-ओम प्रकाश मेहता-
अब तो यह सुनिश्चित सा लगने लगा है कि हमारे देश की सत्ता के मौजूदा कर्णधारों ने हमारे संविधान को भी हमारे धर्म ग्रंथो के साथ लाल कपड़े में लपेटकर सत्ता के गलियारों में लटका कर रख दिया है और साल में एक या दो बार उस ग्रंथ की पूजा का संकल्प ले लिया है, क्योंकि इन कर्णधारों की नजर में संविधान उनका स्वार्थी राजनीति के मार्ग का सबसे बड़ा अवरोध माना जाने लगा है, इसके अब तक के आजादी के 75 वर्षों की अवधि में कई गंभीर उदाहरण सामने आ चुके हैं और ताजा उदाहरण धर्म और राजनीति का सम्मिश्रण है, जिसके तहत हिंदुओं के सनातन धर्म को राजनीति के दायरे में लाने की कोशिश की गई है। जबकि हमारे संविधान में स्पष्ट रूप से राजनीति से धर्म को अलग रखने की बात कही गई है अब धर्म की दुहाई देकर राजनीति के लाभ अर्जित करने की राह पर हमारे राजनेता पहुंच रहे हैं।
अब तक तो धर्म और राजनीति के प्रवर्तक उत्तर भारत में ही थे, विशेषकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व राजस्थान आदि राज्यों में, किंतु अब यह नई शुरुआत दक्षिण भारत से हुई और वह भी दक्षिणी राज्य के एक मुख्यमंत्री के उस बेटे से जो ना राजनीति में परिपक्व है और ना धर्म में। उसका यह विवादित बयान जारी हुआ है कि सनातन धर्म डेंगू तथा मलेरिया की बीमारी की तरह है, इसे भी जड़-मूल से इन घातक बीमारियों की तरह खत्म किया जाना चाहिए। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के बेटे उदयगिरि का यह बयान देश की राजनीति को कितने गहरे गड्ढे में ले जाएगा, इसका स्वयं उनको ही ज्ञान नहीं है, यह भारत का दुर्भाग्य ही है कि यहां की राजनीति अब ऐसे नोसीखियाओ के हाथों में जा रही है, जिन्हें राजनीति का तनिक भी न ज्ञान है, न अनुभव। ऐसे में राजनीति को रसातल में जाने से अब कौन रोक सकता है।
अब एक ओर कांग्रेस के राहुल गांधी हैं, जिनका राजनीतिक ज्ञान अनुभव और उनकी बयानबाजी किसी से भी छुपी नहीं है, तो देश की अन्य राजनीतिक पार्टियों में भी नई पीढ़ी की यही स्थिति है, जिसका ताजा उदाहरण उदयगिरि का यह बचकाना बयान है। इन के इन बयानों से देश, धर्म व राजनीति को कितनी क्षति पहुंच रही है, इसका स्वयं इनको ही ज्ञान नहीं है। ….और जहां तक उदयगिरि जी का सवाल है उन्हें तो सनातन धर्म की परिभाषा और इसके इतिहास का ज्ञान भी नहीं होगा, तो क्या अब हमारे देश को इसी पीढ़ी के हवाले किया जा रहा है, जो अपने अल्पज्ञान से इस देश को पुनः पुरातन दौर में पहुंचने की तैयारी कर रहे हैं। यदि राजनीति में अपरिपक्व परिवारवाद आगे भी चलता रहा तो फिर इस देश का भगवान ही मालिक है। इन वंश परंपरावादी युवा राजनेताओं को तो यह भी नहीं मालूम कि हमारे देश को बड़ी संघर्षपूर्ण लड़ाई के बाद मिली आजादी के बाद अब तक हमने अपनी संस्कृति को जीवित रखने के लिए कितनी मेहनत कर कुर्बानियां दी, इतने वर्षों की कमाई हमारी इस अमूल्य धरोहर को यह पीढ़ी स्वयं ही नष्ट करने पर आमादा है। इस सबके लिए यह युवा पीढ़ी दोषी नहीं है, बल्कि दोषी हम सब हैं, जिन्होंने नई पीढ़ी को देश के इतिहास व ज्ञान से वंचित रखा, इन्हें यह बताने की कोशिश ही नहीं की गई कि इस धरोहर को अब तक बचाकर रखने के लिए हमारी मौजूदा पीढ़ी को क्या कुछ नहीं करना पड़ा?
आज देश के लिए चिंता व घबराहट का सबसे बड़ा कारण ही यही है कि इस अशिक्षित व अप्रशिक्षित नई पीढ़ी के हाथों में भारत का सुनहरा भविष्य कितना सुरक्षित रह पाएगा, किंतु इसमें हमारा भी उतना ही दोष इसलिए नहीं है, क्योंकि हमें खुद समझने और नई पीढ़ी को समझने की दाल-रोटी की समस्या ने पर्याप्त मौका ही नहीं दिया, किंतु अब समय आ गया है जब लाख अवरोधों के बाद भी हमें नहीं पीढ़ी को इस खतरे से आगाह करना पड़ेगा और देशहित में यह हमारी प्राथमिकता बन गया है, इसलिए अब हमें सजक हो जाना चाहिए।