-सर्बानंद सोनोवाल-
आज दुनिया भारत को किफायती और साक्ष्य-आधारित स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में पारंपरिक ज्ञान के भंडार के रूप में पहचानती है। इसका मुख्य कारण आयुर्वेद और योग में इसकी प्रभावशीलता है। भारत की जी-20 की अध्यक्षता ने इस प्रभावकारिता को विश्व की अग्रणी हस्तियों और स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े विशेषज्ञों के सामने बहुत ही लक्षित तरीके से प्रदर्शित करने का सुनहरा मौका प्रदान किया। आयुष मंत्रालय ने वैश्विक समुदाय को यह बताने के लिए सभी प्रासंगिक विचार-विमर्श में सक्रिय रूप से भाग लिया। भारत के पारंपरिक स्वास्थ्य विज्ञान “अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण” के सतत विकास लक्ष्य 3 (एसडीजी 3) पर ध्यान केंद्रित करते हुए मानवता और पर्यावरण की लगातार बढ़ती चुनौतियों से निपटने के लिए इसे प्रदर्शित कर रहे हैं। अब यह बिल्कुल स्पष्ट है कि कोविड के बाद वैश्विक समुदाय के स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार में भारी बदलाव आया है। अब यह समग्र स्वास्थ्य और कल्याण की ओर स्थानांतरित हो गया है। न्यायसंगत तरीके से उच्च गुणवत्ता, सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना अब मानवता की जरूरत है। पिछले 9 वर्षों के दौरान आयुष मंत्रालय की विभिन्न पहलों ने विभिन्न पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों में आधुनिक तकनीकी उपकरणों और आधुनिक पद्धतियों को शामिल किया है, जिसके परिणामस्वरूप समग्र रूप से साक्ष्य-आधारित आयुष क्षेत्र में जबरदस्त वृद्धि हुई है।यह याद रखना उचित होगा कि जापान के ओसाका में जी-20 शिखर सम्मेलन के तीसरे सत्र के दौरान, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्वास्थ्य सेवाओं के संबंध में 5 ए – एक्सेसीबल (पहुंच योग्य), अफोर्डेबल (किफायती), अप्रोप्रिएट (समुचित), एकाउंटेबल (जवाबदेह) और एडेप्टेबल (अनुकूलनीय) के बारे में बताया था। आयुष मंत्रालय इन आयामों में लगातार योगदान दे रहा है और भारत की जी-20 अध्यक्षता के तहत व्यापक चर्चा के दौरान मंत्रालय ने विभिन्न कार्यक्रमों/सेमिनारों में प्रदर्शित किया कि उसके पास (ए) जी-20 देशों के भीतर पारंपरिक चिकित्सा के लिए अनुसंधान एवं विकास और नियामक दिशानिर्देशों का मानकीकरण को लेकर वैश्विक सहयोग और समन्वय को बढ़ावा देने के लिए सभी आवश्यक साधन हैं; (बी) ज्ञान साझा करने, क्षमता निर्माण और सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों की सुविधा के लिए उद्योग जगत से हितधारकों को शामिल करना। मंत्रालय ने सहयोग और साझेदारी के संभावित क्षेत्रों की पहचान करने के लिए विभिन्न जी-20 भागीदारी और कार्यसमूहों के साथ मिलकर काम किया।जी-20 के तहत स्वास्थ्य कार्यसमूह की स्थापना महत्वपूर्ण वैश्विक स्वास्थ्य मुद्दों पर संवाद बढ़ाने और जी-20 देशों के दिग्गजों को सूचित करने के लिए की गई है। साथ ही, यह समूह वर्तमान और भविष्य की पीढिय़ों के लिए समान स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त करने की दिशा में काम करता है। आयुष मंत्रालय ने जी-20 की भारत की अध्यक्षता के दौरान स्वास्थ्य संबंधी सभी कार्यसमूह कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग लिया। यह सब 17-18 अगस्त को गुजरात के गांधीनगर में आयोजित पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) पारंपरिक चिकित्सा वैश्विक शिखर सम्मेलन में किया गया। गुजरात के जामनगर में पारंपरिक चिकित्सा के लिए डब्ल्यूएचओ ग्लोबल सेंटर में भागीदारी, विचारों और अनुभवों के आदान-प्रदान के मामले में और डब्ल्यूएचओ पांरपरिक चिकित्सा रणनीति 2025-35 के दस्तावेज दोनों के लिए भविष्य की रणनीतियों को तैयार करने को लेकर शिखर सम्मेलन एक बड़ी सफलता थी।