भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख स्थान रखने वाले मध्यप्रदेश के उज्जैन स्थित ‘महाकालेश्वर’ मंदिर, किसी परिचय का मोहताज नहीं है। बता दें कि कुछ दिनों पहले ही एक उत्तर प्रदेश के कानपुर के एक बदमाश विकास दुबे के महाकाल के मंदिर से गिरफ्तार किए जाने के बाद इस मंदिर की चर्चा लगातार हो रही है। हम आपको बताएंगे कि महाकालेश्वर मंदिर की महिमा कितनी अपरंपार है और देश-विदेश से लोग इस मंदिर में दर्शन के लिए क्यों आते हैं? महाकालेश्वर मंदिर के निर्माण और स्थापना को लेकर भी बहुत सारी कहानियां प्रचलित हैं और इनका पुराणों तक में वर्णन है।
पुराणों के अनुसार कहा जाता है कि जब सृष्टि की रचना हो रही थी, उस समय सूर्य की 12 रश्मियां सबसे पहले धरती पर गिरीं और उन्हीं से धरती पर 12 ज्योतिर्लिंगों की स्थापना हुई। उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भी उन्हीं सूर्य रश्मि से उत्पन्न हुआ एक ज्योतिर्लिंग है। कहा जाता है कि उज्जैन की पूरी धरती ‘उसर’ यानी की उपजाऊ नहीं है और इसलिए इसे शमशान भूमि भी कहा जाता है। यहां स्थित महाकालेश्वर का मुख भी दक्षिण दिशा की ओर है, इसीलिए तंत्र मंत्र की क्रिया करने वाले लोग विशेष रूप से इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। महाकाल के इस मंदिर में और भी बहुत सारे देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं, जिसमें माता पार्वती और गणेश तथा कार्तिकेय भगवान का नाम आता है। इतना ही नहीं, महाकाल की नगरी उज्जैन में हर सिद्धि भगवान, काल भैरव भगवान, विक्रांत भैरव आदि देवताओं के भी मंदिर स्थापित हैं। महाकाल मंदिर के प्रांगण में एक कुंड बना हुआ है और कहा जाता है कि इस कुंड में स्नान करने के बाद मनुष्य के सारे पाप, दोष, संकट उसके ऊपर से हट जाते हैं।
कब करें दर्शन?
वैसे तो महाकाल के दर्शन आप 12 महीने कर सकते हैं, लेकिन कार्तिक पूर्णिमा, बैशाख पूर्णिमा और दशहरे के अवसर पर यहां विशेष रूप से मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें भारी मात्रा में लोग शामिल होते हैं और बाबा भोलेनाथ के दर्शन के साथ ही मेले का आनंद लेते हैं।
क्यों कहते हैं ‘महाकाल’?
उज्जैन के इस ज्योतिर्लिंग को महाकाल भी कहा जाता है और इसके पीछे यह वजह है कि प्राचीन समय से ही उज्जैन में संपूर्ण विश्व के मानकों का निर्धारण किया जाता रहा है। इस कारण इस ज्योतिर्लिंग को महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।
तीन खंडों में विभाजित है ‘महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग’
जी हां! महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्वरूप तीन खंडों में विभाजित है, जिसमें सबसे निचले खंड में महाकालेश्वर स्थित हैं। बीच में यानी कि मध्य खंड में ‘ओमकारेश्वर’ भगवान की पूजा की जाती है। वहीं ऊपर के खंड में नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि नागचंद्रेश्वर शिवलिंग के दर्शन साल में एक बार ही किया जा सकता है, वह भी नाग पंचमी के अवसर पर।
कैसे हुई ‘महाकालेश्वर’ मंदिर की स्थापना?
पुराणों में एक कहानी प्रचलित है जिसके अनुसार मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में जो तत्कालीन समय में अवंतिका नगरी के नाम से प्रसिद्ध था। उक्त नगरी में एक ब्राह्मण रहता था, जिसके चार पुत्र थे। उस समय राक्षसों ने उस शहर को काफी परेशान कर उत्पात मचा रखा था, जिससे परेशान होकर ब्राह्मण ने भगवान शिव की उपासना की, और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर राक्षस का वध कर ब्राम्हण और उसके पुत्र की रक्षा की। तब से ब्राह्मण की प्रार्थना पर भगवान शिव उज्जैन में ही बस गए और इस तरीके से उज्जैन में ‘महाकाल’ मंदिर की स्थापना हो गई।
और भी हैं मंदिर उज्जैन में!
उज्जैन में आपको महाकाल के दर्शन के साथ ही हर सिद्धि मंदिर भी देखने को मिलेगा, जिसे माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। इसके अलावा यहां काल भैरव का विश्व प्रसिद्ध मंदिर भी है। कहा जाता है कि इस मंदिर में मूर्ति पर प्रसाद के रूप में शराब चढ़ाई जाती है। उज्जैन में ही आपको गोपाल मंदिर देखने को मिलेगा, जिसमें भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापित है। यहीं पर आपको मंगलनाथ मंदिर के दर्शन होंगे और कहा जाता है कि मंगल मंदिर में आपके ऊपर अगर मंगल दोष है तो उसके नाश करने के उपाय किए जाते हैं।
अगर आप महाकाल के दर्शन के लिए जा रहे हैं तो सुबह होने वाली भस्म आरती जरूर देखें, क्योंकि इस मंदिर में महाकाल की आरती और श्रृंगार ताजे मुर्दे की भस्म से की जाती है। महाकाल के दर्शन के बाद जूना महाकाल का दर्शन करना आवश्यक बताया जाता है।
कैसे पहुंचे महाकाल मंदिर तक?
अगर आप महाकाल के दर्शन के लिए जा रहे हैं तो सबसे बड़ा नजदीकी शहर इंदौर है। आप यहां हवाई मार्ग, रेल मार्ग से आसानी से पहुंच सकते हैं। वहीं इंदौर सड़क मार्ग से संपूर्ण देश से जुड़ा हुआ है, तो आप सड़क मार्ग का प्रयोग कर भी आसानी से इंदौर पहुंच सकते हैं। इंदौर से उज्जैन की दूरी लगभग 45 किलोमीटर है जिसे आप आसानी से किसी भी टैक्सी से तय कर पाएंगे।