धर्म और मज़हब

asiakhabar.com | August 1, 2023 | 4:59 pm IST
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गोपाल बघेल ‘मधु’
टोरोंटो, ओन्टारियो, कनाडा
धर्म मानव, जीवों, पंच तत्वों और सृष्टि चक्र के सभी अवयवों का मौलिक गुण है और वह सर्वथा सर्वदा सत्य होता है!
विवाद, बहस या समस्या मज़हब की सतह पर होती है। मज़हब के लिए कुछ लोग भूल से धर्म शब्द का प्रयोग करते हैं जो उचित नहीं है।
धर्म के बिना मनुष्य मनुष्य नहीं रहता। कोई भी तत्व व जीव अपने गुण धर्म के अनुसार ही वर्तता है।
धर्म है तो मनुज हैं मानवता है। मानवता सदा रहेगी, धर्म और सबल सक्षम सुद्रढ़ होगा और मज़हब शनैः शनैः समाप्त हो जाएँगे।
बुद्धि के स्तर पर धर्म व अध्यात्म ठीक से समझ नहीं आ पाता, उसके लिए बोधि चाहिए जो बुद्धि से परे है! शासक मज़हब का दुरुपयोग कर धर्म की हानि करने का प्रयास कर सकते हैं पर वे अंततः असफल ही रहते हैं और धर्म पथ पर अग्रसर हो समाज का सार्वभौमिक विकास कर जाते हैं!
अध्यात्म के अभ्यास के बाद धर्म और अच्छी तरह समझ आजाता है व व्यवहृत होता है।
जहाँ सार्वभौमिकता है, सृष्टा में समर्पण है, सृष्टि से अपनत्व का भाव है और स्वयं को सृष्टा से जोड़ने का भाव है, वहाँ धर्म है! जहाँ देश काल पात्रों के प्रति सूक्ष्म भाव है, वहाँ धर्म है!
जहाँ सृष्टि के बजाय सृष्टि खण्ड या सीमित जन समुदाय या स्थान विशेष या समय के आपेक्षिक आयाम में क्षुद्र भाव है, वहाँ मज़हब है!
जब क्षुद्र भाव होता है तो सूक्ष्म भाव या सूक्ष्म सत्ता मन से तिरोहित हो जाती है और प्राणी में द्वैत, अहंकार, तामसी व राजसी प्रकृति आ जाती है।
उस अवस्था में वह सृष्टि की सार्वभौमिक व सार्वजनिक सेवा पूरे मनोयोग से नहीं कर पाता और अपने ही क्षुद्र भौगोलिक, सामाजिक, सामुदायिक, स्वार्थ मिश्रित मनोभाव से अहंकार, विकार, भेद विभेद, द्वेष, बहस, आक्रमण, आदि कर सृष्टा के कार्य में व्युत्पत्ति उत्पन्न करता है!
उस प्रदूषित वातावरण में व्यक्ति बँट कर परस्पर खटकते, खटखटाते, आहत करते कराते समाज के विकास में हानि पहुँचाते हैं!
परम सत्ता अपने हर सृष्ट को पूरा प्यार करती है और वह उन सबकी स्थायी और समय निरपेक्ष उनन्ति करना चाहती है! खण्ड के लोभी अखण्ड सत्ता की पथ प्रशस्ति में बाधक व अवरोधक का कार्य करते हैं!
परम सत्ता के धर्म आरूढ़ व्यक्ति पाण्डवों की भूमिका अदा करते हैं और मज़हब या खण्ड सत्ता के राही कौरवों की!
सबकी आत्मा को आकर्षित करने वाले कृष्ण सबके हितैषी व सेवक हैं और जो धर्म परायण हैं वे केवल उन्हीं को चाहते हैं!


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