पारंपरिक चिकित्सा में भारत सरकार के प्रयासों की सराहना करते हुए, डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस ने इस वैश्विक शिखर सम्मेलन के दौरान पांरपरिक चिकित्सा में भारत के निर्विवाद योगदान की पुष्टि की। उल्लेखनीय है कि इस वैश्विक शिखर सम्मेलन के परिणाम दस्तावेज को जल्द ही डब्ल्यूएचओ द्वारा गुजरात घोषणा के रूप में जारी किया जाएगा।हाल ही में, जुलाई में दिल्ली में जी-20 शेरपा, अमिताभ कांत की अध्यक्षता में आयुष मंत्रालय द्वारा स्थिति का जायजा लिया गया था। बैठक में जी-20 के माध्यम से वैश्विक स्तर पर चिकित्सा की आयुष प्रणालियों को बढ़ावा देने के आयुष मंत्रालय के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया गया। डब्ल्यूएचओ ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन (जीसीटीएम) के भीतर नवीन तकनीकों और नवीन दृष्टिकोणों को शामिल करने का सुझाव देते हुए, अमिताभ कांत ने विस्तार से बताया कि कैसे इनफ्यूजन पारंपरिक कार्यप्रणालियों को आधुनिक बनाएगा और उनकी प्रभावशीलता को बढ़ाएगा, जिससे पारंपरिक चिकित्सा की व्यापक स्वीकृति और उपयोग को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने जी-20 के सभी भागीदार समूहों में पारंपरिक चिकित्सा के सिद्धांतों को एकीकृत करने के लिए हितधारकों के बीच बेहतर सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया।जी-20 की विभिन्न एंगेजमेंट और वर्किंग ग्रुप की बैठकों में आयुष मंत्रालय के प्रयासों का निश्चित रूप से प्रभाव पड़ा है। इस बैठक में यह तब स्पष्ट हुआ जब स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अपर सचिव श्री लव अग्रवाल की टिप्पणी में उन्होंने भारत की जी-20 अध्यक्षता के दौरान स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की आगामी स्वास्थ्य संबंधी घोषणा में पारंपरिक चिकित्सा को शामिल करने की पुष्टि की। उन्होंने आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल के संदर्भ में पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों की पूरी क्षमता का पता लगाने और सहयोग करने के लिए विशेषज्ञों और हितधारकों को एक मजबूत मंच प्रदान करने के लिए पारंपरिक चिकित्सा के लिए एक समर्पित मंच की स्थापना की आवश्यकता भी जताई। उसी बैठक में, स्टार्टअप-20 के इंडिया चेयर श्री चिंतन वैष्णव ने कहा कि आयुष चिकित्सा प्रणाली को भविष्य को आकार देने वाले स्टार्टअप-20 एजेंडा की सूची में शामिल किया गया है, जिसे ब्राजील की जी-20 की अगली अध्यक्षता के तहत आगे बढ़ाया जाएगा।अपने अत्याधुनिक अस्पतालों और अत्यधिक कुशल डॉक्टरों के साथ, भारत चिकित्सा पर्यटन के लिए सबसे लोकप्रिय स्थलों में से एक बनकर उभरा है। देश में चिकित्सा पर्यटन को और बढ़ावा देने के लिए, तिरुवनंतपुरम में पहले स्वास्थ्य कार्यसमूह ने चिकित्सा मूल्य यात्रा पर एक अतिरिक्त कार्यक्रम का आयोजन किया। यह भारत में चिकित्सा पर्यटन उद्योग में अवसरों और चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए एक लाभदायक और व्यावहारिक मंच था। यहां कई हितधारकों द्वारा यह देखा गया कि एकीकृत स्वास्थ्य देखभाल पर आधारित चिकित्सा मूल्य यात्रा के माध्यम से दुनिया के देश आपस में जुड़ेंगे। इसमें पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को मजबूत तरीके से शामिल किया गया है। यह मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में असमानताओं को दूर करने के उद्देश्य को पूरा करेगा।ल्लेखनीय है कि आयुष उद्योग हाल के वर्षों में एक महत्वपूर्ण बदलाव से गुजरा है। बाजार अनुसंधान रिपोर्ट के अनुसार बाजार में प्रति वर्ष 17 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है और अनुमान है कि यह 23.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक तक पहुंच गया है। ये संख्याएं किसी भी उद्योग मानक से बहुत अधिक हैं। आयुष की बढ़ती लोकप्रियता और स्वीकार्यता का श्रेय बढ़ी हुई जागरूकता, वैज्ञानिक मान्यता, सरकारी समर्थन, वैश्विक पहुंच, जीवनशैली के रुझान और आयुष प्रणालियों द्वारा पेश किए गए व्यक्तिगत दृष्टिकोण को दिया जाता है। जैसे-जैसे अधिक लोग आयुष कार्यप्रणालियों के लाभों का अनुभव करेंगे, मुख्यधारा की स्वास्थ्य देखभाल में इसकी स्वीकृति और जुड़ाव बढऩे की संभावना है।