश यह था कि गुजराती चायवाला यानी मोदी भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिहाज से फिट नहीं हैं। शायद युवा कांग्रेस की ‘कॉफी शॉप ब्रिगेड” को अंदाजा नहीं था कि उसके इस ‘मीम” दुस्साहस का कितना नकारात्मक असर होगा। भाजपा के लिए तो जैसे यह कुछ देर से मिला दिवाली का उपहार है। इस बार गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा विकट चुनौतियों से जूझ रही है, लेकिन अब वह जोर-शोर से गुजराती अस्मिता का कार्ड खेल सकती है।
भाजपा इस बात को भलीभांति समझती है (और कांग्रेस नहीं समझती) कि चाय भारतीय संस्कृति की गर्माहट का प्रतीक है। अमीर हों या गरीब, सभी चाय पीते हैं। इस तरह यह एक समताकारी तत्व भी है। चाय विविधिता में एकता की प्रतीक भी है। हरेक अंचल की अलग-अलग वनस्पतियों और मसालों के साथ अपनी खास चाय है। यहां अदरक वाली कड़क पंजाबी चाय है, बादाम-केसर-दालचीनी युक्त कश्मीरी कहवा है, हैदराबाद की धीमी आंच पर उबाली गई इलायचीयुक्त चाय है तो काली मिर्च और लौंग वाली गुजरात की मसाला चाय भी है। आज भी हर गांव-कस्बे में नुक्कड़ पर स्थित चाय की गुमटी लोगों के एक साथ बैठकर चर्चा करने और अखबार पढ़ने का प्रमुख केंद्र होती है, जहां जाति-वर्ग का कोई भेद नहीं होता। वहां सब एक जैसी चाय पीते हैं।
चाय हमारी आवभगत प्रक्रिया का शुरुआती चरण है। हम अपने यहां आने वाले हर शख्स से एक गिलास पानी के साथ चाय के लिए जरूर पूछते हैं। यदि आपका किसी के घर में चाय-नाश्ते से स्वागत नहीं होता, तो समझ लें कि उन्हें आपका आना अच्छा नहीं लगा। तकरीबन दो दशक पूर्व जब सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं तो उन्होंने पत्रकारों को बातचीत के लिए अपने आवास 10 जनपथ पर बुलाया। लेकिन वे अपने मेहमानों को चाय-पानी पेश करना भूल गईं। उनकी इस सामान्य शिष्टाचार की चूक को पत्रकारों ने माफ तो कर दिया, लेकिन भुलाया नहीं।
इसी तरह कांग्रेस को भी कभी मणिशंकर अय्यर का घृणित ‘चायवाला कमेंट नहीं भूलने दिया जाएगा। कांग्रेस की श्रेष्ठतावादी मानसिकता शशि थरूर की उस टिप्पणी में भी झलकी थी, जिसमें उन्होंने यात्री विमान के इकोनॉमी क्लास को ‘कैटल क्लास की संज्ञा दे डाली थी। चूंकि अधिकांश भारतीय आज भी विमान से सफर नहीं करते, लिहाजा वे थरूर की उस टिप्पणी का मतलब नहीं समझ पाए थे। लेकिन चाय तो सभी पीते हैं और स्थानीय चायवाले से भलीभांति परिचित भी होते हैं।
भाजपा पहले ही ‘चायवाला-2 का इस्तेमाल करते हुए लोगों को यह जताने में लगी है कि उसकी और कांग्रेस की सोच में कितना फर्क है। वह इसके जरिए बता रही है कि ये गरीब बनाम अमीर, भारतीय संस्कृति बनाम विदेशी मूल्य, विनम्रता बनाम अहंकार की लड़ाई है।
कांग्रेस के प्रेसिडेंट-इन-वेटिंग राहुल गांधी पहले ही अभिजात्य छवि से ग्रस्त हैं। लोग उन्हें ऐसे शख्स के तौर पर देखते हैं, जो अमीर व रसूखदार परिवार में जन्मा, जिसने विदेशों में शिक्षा प्राप्त की, जिसे फाइव-स्टार रेस्टोरेंट्स में जाना, विदेशों में छुट्टियां मनाना पसंद है और जो तेज रफ्तार कारों का शौकीन है। ऐसे दौर में जबकि मतदाता राष्ट्रवादी भावनाओं से ज्यादा प्रेरित हैं और सामंतवादी परिवारों को अविश्वास की नजर से देख रहे हैं, राहुल गांधी देश के आमजन के साथ जुड़ाव कायम करने में सक्षम नहीं दिखते हैं। चायवाला जैसे विवादों के बाद तो लोगों का फोकस ऐसी तमाम नकारात्मकचीजों की ओर और ज्यादा हो जाता है।
मान लेते हैं कि मोदी मीम का गलत उच्चारण करते हैं! तो क्या? अंग्रेजी के कई शब्द हिंदी शब्दकोश में आए हैं और हिंदी व उर्दू के कई शब्दों को अंग्रेजी में जगह मिली है, जिनका अक्सर गलत उच्चारण होता है। कोई कुछ भी कहे, लेकिन हमें अपनी हिंग्लिश (या कहें कि गुजलिश) पर गर्व है। आम मतदाता भी मोदी के इंग्लिश उच्चारण के बजाय राहुल द्वारा हिंदी में बोलने के लहजे पर हंसना पसंद करेंगे। बेहतर होता कि कांग्रेस टी-पार्टी ज्वाइन कर लेती, जिसकी अब गुजरात में टी-शर्ट उतरने की नौबत आ सकती है। कांग्रेस को याद रखना चाहिए कि चाय में एक चुटकी नमक ने एक साम्राज्य की चूलें हिला दी थीं।