राहुल गांधी और मणिपुर, सत्ता दल का नासूर

asiakhabar.com | August 8, 2023 | 4:06 pm IST
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राहुल गांधी की सदस्यता बहाली के बाद लोकसभा में उनकी मौजूदगी का जश्न सत्तारूढ़ दल के सांसदों ने शोरगुल मचाकर और नारे लगा कर किया। वैसे सत्ताधीशों के लिए सावन का यह सोमवार बहुत अशुभ साबित हुआ, क्यूंकि एक ओर मणिपुर नरसंहार के मामले में वहां के पुलिस महानिदेशक की सुप्रीम कोर्ट में पेशी हुई। जिसमें उनसे 90 दिनों से अधिक तक चले जातीय संघर्ष के दौरान पुलिस की भूमिका के बारे में सवाल पूछे गए थे। बहरहाल, बीजेपी सांसदों ने एक बार फिर काँग्रेस पर फिर उस गिरोह का होने का आरोप लगाया जिसके अस्तित्व को उनके बड़े नेता, जी हाँ गृह मंत्री अमित शाह इसी सदन में नकार चुके हैं! हैं ना अचरज! किस्सा-कोताह यह कि राहुल और काँग्रेस पार्टी पर आरोप लगाया की वे पंडित जवाहर लाल नेहरू की नीति पर चल कर देश को हिन्दू राष्ट्र बनने के बाधक है! खैर सभापति को इस हो-हल्ले के बीच सदन को दो बजे तक स्थगित कर दिया।
राहुल गांधी की सदस्यता बहाली के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ज्यादा भक्तगण मणिपुर और नूह में जातीय और सांप्रदायिक दंगों पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वयं सज्ञान लिए जाने से पगलाए हुए थे! क्यूंकि उनका भी वही तर्क था जो स्म्रती ईरानी और लेखी उठा चुकी थी। यानि दो महिलाओं की नग्न परेड और बाद में बलात्कार जैसी घटनाएं तो बंगाल और राजस्थान में भी हुई-फिर उन पर क्यूं नहीं स्वतः संज्ञान? प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने मोदी सरकार की इन महिला मंत्रियों के तर्क को सिरे से खारिज करते हुए कहा था मणिपुर कांड की तुलना इन राज्यों में हुए अपराधों से नहीं की जा सकती। बस यही फैसला भक्तों के सड़क छाप से लेकर बुद्धिजीवी पत्रकार और साहित्यकार तक भड़क गये। उनका सारा गुस्सा अब काँग्रेस और राहुल तथा इंडिया गठबंधन से हट कर सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश की हैसियत और अधिकारों को बताने में निकला। एक फटीचरनुमा भक्त जिन्होंने यूट्यूब पर एक क्लिप डाली है कि जिसमें वे प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ को धमकाते हुए कह रहे हैं तेरी औकात क्या है, तू कुछ नहीं कर सकता। कार की टक्कर भी हो जाए तो पुलिस ही करेगी। दूसरे सीनियर सज्जन ने जो पत्रकार रह चुके हैं उन्होने भी अदालत की उस टिप्पणी पर आपति की जिसमें मणिपुर में संवैधानिक व्यवस्था असफल हो जाने और केंद्र की पहल की गैर हाजिरी में स्वतः व्यवस्था करने की बात कही गयी थी। सवाल पूछा गया कि अगर व्यवस्था और शांति बहाली का काम अदालत करेगी तब राज्य सरकारंे क्या करेंगी?