एक मोर्चे पर, यह आयुष क्षेत्र में काफी विकास के अवसरों को दर्शाता है, लेकिन इस तेज वृद्धि के साथ जुड़ी चुनौतियाँ भी हैं। चुनौतियों को सुरक्षा, प्रभावकारिता, पारदर्शिता, विश्वसनीयता और नैतिक कार्यप्रणालियों के संदर्भ में देखा जा सकता है।बढ़ती लोकप्रियता ऐसे उदाहरण भी सामने लाती है जहां भ्रामक दावों ने जनता के बीच अविश्वास पैदा कर दिया हैं। भारत सरकार ने भ्रामक जानकारी के मुद्दे के समाधान के लिए कई कदम उठाए हैं, जिनमें विज्ञापन और उपभोक्ता संरक्षण के मामले भी शामिल हैं। इसके संचालन में सुरक्षा और पारदर्शिता सुनिश्चित करने और आयुष के क्षेत्र में विश्वास को बढ़ावा देने की यात्रा वर्ष 2014 में आयुष मंत्रालय की स्थापना के बाद से ही शुरू हो गई थी।इन वर्षों के दौरान, मंत्रालय ने अपने फार्माकोविजिलेंस कार्यक्रम को मजबूत करके सक्रिय रूप से कदम उठाए हैं। भ्रामक विज्ञापनों की निगरानी के लिए एक मजबूत तंत्र विकसित किया गया है। इसके साथ ही, भ्रामक विज्ञापन से संबंधित अन्य नियम और विनियमन भी ऐसे मामलों से निपटने में समान रूप से प्रभावी हैं।सरकार की प्रमुख पहलों में से एक मजबूत फार्माको-विजिलेंस कार्यक्रम का कार्यान्वयन है। ये कार्यक्रम आयुष दवाओं की सुरक्षा की निगरानी करने और प्रतिकूल घटनाओं या दुष्प्रभावों पर डेटा इक_ा करने के लिए तैयार किए गए हैं। यह कार्यक्रम प्रतिकूल घटनाओं की रिपोर्ट एकत्र करता है, उनका विश्लेषण करता है और उन पर प्रतिक्रिया देता है। इस पूरी प्रक्रिया में यह सुनिश्चित किया जाता है कि आयुष दवाओं की सुरक्षा प्रोफाइल की लगातार निगरानी की जा सके।मंत्रालय ने नियामक अनुपालन और स्थापित दिशानिर्देशों के पालन के महत्व पर जोर दिया है। इसने आयुष औषधियों के लिए एक नियामक ढांचा लागू किया है, जिसमें निर्माताओं, आयातकों और वितरकों के लिए लाइसेंसिंग और प्रमाणन प्रक्रियाएं शामिल हैं। इसके अलावा, मंत्रालय ने आयुष के क्षेत्र में अनुसंधान और साक्ष्य-आधारित कार्यप्रणालियों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया है। यह आयुष उपचारों की प्रभावकारिता और सुरक्षा को मान्यता देने के लिए कठिन वैज्ञानिक अध्ययन और नैदानिक परीक्षणों को प्रोत्साहित करता है।आयुष मंत्रालय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सूचनाओं का आदान-प्रदान करने, सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों को साझा करने और आयुष दवाओं की नियामक निगरानी को मजबूत करने के लिए नियामक अधिकारियों के साथ सहयोग करता है। यह सहयोग यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि सुरक्षा मानक वैश्विक कार्यप्रणालियों के अनुरूप हैं और उनके बीच तालमेल भी है। हाल ही में गांधीनगर में डब्ल्यूएचओ पारंपरिक चिकित्सा वैश्विक शिखर सम्मेलन के दौरान, इस विषय पर गहन विचार-विमर्श किया गया, जिसके परिणामस्वरूप भाग लेने वाले देशों के बीच इस क्षेत्र में समन्वित कार्रवाई की संभावना बढ़ी है। संक्षेप में, पिछले कुछ महीनों के दौरान जी-20 की अध्यक्षता की गतिविधियों ने विभिन्न भारतीय पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को साक्ष्य-आधारित प्रभावकारिता को प्रदर्शित करने और साझा करने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान किया। इसने देश और दुनिया भर में पारंपरिक चिकित्सा क्षेत्र के सभी हितधारकों की आशा और विश्वास को भी मजबूत किया है कि भारतीय पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियां व्यापक तौर पर स्वास्थ्य कवरेज के ऊंचे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मानवता की सेवा करने में सभी आवश्यक साधनों से सुसज्जित हैं।