फारुक जैसे नेताओं की पाकिस्तान परस्ती माहौल खराब करती है

asiakhabar.com | November 17, 2017 | 12:00 pm IST

Nov 17 2017

जम्मू कश्मीर के बारे में अभी तक वास्तविकता से अनभिज्ञ रहे देशवासी अब यह जानने लगे हैं कि कश्मीर की समस्या के मूल कारण क्या थे। अब यह भी कहा जाने लगा है कि राजनीतिक स्वार्थ के चलते ही जम्मू कश्मीर में समस्याएं प्रभावी होती गर्इं। भारत की जनता यह कतई नहीं चाहती थी, लेकिन पाकिस्तान परस्त मानसिकता के चलते जो लोग पाकिस्तान की भाषा बोलते दिखाई दिए, उन्हें प्रसन्न रखने के लिए राजनीतिक प्रयास किए गए। हम जानते हैं कि कश्मीर को इसी राजनीति ने अलगाव की आग में झोंकने का काम किया है। पहले जिस काम को राजनीतिक संरक्षण में अलगाववादी नेताओं द्वारा किया जाता था, आज उसी काम को हमारे कुछ राजनेता आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। फारुक अब्दुल्ला का नाम इसी कड़ी का एक उदाहरण बनकर सामने आया है।

जम्मू कश्मीर में विवादित नेता के रूप में पहचान रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला कमोवेश आज भी उसी राह पर चलते दिखाई दे रहे हैं, जो उनको अभी तक विवादों के घेरे में लाती रही है। पाकिस्तान और अलगाववादी नेताओं के सुर में सुर मिलाने की प्रतिस्पर्धा करने वाले फारुक अब्दुल्ला वास्तव में कश्मीर की जनता को गुमराह करने का काम कर रहे हैं। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मामले में अभी हाल ही में दिए गए उनके बयान के कारण सामाजिक प्रचार तंत्र पर उनकी जमकर खबर ली गई। सोशल मीडिया पर भले ही निरंकुशता का प्रवाह हो, लेकिन देश भक्ति के मामले में सोशल मीडिया आज सजग भूमिका का निर्वाह कर रहा है। इतना ही नहीं कई बार सोशल मीडिया के माध्यम से जनता को जगाने का काम भी किया गया है। इसी जागरण के चलते आज फारुक अब्दुल्ला देश के लिए आलोचना का पात्र बनते दिखाई दे रहे हैं। अब बिहार के एक देशभक्त अधिवक्ता ने इनके देशद्रोही बयान को लेकर बेतिया के न्यायालय में एक याचिका दायर की है, जिस पर न्यायालय ने फारुक अब्दुल्ला पर देशद्रोह के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया है। यह मामला सही तरीके से चला तो स्वाभाविक है कि फारुक अब्दुल्ला के सामने बहुत बड़ी मुसीबत आने वाली है। हम जानते हैं कि राष्ट्र द्रोह बहुत बड़ा अपराध है और फारुक अब्दुल्ला ने वह अपराध किया है।
हम यह भी जानते हैं कि कश्मीर में भी आज हालात बदले हुए हैं, वहां पर जहां पत्थरबाजी की घटनाएं कम हुर्इं हैं, वहीं अलगाव पैदा करने वाले नेताओं की गतिविधियां भी लगभग शून्य जैसी हो गर्इं हैं। ऐसे में फरुक अब्दुल्ला का बयान पाकिस्तान परस्त मानसिकता रखने वाले लोगों के मन को मजबूत करने का ही काम करता हुआ दिखाई दे रहा है। ऐसे में सवाल यह आता है कि जो फारुक अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर में मुख्यमंत्री के पद का निर्वाह कर चुके हैं और भारत की सरकार में मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पर पर रह चुके हैं, वह पाकिस्तान की भाषा क्यों बोल रहे हैं। ऐसी कौन सी मजबूरी है कि वह अलगाव को बढ़ाने जैसे बयान दे रहे हैं। वर्तमान में जब आतंकी गतिविधियां बहुत ही कम होती जा रही हैं, फारुक का इस प्रकार का बयान देना अशोभनीय ही कहा जाएगा।
आज फारुक अब्दुल्ला को अपने स्वयं के बयानों के कारण भारत की राजनीति में लगभग निर्वासित जीवन जीने की ओर बाध्य होना पड़ रहा है। कोई भी राजनीतिक दल उनके बयानों के समर्थन में नहीं है। देश के तमाम राजनीतिक दल उनके बयान की खुले रूप में आलोचना भी करने लगे हैं। शायद फारुक अब्दुल्ला ने भी ऐसा सोचा नहीं होगा कि उन्हें इस प्रकार से अलग थलग होना पड़ेगा। हालांकि फारुक के बारे में यह भी सच है कि वह पहले भी इस प्रकार के बयान देते रहे हैं और अलगाववादी नेताओं की सहानुभूति बटोरते रहे हैं, लेकिन यह भी सच है कि आज अलगाव जैसे बयानों को उतना समर्थन नहीं मिलता, जैसा पहले मिलता रहा है।
वर्तमान में फरुक अब्दुल्ला के बारे में यह आसानी से कहा जा सकता है कि वह अवसरवाद की राजनीति करते रहे हैं और आज भी यही कर रहे हैं। उनको समझना चाहिए कि देश में अवसरवादी राजनीति के दिन समाप्त हो रहे हैं। ऐसे बयानों से उनकी राजनीति ज्यादा लम्बे समय तक नहीं चल पाएगी, इसलिए देश की जनता जो चाह रही है, फारुक को उसी रास्ते पर ही अपने कदम बढ़ाने होंगे। हम यह भी जानते हैं कि आज से 40 वर्ष पहले नेशनल कांफ्रेंस ने कश्मीर की स्वायत्तता की मांग को पूरी तरह से छोड़ दिया था और फारुक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला ने स्वयं को मुख्यमंत्री के रूप में बहाल किया था और आसानी से भारतीय संविधान के सभी प्रावधानों को स्वीकार कर लिया था। ऐसे में सवाल यह आता है कि जब शेख अब्दुल्ला ने स्वायत्तता की मांग को एक किनारे रख दिया था, तब फारुक ऐसी मांग को फिर से जिन्दा करके क्या हासिल करना चाहते हैं। क्या वह अपने आपको भारत से अलग समझ रहे हैं?
पाकिस्तान परस्ती दिखाने के बजाय फारुक भारत परस्ती दिखाएं तो ही वह भारत समर्थक कहे जा सकते हैं। वास्तव में अब वह समय आ गया है कि भारत में रहने वाले पाकिस्तान परस्त मानसिकता वाले लोगों को देश से बाहर निकाला जाए, नहीं तो ऐसे लोग एक दिन पूरे भारत का वातावरण खराब भी कर सकते हैं।

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