-पीके खुराना-
भारत एक विकासशील देश है, और यह बहस का मुद्दा है कि हम अभी तक विकासशील देश ही क्यों हैं? हमारे देश में गरीबी रेखा से नीचे के लोगों की संख्या बहुत बड़ी है, समृद्धि इनके लिए एक सपना मात्र है। एक औसत भारतीय के मुकाबले में एक अमरीकी नागरिक 30 गुना ज्यादा, दक्षिण कोरिया का निवासी 15 गुना ज्यादा, पुर्तगाल और ग्रीस का निवासी 10 गुना ज्यादा और चीनी नागरिक 5 गुना ज्यादा कमाता है। ऐसा क्यों है? इस पर गंभीर मनन की आवश्यकता है। आज हम विकसित देश बनने का प्रयत्न कर रहे हैं। सरकार इसके लिए तरह-तरह की योजनाएं बनाती है, लेकिन इतनी योजनाओं के बावजूद देश से गरीबी दूर नहीं हुई। आज जब हमें एक ‘स्मार्ट कंट्री’ होना चाहिए था, हम सिर्फ कुछ स्मार्ट शहरों से ही संतुष्ट होने के लिए विवश हैं। दरअसल, हमारे देश के पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण हमारी शिक्षा प्रणाली है। हमारे शिक्षाविद, शिक्षा सुधार के नाम पर इसे और बोझिल बनाए दे रहे हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली अक्षम है क्योंकि यह असुरक्षा की भावना जागृत करती है। बच्चा जब बड़ा होने लगता है तो वह दुनिया को उत्सुकता से देखता है और हर चीज फटाफट सीखने की जल्दी में होता है। हमारी शिक्षा प्रणाली उसकी उत्सुकता का जवाब बनने के बजाय उसकी उत्सुकता को दबाने का प्रयास करती है। दुनिया का कोई भी काम हम बिना गलतियां किए नहीं सीख सकते, तो भी हमारी शिक्षा प्रणाली बच्चों को गलतियां करने पर सजा देती है और उनमें हमेशा के लिए असुरक्षा की भावना भर देती है।
हमारी शिक्षा प्रणाली में वित्तीय शिक्षा शामिल नहीं है। वित्त के नाम पर हमारे देश में एकाउंटिंग, यानी लेखा-जोखा और उसके विश्लेषण की ही शिक्षा दी जाती है। हमारी शिक्षा प्रणाली में उस वित्तीय दृष्टि का अभाव है जो व्यक्ति को अपने समय, योग्यता और धन का उपयोग करना सिखाए। उदाहरणार्थ, यदि किसी कंपनी का कर्मचारी अथवा मैनेजर एक निश्चित समय के बाद भी अपने काम पर नहीं आएगा तो उसकी आय बंद हो जाएगी, परंतु कंपनी के मालिक का हाल भी इससे अलग नहीं है। यदि कंपनी का मालिक कंपनी के व्यवसाय की ओर ध्यान नहीं देगा तो न केवल उसकी कंपनी बंद हो जाएगी बल्कि उस पर कर्ज भी चढ़ जाएगा। वस्तुत: कंपनी का मालिक भी एक ऐसा मजदूर है जिसे अन्य कर्मचारियों की अपेक्षा सिर्फ ज्यादा वेतन मिलता है। हमारी शिक्षा हमें शारीरिक श्रम से मुक्त नहीं करती, हमें पैसे से पैसा बनाना नहीं सिखाती। सच्चे उद्यमी को अपना व्यवसाय चलाने के लिए शारीरिक रूप से उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं पड़ती। बहुराष्ट्रीय कंपनियां एक साथ कई-कई देशों में चलती हैं लेकिन उनके मालिकान हर जगह नहीं बैठते, वहां व्यवसायी एक निवेशक के रूप में अपने पैसे से पैसा कमाता है। व्यवसाय में छोटे से छोटे स्तर पर भी इसे लागू किया जा सकता है। उसके लिए सिर्फ धीरज, साहस और कल्पना की आवश्यकता होती है।
