नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि दो सप्ताह के बाद देश का कोई भी उच्च न्यायालय वकीलों और वादियों को वीडियो कॉन्फ्रेंस तक पहुंच या ‘हाइब्रिड मोड (प्रत्यक्ष और डिजिटल तरीके)’ के जरिए सुनवाई करने से इनकार नहीं करेगा।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल अब न्यायाधीशों की पसंद पर निर्भर नहीं है।
उच्च न्यायालयों में ‘हाइब्रिड मोड’ से सुनवाई सुनिश्चित करने में प्रौद्योगिकी के बहुत कम इस्तेमाल को लेकर नाराजगी जाहिर करते हुए प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किये कि ऐसे तरीके समाप्त न किये जाएं। पीठ ने कहा, ”इस आदेश के दो सप्ताह के बाद, कोई भी उच्च न्यायालय बार के किसी भी सदस्य और वादियों को वीडियो कॉन्फ्रेंस सुविधा या ‘हाइब्रिड मोड’ के जरिये सुनवाई करने से इनकार नहीं करेगा।”
उसने निर्देश दिया कि सभी उच्च न्यायालय ‘हाइब्रिड’ या वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सुनवाई संबंधी मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) चार सप्ताह में तैयार करेंगे।
पीठ ने कहा, ”हम केंद्रीय आईटी (सूचना प्रौद्योगिकी) मंत्रालय को ऑनलाइन सुनवाई तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए पूर्वोत्तर राज्यों की अदालतों में इंटरनेट संपर्क सुविधा सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं।”
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ”यदि आप न्यायाधीश बनना चाहते हैं, तो आपको प्रौद्योगिकी के अनुकूल ढलना होगा।”
न्यायालय ने कहा कि प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल अब न्यायाधीशों की पसंद पर निर्भर नहीं है।
इससे पूर्व उच्चतम न्यायालय ने सभी उच्च न्यायालयों और कुछ न्यायाधिकरणों से इस संबंध में जवाब मांगा था कि क्या उन्होंने मामलों की सुनवाई के उस ‘हाइब्रिड’ तरीके को खत्म कर दिया है, जिसमें वकीलों और वादियों को वीडियो-कॉन्फ्रेंस के जरिये भी मामले में पेश होने की अनुमति होती थी।