-प्रमोद भार्गव-
चंद्रयान तीन के चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफल प्रक्षेपण के बाद लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान ने पानी और खनिजों की खोज के उद्देश्य से काम शुरू कर दिया है। देश की समूची जनता इस सफलता से अति उत्साह में है।
अब यह प्रश्न आम और खास आदमी के मन में सहज ही उत्पन्न होने लगा है कि क्या आगामी कुछ वर्षों में चंद्रमा पर मानव बस्तियां बसाई जा सकेगी ? इन्हीं संभावनाओं की तलाश में विक्रम और प्रज्ञान ने संयुक्त अभियान छेड़ दिया है। ये यहां पानी के साथ आग की भी तलाश करेंगे। यदि आग और पानी मिल जाते हैं तो चांद पर मनुष्य के आबाद होने की उम्मीद बढ़ जाएगी। लेकिन एकाएक चांद पर सुविधायुक्त घर बनाना तो संभव नहीं होगा, अतएव ऐसी गुफाओं या कोटरों में रहना होगा, जिनमें पाषाण युग का मनुष्य अग्नि के साथ रहता था।
चंद्रमा के दक्षिणी धु्रव पर सघन रूपों में बड़ी मात्रा में पानी उपलब्ध होने के तत्व मिले हैं। लेकिन ये जहां इंसान रहेगा वहां से बहुत दूर भी हो सकते हैं। इसलिए आरंभ में चांद के मौसम की जानकारी के साथ वहां के वायुमंडल में गैसों की मौजूदगी का भी पता लगाना होगा, जिससे उनके अनुकूल जीवन को संभव बनाया जा सके। हालांकि कई शोधों से यह ज्ञात हुआ है कि चंद्रमा पर गुफाओं की अनेक संरचनाएं हैं। कुछ गुफाओं में तापमान भी मनुष्य के अनुकूल है। इन गुफाओं के इर्द-गिर्द गड्ढे हैं और इन गड्ढों में पृथ्वी जैसा तापमान है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के अनुसार वहां 17 डिग्री सेल्सियस तापमान पाया गया है। परंतु चंद्रमा की सतह पर तापमान बदलता रहता है। दिन के समय यह 260 डिग्री तक और रात में यह तापमान षून्य से 280 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है। इसलिए प्रज्ञान ऐसे स्थलों की खोज भी करेगा जहां तापमान स्थिर रहता हो। चंद्रमा पर एक दिन या रात पृथ्वी के दो सप्ताह से थोड़े ज्यादा होते हैं। इस कारण भी मनुष्य का रहना आसान नहीं हो पा रहा है। हालांकि नवीनतम अनुसंधानों से पता चला है कि 200 से अधिक ऐसे गड्ढे हैं, जो लावा फूटने के कारण बने है। इनकी तलाश 2009 में ही कर ली गई थी। 2009 में ही भारत के चंद्रयान-1 ने चंद्रमा पर पानी के साक्ष्य लिए थे।
नौवें दषक से चंद्रमा को लेकर दुनिया के सक्षम देषों की दिलचस्पी इसलिए बढ़ी, क्योंकि चंद्रमा पर बर्फीले पानी और भविष्य के ईंधन के रूप में हीलियम-3 की बड़ी मात्रा में उपलब्ध होने की जानकारियां मिलने लगीं थीं।
वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि हीलियम से ऊर्जा उत्पादन की फ्यूजन तकनीक के व्यावहारिक होते ही ईंधन के स्रोत के रूप में चांद की उपयोगिता बढ़ जाएगी। यह स्थिति आने वाले दो दशकों के भीतर बन सकती है। गोया, भविष्य में उन्हीं देशों को यह ईंधन उपलब्ध हो पाएगा, जो अभी से चंद्रमा तक के यातायात को सस्ता और उपयोगी बनाने में जुटे हैं। मंगल हो या फिर चंद्रमा कम लागत के अंतरिक्ष यान भेजने में भारत ने विशेष दक्षता प्राप्त कर ली है।
दूसरी तरफ जापान ने चंद्रमा पर 50 किमी लंबी एक ऐसी प्राकृतिक सुरंग खोज निकाली है, जिससे भयंकर लावा फूट रहा है। चंद्रमा की सतह पर रेडिएशन से युक्त यह लावा ही अग्नि रूपी वह तत्व है, जो चंद्रमा पर मनुष्य के टिके रहने की बुनियादी शर्तों में से एक है। इन लावा सुरंगों के इर्द-गिर्द ही ऐसा परिवेश बनाया जाना संभव है, जहां मनुष्य जीवन-रक्षा के कृत्रिम उपकरणों से मुक्त रहते हुए, प्राकृतिक रूप से जीवन-यापन कर सके।
