अब राफेल पर तकरार, कांग्रेस को रास नहीं आई सरकार की सफाई

asiakhabar.com | November 18, 2017 | 1:47 pm IST

18 Nov नई दिल्ली। सरकार द्वारा फ्रांस के साथ किए गए राफेल फायटर जेट सौदे को लेकर राजनीति गर्मा गई है। कांग्रेस लगातार इस सौदे पर सवाल उठा रही है वहीं सरकार ने इस मामले में कांग्रेस को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। हालांकि, कांग्रेस अब भी केंद्र सरकार के जवाबों से संतुष्ट नहीं है।

राफेल सौदे पर सरकार व कांग्रेस के बीच तकरार बढ़ती जा रही है। इस मामले में सरकार की सफाई को कांग्रेस ने खारिज कर दिया है। कांग्रेस का कहना है कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन की सफाई से कई सवाल पैदा हो गए हैं। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने सरकार पर सौदे से जुड़े तथ्यों को छिपाने और उसकी असली कीमत नहीं बताने का आरोप लगाया।

कांग्रेस का कहना है कि इस सौदे में रक्षा खरीद नियमों की अनदेखी की गई और एक निजी कंपनी को लाभ पहुंचाने की कोशिश की गई है। एक विमान की कीमत क्यों नहीं बता रहे?राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर सरकार पर कांग्रेस ने नए सवालों की झड़ी लगा दी।

कांग्रेस की ओर से जारी बयान में पूछा गया है कि आखिरकार सरकार एक राफेल विमान की कीमत क्यों नहीं बता रही है? क्या यह सच नहीं है कि संप्रग सरकार के दौरान हो रहे सौदे में एक राफेल की कीमत 526 करोड़ रुपए पड़ रही थी। लेकिन मोदी सरकार उसे 1570 करोड़ रुपए प्रति विमान के हिसाब से खरीद रही है।

कांग्रेस का कहना है कि लड़ाकू विमान खरीदने के लिए एक तय प्रक्रिया है। कांग्रेस ने सवाल उठाया है कि क्या यह सच नहीं है कि 10 अप्रैल 2015 को जब प्रधानमंत्री ने 36 राफेल विमान खरीदने की घोषणा की, उस समय तक कांट्रैक्ट निगोशिएशंस कमेटी (सीएनसी) और प्राइस निगोशिएशंस कमेटी (पीएनसी) ने कोई फैसला नहीं किया था।

अनिल अंबानी को कांट्रैक्ट क्यों?

कांग्रेस अब भी अनिल अंबानी की कंपनी को राफेल से जुड़े 30 हजार करोड़ रुपए का ऑफसेट कांट्रैक्ट दिए जाने पर हमलावर है। कांग्रेस ने सवाल उठाया है कि जब हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और राफेल बनाने वाली कंपनी दासौ एविएशन के बीच अप्रैल 2014 से ही करार था, तो फिर उसे ऑफसेट कांट्रैक्ट क्यों नहीं दिया गया? जबकि एचएएल के पास पुराना अनुभव है और निजी कंपनी के पास कोई अनुभव नहीं है।

कांग्रेस ने राफेल खरीदने की प्रधानमंत्री की घोषणा के दौरान अनिल अंबानी की मौजूदगी पर भी सवाल उठाया है। तकनीकी हस्तांतरण क्यों नहीं?कांग्रेस का कहना है कि संप्रग सरकार के दौरान हुए 126 राफेल विमान सौदे में तकनीक हस्तानांतरण भी शामिल था। लेकिन मोदी सरकार के सौदे में यह शामिल नहीं है।

कांग्रेस ने पूछा है कि आखिर रक्षा मंत्री को क्यों नहीं लग रहा है कि तकनीक स्थानांतरण देश के सामरिक हित में होता? 36 राफेल विमानों की आकस्मिक खरीद की निर्मला सीतारमन की सफाई भी कांग्र्रेस के गले नहीं उतर रही है।

सुरजेवाला ने कहा कि आखिरकार 36 महीने बीतने के बावजूद एक भी विमान क्यों नहीं मिला? जब सामान्य खरीद की बातचीत पहले से चल रही थी, तब आकस्मिक खरीद की बात कहां से आ गई?

उन्होंने सीतारमन के इस कथन पर हैरानी जताई कि पूरे सौदे में आधा ऑफसेट डील का है, जिस पर अभी हस्ताक्षर नहीं हुए हैं। जबकि सच्चाई यह है कि रिलायंस ने अपनी वेबसाइट पर 30 हजार करोड़ रुपए के डील का एलान कर रखा है। फ्रांसीसी रक्षा मंत्री इसके लिए रिलायंस की नई फैक्ट्री का उद्घाटन भी कर चुके हैं।

रिलायंस ने कांग्रेस को दी कार्रवाई की चेतावनी

रिलायंस डिफेंस को राफेल विमान खरीदी सौदे में अनुचित रूप से साझेदार बनाने के कांग्रेस के आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कंपनी ने कड़ा एतराज जताया है। अनिल अंबानी समूह की कंपनी रिलांयस ने कहा है कि राफेल का निर्माण करने वाली दासौ के साथ संयुक्त उद्यम कंपनी बनाने में कोई गड़बड़ी नहीं है। कांग्रेस को इस सौदे में तथ्यों से परे बेबुनियाद आरोप लगाने से बाज आने की सलाह देते हुए ऐसा नहीं करने पर कंपनी ने कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है।

कांग्रेस का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अनिल अंबानी के निकट रिश्तों की वजह से उनकी कंपनी को राफेल सौदे का साझीदार बनाया गया है। इस पर रिलायंस समूह ने शुक्रवार को बाकायदा बयान जारी कर कांग्रेस को चेतावनी दी। साथ ही राफेल डील से अपने समूह के जुड़ने के तथ्यों और कांग्रेस के आरोपों का बिंदुवार जवाब दिया।


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