कविता जब किसी गेम में हारने लगती, तो तेज आवाज में रोने लगती या फिर विजेता टीम के किसी खिलाड़ी को मारकर भाग जाती। उसके इस स्वभाव से उसके दोस्त बहुत परेशान थे। एक दिन जब वह क्रिकेट खेलते हुए हारने लगी, तो वह जोर-जोर से रोने लगी। यह देखकर उसके सभी दोस्त उसकी ओर भागे। उनमें से रोहित ने उससे पूछा, क्या हुआ कविता? तुम इस तरह क्यों रो रही हो? उसने गुस्से में आकर एक छोटा-सा पत्थर रोहित के सिर पर दे मारा और वहां से भाग गई। उसके इस व्यवहार से सभी दोस्त हैरान थे। अब रोहित ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक योजना बनाई। अगले दिन सभी दोस्त कविता से बोले, आजकल प्रेरणा पार्क में रोज
क्रिकेट खेला जाता है। क्यों न हम सभी रोज वहां जाकर खेल का मजा लें। कविता को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी, क्योंकि प्रेरणा पार्क उसके कमरे की खिड़की से दिखाई देता था। फिर भी दोस्तों के बार-बार कहने पर कविता ने हां कर दिया। अगले दिन सभी लोग खेल देखने गए। खेल के अंत में कविता यह देखकर भौंचक्की रह गई कि हारी हुई टीम के खिलाड़ी और जीती हुई टीम के खिलाड़ी हंसते हुए एक-दूसरे से हाथ मिला रहे थे। खेल खत्म होने के बाद वे एक-दूसरे से खूब हंस-बोल भी रहे थे। वहां से घर लौट आने के बावजूद वह बार-बार उस घटना के बारे में सोच रही थी। वह अपने कमरे की खिड़की के पास जाकर बैठ गई। उसने पार्क की तरफ देखा कि हारे हुए खिलाड़ी अगले मैच के लिए अभ्यास कर रहे हैं। दूसरे दिन वह पार्क में खेल शुरू होने से पहले वहां पहुंच गई। उन खिलाड़ियों से उसने पूछा, कल मैच में हारने के बाद भी आप लोगों को गुस्सा क्यों नहीं आया? वे सभी एक साथ बोल पड़े, खेल में हार-जीत तो होती रहती है। हमें अपनी कमियों पर विचार करना चाहिए। हमें इस बात की खोज करनी चाहिए कि हम अपनी किस कमी की वजह से हारे हैं, न कि क्रोधित होना चाहिए। तभी जीत हमारे कदम चूम सकती है। इसके बाद सभी खिलाड़ी खेलने चले गए। इस बार जीत उनकी हुई। अब कविता सारी बातें समझ चुकी थी। हारने पर किसी की पिटाई करने या रोने की उसकी बुरी आदत भी हमेशा के लिए खत्म हो गई। कविता में हुए परिवर्तन को देखकर रोहित और उसके सभी दोस्त भी काफी खुश थे।