इसे कुछ उदाहरणों से समझा जा सकता है। मकान या दुकान किराये पर देकर, रिक्शा या वाहन किराये पर देकर, घर अथवा दुकान की छत पर टावर लगवा कर, हम हर माह सुनिश्चित आय प्राप्त कर सकते हैं और इसके लिए हमें पूरा महीना किसी एक स्थान पर बंध कर रहने की आवश्यकता नहीं होती। यह निष्क्रिय आय है और यही वह आय है जिसके दम पर आप सदैव कार्यमुक्त जीवन बिता सकते हैं। समृद्धि का यह एक निश्चित रास्ता है। समृद्ध लोगों का देश ही विकसित देश या ‘स्मार्ट कंट्री’ बन सकता है, पर पहले हमें गरीबी, अमीरी और समृद्धि के अंतर को समझना आवश्यक है। शायद आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि बहुत से करोड़पति लोग भी गरीबी का जीवन जीते हैं। विरासत में मिले कीमती मकान में रह रहा कोई व्यक्ति अपनी कम मासिक आय के कारण आर्थिक रूप से कठिनाई में हो सकता है। राशन का खर्च, बच्चों की शिक्षा का खर्च, चिकित्सा पर होने वाला खर्च आदि आवश्यक खर्च हैं। ऐसा हर व्यक्ति गरीब है जो अपनी रोजाना की आवश्यकताओं की पूर्ति में परेशानी महसूस करता है। गरीबी से अमीरी और अमीरी से समृद्धि की यात्रा आसान नहीं है, इसका कोई तुरत-फुरत इलाज का नुस्खा भी नहीं है।
लेकिन समृद्धि के लक्ष्य की प्राप्ति असंभव नहीं है। वह हर व्यक्ति अमीर होता है जिसका मासिक खर्च उसकी नियमित मासिक आय से कम हो, लेकिन यदि वह व्यक्ति लंबी छुट्टी पर चला जाए, किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो जाए और काम करना बंद कर दे तो उसकी आय बंद हो जाएगी और वह शीघ्र ही गरीबों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा। इसके विपरीत निष्क्रिय आय ऐसी आय है जिसमें हमारी शारीरिक उपस्थिति की आवश्यकता न हो। ऐसी आय जब हमारे मासिक खर्च से अधिक हो जाए, यानी निष्क्रिय आय इतनी बढ़ जाए कि केवल उसी आय से हमारे मासिक खर्च पूरे होने लग जाएं तो हम समृद्ध बन जाते हैं और हमें काम करने की विवशता समाप्त हो जाती है। फिर यदि हम काम करें भी तो वह हमारी इच्छा पर निर्भर करता है। देश का विकास तभी संभव है जब देश की अधिकांश जनता समृद्ध हो। पाठ्यक्रमों में शुरू से ही बच्चों को गरीबी, अमीरी और समृद्धि का अंतर शामिल होना चाहिए। समृद्ध व्यक्ति अपने स्वास्थ्य की देखभाल कर सकता है, अपने खाली समय का आनंद उठा सकता है और दूसरों के विकास में सहायक हो सकता है। हमारे देश की शिक्षा पद्धति में यही गुण आना बाकी है कि व्यक्ति अपने श्रम से ही नहीं, बल्कि अपने पैसे से भी पैसा कैसे कमाए।
धन की कमी से जूझता व्यक्ति या धन की कमी हो जाने के डर से काम में लगा व्यक्ति वस्तुत: डर की भावना से ग्रस्त डरा हुआ व्यक्ति है। भयभीत मानसिकता वाला व्यक्ति कभी इन्नोवेशन की, अभिनव आविष्कार की बात नहीं सोच सकता। भयभीत मानसिकता वाला व्यक्ति सब्सिडी चाहता है, सुविधाएं चाहता है, पेंशन चाहता है, सुरक्षा चाहता है। समृद्ध व्यक्ति को इनकी दरकार नहीं है, वह सुरक्षित भी है और स्वतंत्र भी। तो आइए, समृद्ध नागरिक बनने की दिशा में काम करें। मेहनत करें और इतना पैसा अवश्य कमाएं कि हमारा मासिक खर्च हमारी आय से कुछ कम हो। छोटी-छोटी बचत करें और उस बचत का ऐसा निवेश करें कि उससे अतिरिक्त आय होने लगे। कृपया ध्यान दें कि लाटरी निवेश नहीं, जुआ है। इसी तरह बिना आर्थिक ज्ञान के शेयर मार्केट में लगाया गया पैसा भी निवेश नहीं है। ऐसे जुए से बचें। छोटी-छोटी बचत अंतत: बड़ी बचत में बदल जाती है। इसे अपनी स्वतंत्रता का साधन बनाएं और पहले अमीर और फिर समृद्ध बनें ताकि आप इलाज के लिए, शिक्षा के लिए, रसोई गैस के लिए, बुढ़ापे में आय के लिए सरकार पर निर्भर न रहें। इसी से आपका विकास होगा, समाज का विकास होगा, देश का विकास होगा और हम विकासशील देश से विकसित देश में बदल जाएंगे। आमीन!