हरी राम यादव
बीरों की धरती उत्तर प्रदेश को अपनी वीरता और बलिदान से गौरवान्वित करने वाले सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद का जन्म 01 जुलाई 1933 को जनपद गाजीपुर के धामपुर गांव में श्रीमती सकीना बेगम तथा मोहम्मद उस्मान के यहां हुआ था। उनकी पत्नी का नाम रसूलन बीबी था। वह 27 दिसंबर 1954 को वह भारतीय सेना की ग्रेनेडियर रेजिमेंट में भर्ती हुए थे और प्रशिक्षण पूरा करने के पश्चात 4 ग्रेनेडियर रेजिमेंट में पदस्थ हुए।
1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध में 4 ग्रेनेडियर रेजिमेंट पंजाब राज्य के तरन तारन जिले के खेमकरण सेक्टर में तैनात थी। दोनों देशों के बीच विभिन्न मोर्चों पर घनघोर युद्ध चल रहा था। हमारी सेना के रणबांकुरे पाकिस्तानी सेना को मुंह तोड़ जबाब दे रहे थे। 10 सितंबर 1965 की सुबह, समय 08 बजे, पाकिस्तान की सेना खेमकरण सेक्टर में भीखीबिंड रोड पर चीमा गांव के आगे एक महत्वपूर्ण क्षेत्र पर पैटन टैंकों की एक रेजिमेंट की ताकत से हमारी सीमा में घुस गयी। इससे पहले पाकिस्तान की ओर से तोपखाने की भारी गोलाबारी हो रही थी। इस गोलाबारी से भारतीय सेना को पूर्वानुमान हो चुका था कि पाकिस्तानी सेना कवरिंग फायर की आड़ में कुछ करने वाली है। 09 बजते बजते दुश्मन के टैंक हमारी सेना की एक पोजीशन के पास आ गये। इस क्षेत्र की सामरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी 4 ग्रेनेडियर के पास थी। 4 ग्रेनेडियर के बहादुर सैनिक पाकिस्तानी सेना को अपने सामरिक जाल में फंसाने के लिए तैयार बैठे थे।
सी. क्यू. एम. एच.अब्दुल हमीद, जो कि एक रिक्वायललेस गन टुकड़ी के कमांडर थे, यह रिक्वायललेस गन एक जीप पर फिट थी। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए, दुश्मन की भारी गोलाबारी और टैंक के भीषण फायर के बीच वह आगे बढ़े। प्राकृतिक आड़ का सहारा लेते हुए दुश्मन के सबसे आगे चलने वाले टैंक को उन्होंने अपनी गन से ध्वस्त कर दिया और फिर तेजी से अपनी स्थिति बदलते हुए उन्होंने दुश्मन के एक और टैंक के परखच्चे उड़ा दिए। इस समय तक दुश्मन के टैंकों ने उन्हे देख लिया और वे उनकी जीप पर स्थित गन के ऊपर मशीन गन और दूसरे हथियारों से भीषण फायरिंग करने लगे। निडर सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद ने अपनी गन से दुश्मन के टैंकों पर फायरिंग जारी रखी। अपने टैंकों की धज्जियां उड़ती देख पाकिस्तानी टैंक यूनिट में भगदड़ मच गयी। इसी बीच वह दुश्मन के उच्च विस्फोटक गोले से घातक रूप से घायल हो गये।
सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद की इस साहसपूर्ण कार्यवाही ने उनके साथियों को वीरतापूर्ण लड़ने और दुश्मन द्वारा किये गये भारी टैंक हमले को हराने के लिए प्रेरित किया। युद्ध के दौरान दुश्मन की ओर से हो रही भारी गोलाबारी के बीच अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की परवाह न करते हुए उन्होंने जो बहादुरी का मापदंड स्थापित किया वह न केवल उनकी यूनिट के लिए, बल्कि पूरी भारतीय सेना के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण था।
1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान खेमकरन सेक्टर में असल उत्ताड़ की लड़ाई में अप्रतिम वीरता और साहस का परिचय देते हुए वह वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी वीरता और अदम्य साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत 10 सितंबर 1965 को देश के सर्वोच्च वीरता सम्मान “परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
उस समय अजेय समझे जाने वाले अमेरिका निर्मित पैटन टैंकों की कब्रगाह को देखकर दुनिया के समरतांत्रिक सोच में पड़ गये थे। यह घटना युद्ध के इतिहास में एक अजूबा थी। अमेरिका और पाकिस्तान को इस टैंक पर बहुत गुमान था। इस बात की गंभीरता का अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि अमेरिका को अपने इन टैंकों की दुबारा समीक्षा करवानी पड़ी थी।
सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद की याद में उनके गांव धामपुर में उनकी प्रतिमा लगायी गयी है। खेमकरण सेक्टर के असल उत्ताड़ गांव में उनकी समाधि पर प्रतिवर्ष 10 सितम्बर को एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। आजादी के 50 वर्ष पूरा होने के उपलक्ष में सरकार ने सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद की याद में एक डाक टिकट जारी किया है।