दोनों ही भक्तों ने संविधान को नकारते हुए-सुप्रीम कोर्ट से केवल लंबित मुकदमों को जल्दी फैसला करना ही हैं! मुझे याद आता है कि यही भक्तगण उत्तराखंड की हरीश चंद्र रावत की सरकार को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लगाने के आदेश को वहां के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जोसफ ने जब असंवैधानिक बताकर सरकार को सदन में, न्यायालय के प्रतिनिधि की निगरानी में बहुमत साबित करने का आदेश दिया था। तब भी बीजेपी के एक राष्ट्रीय महासचिव ने भी ऐसी ही टिप्पणी की थी अब अदालत राष्ट्रपति के आदेश को भी नहीं मानेगी? तब न्यायमूर्ति जोसफ ने कहा था कि वे कोई सम्राट नहीं है। तब भी भक्तों ने उनके आदेश को गैर कानूनी बताते हुए कहा था कि वे कैसे उस संस्था के आदेश को चुनौती दे सकते हैं जिसने उन्हें नियुक्त किया है? खैर भक्तों ने उनके संबंधों में काँग्रेस और हिन्दू विरोधी तथ्य खोजने शुरू किए थे। किस्सा कोताह यह कि दोनों महानुभावों को संविधान को देखना चाहिये और लोकतन्त्र में न्यायपालिका की भूमिका को समझना चाहिए। अमेरिका में भी वहां के पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प,जो की प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी के बहुत बड़े दोस्त रहे हैं आज उनको भी अदालत में दासियों मुकदमों का सामना करना पड़ रहा है। अपनी जमानत भी करवानी पड़ रही है।
इन भक्तों को न्यायपालिका मोदी जी के हिन्दू राष्ट्र के सपने में बाधक लग रही है। अब हिन्दू राष्ट्र के लिए 29 करोड़ मुसलमान और करोड़ ईसाई तथा अन्य धर्मो के लोग बाधक बनेंगे, इसलिए मणिपुर में ईसाई और हरियाणा में मुसलमान बीजेपी सरकारों के निशाने पर है। इन भक्तों को संविधान का धरम निरपेक्ष होना भी बाधक लगता है। इसीलिए सत्ता महात्मा गांधी और पंडित नेहरू तथा इन्दिरा जी और राजीव गांधी के बलिदान को भी नफरत की नजर से देखती है। इसी लिए जब भी इन भक्तो के नफरत के व्यापार को राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान खत्म करते हुए लगती है।
इन मोदी भक्तों और हिन्दू राष्ट्र के भाग्य विधाता बनने की आशा पाले लोगों को यह समझना होगा कि इस देश को आज़ादी महात्मा गांधी और काँग्रेस तथा कई अन्य लोगों के प्रयास से मिली है। उसमें ना तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और ना ही उससे पैदा हुई जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी की कोई भूमिका नहीं है। आज सरकार महात्मा गांधी की स्म्रती को चोरी-चोरी खत्म करना चाहती है-इसका उदाहरण है कि महात्मा, विनोबा, जयप्रकाश और आचार्य नरेंद्र देव द्वारा स्थापित सर्व सेवा संघ को और उसके द्वारा गांधी दर्शन प्रकाशित करने वाली 10 पत्रिकाओं के लाइसेंसे सरकार द्वारा रद्द कर दिये गए।
इतना ही नहीं साबरमती के संत के आश्रम को गुजरात की बीजेपी सरकार ने हस्तगत करके वहां पर सुरम्य अट्टालिका बनाने की योजना बनाई है। महात्मा गांधी सादगी की प्रतिमूर्ति थे। वे सुबह-शाम कपड़ा बदल कर प्रार्थना सभा में नहीं जाते थे। उनका आश्रम उनकी स्म्रती को पुनर्जीवित करे ऐसी व्यवस्था वहां की बीजेपी और केंद्र की मोदी सरकार तथा आरएसएस बिलकुल नहीं चाहते। उनकी हिटलरशाही विचारधारा और भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लक्ष्य में जातीय और धार्मिक नफरत जरूरी ईंधन है। जिसका विरोध राहुल की कन्या कुमारी से श्रीनगर की पद यात्रा में दिखायी दिया। इस यात्रा के परिणामों से मौजूदा सरकारी निजाम बौखला गया है।
जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह भी मणिपुर के शरणार्थी शिविरों का दौरा नहीं कर पाये, उन शिविरों में राहुल गांधी कुकी समुदाय के लोगों से मिलने गए। आज यह साफ हो गया है कि मणिपुर में कानून-व्यवस्था बिलकुल भंग हो चुकी है। सुरक्षा बलों के अस्त्रागार लूटे जा रहे अथवा सत्ता द्वारा मीतेई समुदाय के लोगों में बांटे जा रहे हैं जैसा कि आरोप लगाया जा रहा है। जब केंद्र की सरकार अपना कर्तव्य निभाने में असफल हो जाए तब नागरिक कहां जाये? उत्तर है देश की सर्वोच्च न्याय पालिका के सम्मुख, वहीं सुप्रीम कोर्ट ने किया। खुद आगे आकर घटना पर कार्रवाई की। अब अगर यह कार्रवाई भक्तों को अखर रही है तो यह उनकी तकलीफ है।


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