दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया और स्वास्थ्य मंत्री रहे सत्येन्द्र जैन के बाद राज्यसभा सांसद संजय सिंह को गिरफ्तार किया गया है। सिसोदिया और संजय को प्रवर्तन निदेशालय ने दिल्ली शराब घोटाले के मुख्य आरोपित माना है। सिसोदिया 26 फरवरी, 2023 से जेल में हैं और अदालत के किसी भी स्तर पर उन्हें फिलहाल जमानत नहीं दी गई है। सत्येन्द्र जैन करीब डेढ़ साल जेल में गुजारने के बाद फिलहाल स्वास्थ्य कारणों से अंतरिम जमानत पर हैं। दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) के ये नेता प्रमुख चेहरे हैं, लिहाजा सवाल मौजू है कि इस कड़ी में अगला नंबर किसका होगा? क्या मुख्यमंत्री केजरीवाल शराब घोटाले की साजिशों में संलिप्त पाए जाएंगे, क्योंकि सभी आपराधिक आरोपी उनके करीबी थे और उनसे मुलाकातें करते रहे थे?
सांसद संजय सिंह का नाम प्रवर्तन निदेशालय के आरोप-पत्र में पहले से ही था, जिसे चुनौती देने की घुडक़ी सांसद ने जांच एजेंसी को दी थी। अंतत: बुधवार, 4 अक्तूबर, को 10 घंटे की गहन पूछताछ और तलाशी के बाद ईडी ने संजय सिंह को गिरफ्तार कर लिया। अब न्यायिक निर्णय अदालत के विचाराधीन है। जांच एजेंसी ने 100 करोड़ रुपए के ‘मनी टे्रल’ का जो खुलासा किया है अथवा संजय सिंह को जिन भ्रष्ट क्रियाकलापों के आधार पर आरोपित किया है, हम उसकी पुष्टि नहीं कर सकते। यह दायित्व और विशेषाधिकार अदालत का है, लेकिन कुछ सवाल और संदेह जरूर किए जा सकते हैं। दिल्ली के कारोबारी दिनेश अरोड़ा भी शराब घोटाले के आरोपित हैं, लेकिन वह ‘सरकारी गवाह’ बन गए हैं, लिहाजा उन्होंने जो खुलासे किए हैं, उनके आधार पर जांच-पड़ताल स्वाभाविक है। संजय सिंह और दिनेश अरोड़ा ने ‘आप’ के लिए चंदा जुटाने के कार्यक्रम क्यों आयोजित किए थे? सांसद के कहने पर ही 32 लाख रुपए का चेक तत्कालीन उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को क्यों दिया गया?
संजय की मध्यस्थता पर ही सिसोदिया और दिनेश की मुलाकात एक रेस्तरां में क्यों कराई गई थी? क्या सिसोदिया ने शराब नीति का मसविदा दिनेश के साथ साझा किया था? यदि ऐसा है, तो गोपनीयता उल्लंघन का दोष भी लगता है। सबसे गंभीर और संदेहास्पद सवाल यह है कि मुख्यमंत्री केजरीवाल के साथ कारोबारी दिनेश की मुलाकात, संजय सिंह की मौजूदगी में ही, क्यों कराई गई थी? इन सवालों के मद्देनजर संलिप्तता और मिलीभगत की आंच मुख्यमंत्री तक भी जाती लग रही है। सवाल यह भी है कि दक्षिण के कारोबारी समूह ने 100 करोड़ रुपए की जो कथित घूस दी थी, क्या उसमें 70 करोड़ रुपए विजय नायर और 30 करोड़ रुपए दिनेश अरोड़ा को मिले? नायर ‘आप’ के संचार विभाग के प्रभारी थे। मुख्यमंत्री ने सत्यापित किया था कि नायर अपने ही आदमी हैं, उन पर भरोसा किया जा सकता है। ‘सरकारी गवाह’ ने यह भी खुलासा किया है कि संजय सिंह ने एक मामला सुलझाने में उनकी मदद भी की थी।
बेशक ‘आप’ के किसी भी नेता ने रिश्वत के पैसे लिए अथवा नहीं, वही भ्रष्टाचार नहीं है, लेकिन आपराधिक कोशिशों में संलिप्त होना ही उन्हें ‘आरोपित’ बना देता है। इस गिरफ्तारी का संबंध संसद में अडाणी पर पूछे गए सवालों या प्रधानमंत्री मोदी के खुलेआम विरोध अथवा केजरीवाल की राजनीति से उपजी बौखलाहट नहीं है। प्रधानमंत्री या सत्तारूढ़ दल ऐसे विरोधों से डरा नहीं करते। यह ‘आप’ की हास्यास्पद राजनीति है। यह कुछ हद तक माना जा सकता है कि 2014 के बाद सरकारी जांच एजेंसियों का दुरुपयोग किया गया है। करीब 95 फफीसदी केस विपक्षी नेताओं के खिलाफ दर्ज कराए गए हैं। इस कालखंड में ईडी ने ही एक लाख करोड़ से अधिक की संपत्ति और नकदी जब्त किए हैं। इन्हें अदालत में चुनौती दी जाती रही है। अंतत: सीबीआई और ईडी सरीखी जांच एजेंसियां अदालत के प्रति जवाबदेह हैं। सांसद का मामला भर अदालत के सामने जाना है। वही रिमांड तय करेगी, लेकिन अहम सत्य यह है कि ‘आप’ जिस ईमानदारी और शुचिता की राजनीति करने आई थी, उस पर ढेरों सवाल लगे हैं और ‘आप’ के नेता बेनकाब होते जा रहे हैं। केजरीवाल या पार्टी प्रवक्ता कुछ भी बयानबाजी करते रहें।