-निर्मल रानी-
केंद्रीय मंत्री एवं अमेठी लोकसभा क्षेत्र की सांसद स्मृति ईरानी ने इसी वर्ष जून में अमेठी क्षेत्र के एक पत्रकार से कहा कि ‘मेरे लोकसभा क्षेत्र का अपमान मत करो, तुम भास्कर से हो तो क्या!’ ‘आप अगर मेरे क्षेत्र का अपमान करेंगे तो मैं आपके मालिकान को फ़ोन करके कहूंगी… पत्रकार को अधिकार नहीं क्षेत्र की जनता के अपमान का।’ उसके बाद कुछ ही घंटों में उस पत्रकार की नौकरी चली गयी थी। पत्रकार ने मंत्री महोदय से कोई ऐसा सवाल करने का ‘साहस ‘ कर लिया था जिससे मंत्री महोदया असहज हो गयी थीं। और उसका जवाब देने के बजाय अमेठी के मान सम्मान का बहाना कर मंत्री महोदया ने पत्रकार के पेट पर लात मार दी थी। परन्तु क्या उन्हें वास्तव में अमेठी के मान सम्मान और वहां के लोगों की इतनी चिंता है? यह जानने के लिए अमेठी हल्क़े की उस ताज़ातरीन घटना पर नज़र डालनी ज़रूरी है जिसने पूरे अमेठी संसदीय क्षेत्र में सांसद स्मृति ईरानी के विरुद्ध रोष पैदा कर दिया है।
बताया जाता है कि अमेठी के मुंशीगंज इलाक़े में स्थित संजय गांधी अस्पताल में गत 14 सितंबर को दिव्या नामक एक 22 वर्षीय महिला को इलाज के लिये भर्ती कराया गया था। सर्जरी के दौरान वह कोमा में चली गई थी। उसके परिजनों का आरोप था कि मरीज़ को लखनऊ रेफ़र किए जाने से पहले 30 घंटे से अधिक समय तक अकारण अस्पताल में रखा गया था, जहां 16 सितंबर को उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद परिजनों ने अस्पताल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सहित चार कर्मचारियों के विरुद्ध लापरवाही से दिव्या की मौत होने सम्बन्धी प्राथमिकी दर्ज करा दी। इस महिला मरीज़ की मौत के केवल दो ही दिन बाद यानी 18 सितंबर को स्वास्थ्य विभाग ने संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस निलंबित कर दिया था और ओपीडी और आपातकालीन सेवाएं तक बंद कर दी गयीं। बताया जाता है कि यह अस्पताल पूरे एशिया का ग्रामीण क्षेत्र का सबसे बड़ा हॉस्पिटल है। यहाँ योग्य एवं पूर्ण शिक्षित डॉक्टर्स उपलब्ध हैं। यहां आँखों का भी इलाज होता है यहाँ तक कि डायलसिस की भी व्यवस्था है। गाइनी से लेकर 24 घंटे के आपातकाल तक का पूरा प्रबंध है। इसे अमेठी का इकलौता ट्रामा सेंटर भी कहा जाता है। यहाँ सर्जरी, सांस रोग, डेंटल, कोरडिओलॉजी, मेडिसिन, आर्थो तक के सभी इलाज निपुण एवं कुशल डॉक्टर्स द्वारा किये जाते हैं। इतना ही नहीं बल्कि कैशलेस की सुविधा भी संजय गाँधी अस्पताल अमेठी के बाद केवल लखनऊ में ही उपलब्ध है। आरोप है कि इतनी सुविधाओं वाले अस्पताल को मौक़े की तलाश में बैठे क्षेत्रीय सांसद स्मृति ईरानी व राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने इसका लाइसेंस रद्द कराने का आदेश देकर बंद करा दिया।
अस्पताल बंद होने के बाद अमेठी की जनता ने अस्पताल के समक्ष बड़ी संख्या में इकट्ठे होकर कई दिनों तक धरना प्रदर्शन किया। फिर भी सरकार की कान पर जूं तक नहीं रेंगी। आख़िरकार अस्पताल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अवधेश शर्मा की ओर से इलाहबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गयी। इस याचिका में अस्पताल का लाइसेंस निलंबित करने के एक सरकारी आदेश केा चुनौती दी गयी थी। याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता जे एन माथुर ने अदालत में यह दलील दी कि सरकार ने अस्पताल का लाइसेंस निलंबित करने का आदेश ‘‘राजनीतिक कारणों से’’ जारी