2009 के आस-पास भारत के चंद्रयान-1 और अमेरिकी नासा के लूनर रीकाॅनाइसेंस ऑर्बिटर ने ऐसी जानकारियां भेजी हैं, जिनसे चंद्रमा पर चौतरफा पानी उपलब्ध होने के संकेत मिलते हैं। गोया, चंद्रमा की सतह पर पानी किसी एक भू-भाग में नहीं, बल्कि हर तरफ फैला हुआ है। इससे पहले की जानकारियों से सिर्फ यह ज्ञात हो रहा था कि चंद्रमा के ध्रुवीय अक्षांश पर अधिक मात्रा में पानी है। इसके अतिरिक्त चंद्रमा पर दिनों के अनुसार भी पानी की मात्रा बढ़ती व घटती रहती है। पृथ्वी के साढ़े उनतीस दिन के बराबर चंद्रमा का एक दिन होता है। मसलन यहां पृथ्वी के साढ़े 14 दिन के बराबर एक दिन और इसी अनुपात में रातें होती हैं। ‘नेचर जिओ साइंस जर्नल‘ में छपे लेख के मुताबिक चंद्रमा पर पानी की उत्पत्ति का ज्ञान होने के साथ ही, इसके प्रयोग के नए तरीके ढूढ़े जाएंगे।
इस पानी को पीने लायक बनाने के लिए नए षोध होंगे। इसे हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विघटित कर सांस लेने लायक वातावरण निर्मित करने की भी कोशिशें होंगी। इसी पानी को विघटित कर इसे रॉकेट के ईंधन के रूप में भी इस्तेमाल किया जाएगा।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने दावा किया है कि उसे चंद्रमा पर पर्याप्त रूप में पानी मिला है। यह पृथ्वी से दिखने वाले दक्षिणी ध्रुव के एक गड्ढे में अणुओं के रूप में नजर आया है। इस खोज से वैज्ञानिकों को भविष्य में चांद पर बस्ती बसाने में मदद मिल सकती है। लेकिन इस दावे के 11 साल पहले ही इसरो के चंद्रयान-1 ने 2009 में दक्षिण धु्रव पर पानी होने के साक्ष्य दे दिए थे। यह दावा अमेरिका की संस्था स्ट्रैटोस्फियर ऑब्ज़र्वरवेटरी फाॅर इंफ्रारेड एस्ट्रोनाॅमी ने की है। संस्था का दावा है कि यह पानी सूरज की किरणें पड़ने वाले क्षेत्र में मौजूद क्लेवियस क्रेटर में मिला है। नासा के मुताबिक चांद की सतह पर भारत समेत अन्य देशों द्वारा किए पानी के परीक्षणों के दौरान हाइड्रोजन की मौजूदगी का पता चला था, लेकिन तब हाइड्रोजन और पानी के निर्माण के लिए जरूरी अवयव हाइड्रॉक्सिल की गुत्थी नहीं सुलझ पाई थी। इस गुत्थी के सुलझने के बाद ही दक्षिणी ध्रुव पर पानी उपलब्ध होने की पुष्टि हुई है। नासा ने इस खोज के निष्कर्ष नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित किए हैं। इस निष्कर्ष के मुताबिक चांद पर 40,000 वर्ग किमी से ज्यादा क्षेत्र में पानी की संभावना है।
भारत के इसरो ने 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 प्रक्षेपित किया था। इसने ही पहली बार चंद्रमा पर पानी होने के सबूत दिए थे। यह पानी मून इफेक्ट प्रोब यंत्र ने दिए थे। इसे ऑर्बिटर के जरिए नवंबर 2008 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर गिराया गया था। सितंबर 2009 में इसने जानकारी दी कि चांद की सतह पर पानी चट्टान और धूल के कणों में भाप के रूप में अंतर्निहित है। इस प्रोब को चंद्रयान-1 के साथ भेजने का सुझाव पूर्व राष्ट्रपति डाॅ एपीजे अब्दुल कलाम ने दिया था। उन्होंने कहा था कि जब चंद्रयान ऑर्बिटर चंद्रमा के इतने निकट जा रहा है, तो क्यों न इसके साथ एक इम्पैक्ट प्रोब भी भेज दिया जाए। इससे चांद पर हमारी खोज को विस्तार मिलेगा। उनका अनुमान सटीक बैठा और इस प्रोब ने चांद पर पानी होने के साक्ष्य दुनिया के सामने प्रस्तुत कर दिए। चंद्रमा पर जब पानी और आग के रूप में ईंधन आसानी से सुलभ हो जाएंगे, तब चंद्रमा पर मनुष्यों के बसने का सिलसिला शुरू होने की उम्मीद की जाएगी।