नई दिल्ली। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि केन्द्र सरकार को नौकरियों में वंचित वर्ग के लिए 50 प्रतिशत सीमा को हटाना चाहिए ताकि उन्हें सामाजिक न्याय मिल सके।
उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में यह सीमा 69 प्रतिशत कर दी गई है। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) सरकार सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्ष राजनीति, समाजवाद, समानता, राज्य स्वायत्तता और संघवाद को मजबूत और न्यायसंगत भारत के निर्माण की पक्षधर है। उन्होंने यह बात मंगलवार देरशाम यहां महाराष्ट्र भवन में ऑल इंडिया फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस के सम्मेलन में कही।
उन्होंने मंडल आयोग की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा अगर भाजपा को वास्तव में सामाजिक न्याय की परवाह होती पिछले नौ वर्ष में केंद्र सरकार के पदों पर 27 प्रतिशत आरक्षण को पूरी तरह से लागू किया जाता। उन्होंने ऐसा नहीं किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकारी शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण का विस्तार निजी क्षेत्र तक होना चाहिए। केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आईआईटी और आईआईएम में ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों के प्रोफेसरों की आनुपातिक नियुक्ति मिलनी चाहिए, आईआईटी, आईआईएम और आईआईएससी जैसे प्रमुख संस्थानों में प्रवेश में ओबीसी, एससी और एसटी छात्रों को आनुपातिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए। एससी, एसटी, ओबीसी कर्मचारियों और श्रमिकों की शिकायतों के समाधान के लिए एक सामाजिक न्याय समिति की स्थापना करनी चाहिए।
इस मौके पर फेडरेशन के संयोजक डीएमके के सांसद पी विल्सन ने स्वागत भाषण में देश में सामाजिक न्याय आंदोलन को फिर से खड़ा करने की वकालत की। विल्सन ने कहा महिलाओं को आरक्षण देने के लिए सरकार अब 33 प्रतिशत का विधेयक लाई है। तमिलनाडु में साल 1996 से सभी स्थानीय निकाय चुनावों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत का आरक्षण लागू किया है।
सम्मेलन में बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा महासचिव डी राजा, सपा महासचिव राम गोपाल यादव, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला, राजद नेता मनोज झा, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, भारत राष्ट्र समिति के केशव राव, एनसीपी की फौजिया खान, टीएमसी के जवाहर सिरकार, एनसीपी के छगन भुजबल सहित कई नेताओं ने सामाजिक न्याय पर जोर दिया।