किया है। हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने अमेठी के संजय गांधी अस्पताल के लाइसेंस को निलंबित करने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर रोक लगा दी। हालांकि मामले में चल रही जांच को जारी रखने को कहा गया है। इसतरह क्षेत्रीय लोगों को अदालत के आदेश के बाद ही राहत मिल सकी। आरोप है कि 16 दिनों तक सरकार की हठधर्मी से अस्पताल के बंद रहने के परिणाम स्वरूप लगभग 121 मरीज़ों की मौत हुई क्योंकि उन्हें सही समय पर इलाज नहीं मिल सका। अस्पताल कर्मियों के अनुसार इस अस्पताल में लगभग 700 से लेकर 800 मरीज़ों तक प्रतिदिन की OPD होती है जबकि प्रतिदिन 1500 मरीज़ औसतन यहाँ से स्वास्थ्य लाभ लेते हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि 16 दिनों तक अस्पताल बंदी के दौरान तमाम मरीज़ रोज़ाना आते और रोते पीटते निराश होकर वापस जाते।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद पूरे अमेठी ज़िले में यह धारणा बन चुकी है कि स्मृति ईरानी ने इसका लाईसेंस इसी लिये रद्द कराया क्योंकि यह अस्पताल कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाले संजय गांधी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है और दूसरे यह कि अस्पताल नाम के साथ “गाँधी ” शब्द जुड़ा हुआ है। इसीलिये भारतीय जनता पार्टी की अमेठी इकाई ने संजय गांधी मेमोरियल ट्रस्ट का प्रबंधन मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण गांधी को सौंपे जाने की मांग भी कर डाली। लोग यह सवाल भी कर रहे हैं कि आये दिन देश के अनेक अस्पतालों में मरीज़ों की मौत भी होती है और मरीज़ों के परिजन डॉक्टर्स पर लापरवाही का आरोप भी मढ़ते ही रहते हैं। ऐसे में कितने अस्पतालों के लाइसेंस स्थगित किये जाते हैं? कोरोना काल में अनगिनत सरकारी व निजी अस्पतालों में कहीं ऑक्सीजन की कमी आई तो कहीं बेड उपलब्ध नहीं। मरने वालों की संख्या इतनी कि जिसका कोई आंकड़ा ही उपलब्ध नहीं। ऐसे में कितने अस्पतालों के लाइसेंस स्थगित हुए और कितने ज़िम्मेदारों को जेल भेजा गया?अभी इन्हीं दिनों में महारष्ट्र में नांदेड़ के विष्णुपुरी इलाक़े के शंकर राव चव्हाण मेडिकल कॉलेज से 48 घंटे में 31 मरीज़ों के मरने की ख़बर आई। क्या उस मेडिकल कॉलेज का लाइसेंस निरस्त कराया गया?
स्थानीय लोग तो यह भी कह रहे हैं कि यदि स्मृति ईरानी को संजय गाँधी के नाम के इस अस्पताल से इतनी ही परेशानी थी तो वह अपने इसी संसदीय इलाक़े में सावरकर के नाम का इससे भी बड़ा और इससे अधिक सुविधाओं वाला अस्पताल खुलवा देतीं? परन्तु इसे बंद करने का तो क़तई कोई औचित्य नहीं था। यदि कोई अनियमिता किसी डॉक्टर या स्टाफ़ द्वारा बरती भी गयी थी तो जाँच के बाद उसके विरुद्ध क़ानूनी कार्रवाई भी की जा सकती थी। परन्तु महज़ एक महिला की मृत्यु के बाद अस्पताल का लाइसेंस निरस्त कर पूरे क्षेत्र की जनता को परेशानी में डालने और 16 दिनों की अस्पताल बंदी के दौरान कथित तौर पर 121 मरीज़ों की असामयिक मौत से क्षेत्र की जनता में यह सन्देश जा चुका है कि यह सब महज़ राजनैतिक ईर्ष्या व द्वेष की इन्तेहा का ही परिणाम था। लोगों में इस बात को लेकर भी आश्चर्य है कि अपने क्षेत्र की बदनामी के नाम पर जिस समृति ईरानी ने एक पत्रकार को बेरोज़गार करा दिया था उन्हें यह एहसास भी नहीं हुआ कि इस अस्पताल के लाइसेंस निरस्त होने के बाद मरीज़ों को होने वाली परेशानी से उनके इलाक़े की कितनी बदनामी होगी?