-सनत जैन-
पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई है। केंद्रीय सुरक्षा बल और राज्य की पुलिस ने पंचायत चुनाव को संपन्न कराने और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए काफी प्रयास किए। इसके बाद भी हिंसा थमी नहीं, हिंसा के बीच पश्चिम बंगाल में पंचायत के चुनाव हुए। पंचायत चुनाव सबसे कठिन चुनाव माने जाते हैं। पंचायत चुनाव में मतदाता अपने उम्मीदवारों के निजी व्यवहार और उसकी नेतृत्व शीलता को देखते हुए मतदान करते हैं। सभी चुनावों में पंचायत और नगरीय निकायों के चुनाव सबसे कठिन चुनाव माने जाते हैं। इसमें किसी भी तरह का कोई प्रबंधन काम नहीं आता है। पश्चिम बंगाल में यह चुनाव राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह पर लड़ा गया था। जिसके कारण राजनीतिक विचारधारा के आधार परपंचायत प्रतिनिधियों के लिए मतदान हुआ है। पंचायत चुनाव में भाजपा के शुभेंदु अधिकारी, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल, चुनाव में केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती, हाईकोर्ट द्वारा समय-समय पर दिये गए निर्देश और हस्तक्षेप के बाद भी पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में हिंसा हुई। चुनाव के दौरान और चुनाव की घोषणा के बाद 59 लोगों की मौत इस पंचायत चुनाव में हुई है। जो चुनाव परिणाम अभी तक सामने आए हैं। उसमें टीएमसी एकतरफा जीत की ओर आगे बढ़ रही है। अभी तक 22 जिला परिषदों पर टीएमसी का कब्जा होते हुए दिख रहा है। टीएमसी ने 608 जिला परिषद सीटें जीती हैं। वहीं भाजपा को 19, कांग्रेस को 6,माकापा को 2 सीट मिली है। ग्राम पंचायत की 63229 सीटों में से 34560 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस विजयी हुई है। भारतीय जनता पार्टी को 9621 माकापा को 2908 और कांग्रेस को 2515 सीटों पर सफलता प्राप्त हुई है। इस जीत से उत्साहित मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा जब मणिपुर जल रहा था। भाजपा को वहां की चिंता नहीं थी। निष्पक्ष विशेषज्ञों का मानना है, पंचायत चुनाव के दौरान केंद्रीय सुरक्षाबलों, राज्यपाल की भूमिका और भाजपा नेताओं की सक्रियता कांग्रेस और माकापा के लगातार विरोध के बाद भी इतने बड़े पैमाने पर टीएमसी की जीत, आने वाले समय में बदलती हुई राजनीति की दिशा और दशा तय कर रही है। केंद्र सरकार, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और भारतीय जनता पार्टी कीआक्रमक सक्रियता, केंद्रीय सुरक्षा बलों की मौजूदगी में चुनाव हुए हैं। उसके बाद भी पंचायत चुनाव में पश्चिम बंगाल में जनता खुद अपना चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उत्तरी। टीएमसी बनाम भाजपा में टीएमसी को अप्रत्याशित सफलता प्राप्त हुई है। टीएमसी का विरोध भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस और माकापा भी कर रही थी। टीएमसी पंचायत चुनाव में बिल्कुल अलग-थलग पड़ी हुई थी। इसके बाद भी इतनी बड़ी जीत से स्पष्ट है,कि जनता जब सड़कों पर उतरकर स्वयं चुनाव लड़ती है। उस समय धनबल और कोई अन्य उपाय काम नहीं आता है। पंचायत चुनाव के परिणाम एक तरह से केंद्र सरकार और भाजपा के लिए खतरे की घंटी की तरह हैं। हिमाचल,कर्नाटक के विधानसभा के चुनाव परिणाम लगभग इसी तर्ज पर सामने आए हैं। अच्छे दिन के जो वादे जनता से किए गए थे। 9 वर्षों के बाद भी अच्छे दिन की बात छोड़ दें,तो जीवन जीना भी लोगों के लिए मुश्किल हो रहा है। यह गुस्सा अब मतदाताओं में दिखने लगा है। पंचायत चुनाव से ज्यादा कोई सफल परीक्षण हो नहीं सकता है। पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनावों ने यह बता दिया है देश की राजनीतिक फिजा किस और बह रही है। अब जनता खुद सड़कों पर उतरने के लिए विवश हो रही है। हिंसा भी उसी प्रतिरोध का परिणाम है।