हमारे देश का सांस्कृतिक और पौराणिक नाम ‘भारत’ है। संविधान में ‘इंडिया’ नाम का भी उल्लेख है। संविधान की प्रस्तावना में लिखा है-‘इंडिया, जो भारत है, राज्यों का संघ कहलाया जाएगा।’ यही संवैधानिक व्यवस्था जारी रही है। भारत और इंडिया हमारे देश के पूरक नाम रहे हैं, जिन पर हमें गौरव महसूस करना चाहिए। भारत जी-20 देशों की अध्यक्षता कर रहा है और 9-10 सितंबर को शिखर सम्मेलन होगा, जिसमें कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष या प्रधानमंत्री भाग लेंगे। ‘राष्ट्रपति भवन’ ने विदेशी मेहमानों के लिए 9 सितंबर को रात्रि-भोज का आयोजन किया है। उसके निमंत्रण-पत्र में लिखा गया है-‘प्रेसीडेंट ऑफ भारत…।’ अभी तक ‘प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया’ का चलन रहा है। अलबत्ता हिंदी में ‘भारत के राष्ट्रपति’ लिखने की भी परंपरा रही है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री मोदी ऑसियान समिट में शिरकत करने इंडोनेशिया जा रहे हैं। इस संदर्भ में लिखा गया है-‘प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत…।’ ये नए प्रयोग गलत नहीं हैं, लेकिन अचानक ऐसा बदलाव सामने आया है, तो अटपटा और संदेहास्पद जरूर लग रहा है। ऐसे बदलाव की जरूरत क्या थी? क्या मोदी सरकार संविधान में महत्त्वपूर्ण संशोधन के मंसूबे रखती है? क्या संविधान की प्रस्तावना में भी परिवर्तन किया जा सकता है? इनके जवाब संसद के विशेष सत्र के दौरान मिल सकते हैं, लेकिन हमारी जड़ें, हमारा परिचय और हमारी सांस्कृतिक विरासत ‘भारत’ में निहित है। ‘विष्णु पुराण’, ‘ब्रह्म पुराण’ और कई अन्य धार्मिक ग्रंथों में ‘भारतम्’ शब्द का उल्लेख मिलता है। लेकिन हमारे देश को आर्यावर्त, हिंद, हिंदुस्तान, भारतखंड, हिमवर्ष, जम्बूद्वीप आदि नामकरणों से भी संबोधित किया जाता रहा है। किसी को कोई आपत्ति नहीं रही। 2016 में एक याचिका के संदर्भ में सर्वोच्च अदालत ने फैसला दिया था कि इंडिया और भारत दोनों ही नाम प्रचलित रहेंगे। नागरिक अपनी इच्छा और पसंद के मुताबिक नाम का इस्तेमाल कर सकते हैं। ‘भारत’ के अलावा ‘इंडिया’ के साथ भी मिथकीय कथाएं जुड़ी हैं। महारानी इंदुमती अयोध्या के सम्राट अज की धर्मपत्नी और महाराजा दशरथ की माता थीं। जब राजा राम अयोध्या के सिंहासन पर बैठे, तो उनके कालखंड में दादी इंदुमती का नाम भी प्रचलित था, जिसे आज हम ‘इंडिया’ कहते हैं। ‘भारत’ नाम राजा राम के छोटे भाई भरत के नाम पर पड़ा। किंवदन्ति यह भी है कि राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र का नाम भी भरत था। ऋषि कण्व ने भरत को ‘चक्रवर्ती सम्राट’ बनने का आशीर्वाद दिया था, लिहाजा उनके आधार पर हम ‘भारत’ बने। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी के ‘चक्रवर्ती पुत्र’ भरत विश्व-विजयी सम्राट थे, लिहाजा देश का नाम ‘भारत’ पड़ा। ऐसी कई मिथकीय कथाएं और मान्यताएं होंगी, जो ‘भारत’ के सांस्कृतिक अतीत का खुलासा करती रही हैं, लेकिन 1947 में देश की आजादी के बाद जब संविधान ने आकार और स्वीकृति प्राप्त की, तो अनुच्छेद एक में ‘इंडिया अर्थात भारत’ का उल्लेख किया गया। यदि देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने ‘भारत’ शब्द का प्रयोग किया है, तो किसी प्रोटोकॉल का हनन नहीं किया गया है। हमारे ‘राष्ट्रगान’ में ‘भारत भाग्य विधाता’ लिखा गया है, तो भारत सरकार की कई परियोजनाओं के साथ ‘इंडिया’ शब्द लिखा गया है। हमारे केंद्रीय बैंक, उच्च शैक्षिक संस्थानों, अस्पतालों, चुनाव आयोग आदि के साथ भी ‘इंडिया’ शब्द आज भी नत्थी है। किसी को हटाने का कोई निर्णय और आदेश नहीं है। फिर सियासी चीखा-चिल्ली क्यों? देश में ‘सदी के महानायक’ अमिताभ बच्चन और उनकी सांसद-पत्नी जया बच्चन ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया दी है-‘भारत माता की जय।’ हमारे महान एवं विश्व चैम्पियन बल्लेबाज सुनील गावस्कर ने भी ‘भारत’ को ही मूल नाम और परिचय माना है। ढेरों प्रतिक्रियाएं आना स्वाभाविक है।