कोलकाता। लंबे समय तक तिब्बत की आजादी पर जोर देने वाले तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के विचारों में नरमी दिखाई दी है। गुरुवार को यहां आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, “तिब्बत चीन से आजादी नहीं चाहता बल्कि ज्यादा विकास चाहता है। चीन और तिब्बत के बीच करीबी संबंध रहे हैं। यदा-कदा संघर्ष भी हुआ है।
इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा आयोजित कार्यक्रम में दलाई लामा ने ये बातें कहीं। दलाई लामा ने कहा, “अतीत बीत गया है, भविष्य पर ध्यान देना होगा। तिब्बती चीन के साथ रहना चाहते हैं। हम स्वतंत्रता नहीं मांग रहे हैं। हम चीन के साथ रहना चाहते हैं। हम और विकास चाहते हैं।”
हमारी संस्कृति का आदर करें
दलाई लामा ने कहा कि चीन को तिब्बती संस्कृति और विरासत का अवश्य सम्मान करना चाहिए। उन्होंने कहा, “तिब्बत की अलग संस्कृति और एक अलग लिपि है। चीनी जनता अपने देश को प्रेम करती है। हम अपने देश को प्रेम करते हैं।” तिब्बतियों के धर्मगुरु ने कहा कि कोई भी चीनी इस बात को नहीं समझता है कि पिछले कुछ दशकों में कुछ सालों में देश बदला है। चीन के दुनिया के साथ शामिल होने के मद्देनजर इसमें पहले की तुलना में 40 से 50 फीसदी बदलाव हुआ है।
तिब्बत के पठार का पारिस्थिकीय महत्व
बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने तिब्बत के पठार का पारिस्थिकीय महत्व भी है। चीन के पर्यावरणविदों ने इसे समझा था और कहा था कि इसका दक्षिण ध्रुव व उत्तरी धु्रव जितना ही पर्यावरणीय महत्व है। पर्यावरणविद् इसे “तीसरा ध्रुव” बताता है। यांगत्जी से लेकर सिंधु नदी तक बड़ी नदियां तिब्बत से निकली हैं। अरबों लोग इससे जुड़े हैं। तिब्बत के पठार का खयाल रखना न केवल तिब्बत के लिए बल्कि अरबों लोगों की दृष्टि से भी अच्छा है।
चीनियों से ज्यादा आलसी भारतीय
दलाई लामा ने कहा कि चीनियों की तुलना में भारतीय ज्यादा आलसी हैं, शायद मौसम इसकी वजह है। लेकिन भारत बहुत स्थिर देश है। यह विविध परंपराओं वाले लोगों को जीता-जागता उदाहरण है।
भारत में रहते हैं दलाई लामा
गौरतलब है कि तिब्बत से निर्वासित नेता दलाई लामा को भारत ने शरण दे रखी है। चीन इसका विरोध करता रहा है। दलाई लामा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहते हैं।