-परमवीर कौर-
आओ बच्चो, तुम्हें एक खुली और बड़ी रसोई की कहानी सुनायें। काफी सरगरमी चल रही थी उस रसोई में। एक प्रेशर कुकर में जायकेदार खाना पक रहा था। आ रही खुशबू से पता चलता था कि पकवान बहुत खास था। शायद कोई बढ़िया सी दावत होने वाली थी। खाना पकाने वाले सभी लोग अपने-अपने काम में व्यस्त थे। और इधर-उधर की बातों की तरफ ध्यान देने का उनके पास कोई समय नहीं था।
अचानक प्रेशर कुकर के मन में अपने अंदर बन रही सब्जी का घमंड हो गया। उसने इधर-उधर नजर घुमाई और बाकी सब बरतनों को संबोधन करते हुए बोला, देखो, सब से महत्वपूर्ण मैं ही हूं। दावत का सब से अच्छा पकवान तो मेरे अंदर ही पक रहा है!
रसोई घर में मौजूद सारे बरतन यह टिप्पणी सुनकर सोच में पड़ गये। लेकिन हांडी से चुप न रहा गया। उसने प्रेशर कुकर से भी अधिक गर्व से कहा, किसी भी खाने के मेज की शान तो सबसे बाद में परोसा जाने वाला मीठा पकवान होता है! और सूखे मेवों वाली खीर मेरे में पक रही है। बस फिर क्या था, हांडी की बात ने सभी बरतनों में एक होड़ सी लगा दी, एक दूसरे से आगे निकलने की! हर कोई अपने गुण बढ़ा-चढ़ा कर गिनवाने लगा। पर चमचे और कड़छियां अभी चुप थे। एक सुंदर सी कटोरी ने उन पर व्यंग्य कसते हुए कहा, कड़छी और चमचों के पास कुछ है ही नहीं बताने को, क्या बोलेंगे ये!
इस पर एक चम्मच ने धीमी अवाज में नम्रता से कहा, जब कोई भी पकवान किसी ने खाना होता है तो हमारी मदद ही ली जाती है ना, वरना कैसे खायेगा कोई?
चम्मच के इस कथन ने एक बार तो जैसे सभी डींगे मारने वाले बरतनों को चुप करवा दिया। सब गुमसुम से हो कर, चम्मच की ओर देखने लगे। एक बड़ी कड़छी चम्मच के साथ सहमति प्रगट करते हुए बोली, बिलकुल सच कहा हैय और जब डोंगे, हांडी या किसी भी बरतन से कुछ निकालना हो तो उस के लिए मेरी मदद लेनी पड़ती है। फिर कभी संगत में लंगर बांटना हो तो ये सेवा भी मेरे हिस्से ही आती है!
जब कोई कुछ नहीं बोला तो कड़छी ने मुख्य तौर से प्रेशर कुकर और हांडी को देखकर कहा, देखो, मैं किसी के काम को छोटा दिखाने की कोशिश नहीं कर रही, पर सच बताऊं? मेरे अंदर न कुछ पकाया जाता है और न ही कुछ पड़ा रहता हैय लेकिन जो खुशी मुझे भिन्न-भिन्न व्यंजन बांटने से प्राप्त होती है, वो किसी और को शायद ही कभी मिलती हो!
कड़छी के चेहरे पर एक अनोखी चमक थी। हांडी, प्रेशर कुकर और बाकी सभी बरतन हक्के-बक्के रह गये यह सुन कर! उन्हें कोई बात ही नहीं सूझ रही थी। बस हैरान से हुए, सभी कड़छी की तरफ देखे जा रहे थे। असल में इन सब को अपना आप, कड़छी के सामने बहुत छोटा, तुच्छ और बेकार सा दिखाई देने लगा। आगे से उन्होंने कभी घमंड न करने का निर्णय किया।
इसलिए बच्चों, अपने गुणों पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए। बल्कि इन गुणों से दूसरों को लाभ पहुंचाने की कोशिश करनी चाहिए।