नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट चुनाव में नोटा को बहुमत मिलने पर निर्वाचन आयोग से उसका परिणाम रद्द करने के लिए नहीं कहेगा। शीर्ष न्यायालय ने शुक्रवार को उस याचिका पर सुनवाई से इन्कार कर दिया, जिसमें नोटा को अधिकतम वोट मिलने पर चुनाव परिणाम रद्द करने और दोबारा मतदान कराने के लिए निर्वाचन आयोग को निर्देश देने की मांग की गई थी।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और जस्टिस एएम खानविलकर व जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने याचिकाकर्ता को अर्जी वापस लेने की मंजूरी दे दी। याचिका में उन उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों को दोबारा भाग लेने पर प्रतिबंध लगाने के लिए निर्वाचन आयोग को निर्देश देने की मांग की गई थी, जिनके चुनाव रद्द कर दिए गए हैं।
पीठ ने सुझावों को अव्यवहारिक करार दिया। पीठ ने कहा, ‘हम इस तरह हमारे लोकतंत्र की हत्या नहीं कर सकते क्योंकि हमारे देश में चुनाव कराना एक बहुत जटिल और खर्चीला काम है। आज हम यह नहीं कह सकते कि जब तक किसी को 51 फीसद मत नहीं मिलते हैं, तब तक उसे निर्वाचित नहीं घोषित किया जा सकता है।’
कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद याचिकाकर्ता और अधिवक्ता अश्वनी कुमार उपाध्याय को लगा कि उनकी याचिका खारिज हो सकती है। इस पर उन्होंने अदालत से अर्जी वापस लेने की मंजूरी देने का आग्रह किया, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। अश्वनी कुमार उपाध्याय दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता भी हैं।
पारसी विवाह/तलाक कानून की वैधता जांचेगा सुप्रीम कोर्ट-
सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को आजादी से पहले के पारसी विवाह और तलाक अधिनियम के प्रावधानों की वैधता जांचने को तैयार हो गया। अदालत ने कहा कि वह इस मामले में केंद्र का रुख जानना चाहती है। जस्टिस कुरियन जोसेफ और अमिताव राव की पीठ ने याचिकाकर्ता से अर्जी की एक प्रति अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल को देने को कहा और मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख तय कर दी। याचिका एक पारसी महिला ने दायर की है।
शीर्ष न्यायालय ने कहा, ‘आइए भारत सरकार के विचारों का जानते हैं। हम सरकार का पक्ष देखना चाहते हैं।’ महिला के अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट के मुस्लिमों के बीच ‘तीन तलाक’ को अवैध, शून्य और असंवैधानिक घोषित करने के फैसले का हवाला दिया और कहा कि पारसी समुदाय के भी इस मुद्दे पर विचार किया जाना चाहिए।
सुब्रह्मण्यम स्वामी की अर्जी पर सुनवाई से इन्कार
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी की उस याचिका पर सुनवाई करने से इन्कार कर दिया, जिसमें कंपनियों को सुरक्षा क्लीयरेंस मंजूरी देने के लिए केंद्र के हालिया नीतिगत दिशा-निर्देशों को चुनौती दी गई थी।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि नीतिगत निर्णय के खिलाफ एक जनहित याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है। मामले का निस्तारण करते हुए पीठ ने कहा कि उन्हें सरकार के समक्ष पक्ष रखना चाहिए। वह इसका हिस्सा भी हैं।